वर्ष - 29
अंक - 16
11-04-2020

अब हम देशव्यापी 21-दिवसीय लाॅकडाउन के तीसरे हफ्रते में प्रवेश कर चुके हैं. यह लाॅकडाउन ही कोरोना महामारी के खिलाफ मोदी सरकार का एकमंत्री निर्णायक और ठोस कदम रहा है और सरकार ने हर तरह से इसको लागू कराने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. भारत में इस महामारी की जिस दर से वृद्धि हो रही है और उसका फैलाव हुआ है उसे देखते हुए हम निश्चित तौर पर नहीं कह सकते कि लाॅकडाउन अब तक किस हद तक सफल हुआ है. लाॅकडाउन के इन गुजरे दो हफ्रतों में कन्फर्म कोरोना मरीजों की तादाद 606 से बढ़कर 4,421 तक जा पहुंची है और मृतकों की संख्या 10 से बढ़कर 114 पर पहुंच चुकी है (ये आंकड़े बिंग.काॅम द्वारा 7 अप्रैल की सुबह तक कोविड-19 ट्रैकर नोट किये गये हैं. 11 अप्रैल की सुबह तक कन्फर्म मरीजों की तादाद 7,500 और मृतकों की संख्या 250 का आंकड़ा पार कर चुकी है – सं.). ये संख्याएं और तेजी से बढ़ती जा रही हैं, लगभग हर तीन दिनों में दुगनी हो जा रही हैं, और अब तक भारत के लगभग 40 प्रतिशत जिले इससे प्रभावित हो चुके हैं.

हालांकि अगर देशव्यापी लाॅकडाउन न हुआ होता तो ये आंकड़े और भी बदतर हो सकते थे, फिर भी यह सच है कि रिपोर्ट किये गये आंकड़े वास्तविक आंकड़ों की अपेक्षा अभी भी कम ही हैं, मुख्यतः इसलिये कि भारत में अभी भी प्रति दस लाख व्यक्ति पर केवल 50 लोगों का परीक्षण किया जा रहा है, जो विश्व के अधिकांश देशों की तुलना में अत्यंत कम है. अगर केवल दो ऐसे देशों – दक्षिण कोरिया और जर्मनी – का उल्लेख किया जाय जहां कोरोना पाॅजिटिव (रोगग्रस्त) लोगों की संख्या उल्लेखनीय रही मगर उस तुलना में मृत्यु की दर काफी कम रही, तो ऐसे देशों में व्यापक पैमाने पर परीक्षण ही मुख्य रणनीति रही है. लाॅकडाउन केवल तभी फलदायी हो सकता है अगर उसके साथ-साथ किसी कारगर मेडिकल रणनीति को भी अमल में लाया जाए. मगर पर्याप्त संख्या में परीक्षण नहीं करने और यहां तक कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई की अगली कतार में कार्यरत स्वास्थ्यकर्मियों को भी इस घातक वायरस से निपटने के लिये असुरक्षित छोड़ देने के जरिये भारत सरकार फौरी मेडिकल कदम के बतौर भी आपराधिक लापरवाही बरत रही है.

सरकार ने योजना के पूर्ण अभाव में और गलत ढंग से इसे लागू करने के जरिये खुद इस लाॅकडाउन को ही कमजोर कर दिया है. यकीनन सरकार प्रवासी मजदूरों तथा दिहाड़ी पर गुजर-बसर करने वाले ग्रामीण एवं शहरी गरीबों के अस्तित्व रक्षा के सम्पूर्ण मुद्दे का पहले से अंदाजा लगाकर व्यवस्था कर सकती थी. अगर सरकार ने बुनियादी तौर पर सही तरीका अपनाया होता, और सबसे कमजोर तबकों तथा लाॅकडाउन के सर्वाधिक पीड़ित शिकारों की दुख-तकलीफों को कम करने की रणनीति कायम करके और उनके बीच प्रचारित करने के जरिये लाॅकडाउन की शुरूआत की होती और उनके लिये भोजन एवं दैनंदिन उपयोग की अन्य आवश्यक वस्तुओं की अनवरत आपूर्ति को सुनिश्चित कर लिया होता, तो हमें इतनी बड़ी तादाद में मेहनतकश लोगों का शहरों से गांवों की ओर पलायन नहीं देखने को मिलता और हमें उस चरम भुखमरी का भी सामना न करना पड़ता जो कोरोना वायरस की तुलना में कहीं अधिक तेजी से लोगों को मौत का शिकार बना रही है. हमें इस किस्म की आतंकग्रस्त खरीद और जमाखोरी भी नहीं देखने को मिलती जिससे लोग न सिर्फ भारी असुविधा का शिकार हुए बल्कि हमने ‘सामाजिक दूरी’ (सोशल डिस्टेंसिंग) के भी तमाम उसूलों का मखौल उड़ते देखा.

जहां केन्द्र सरकार ने अपना कोई निर्णय लेने से पहले राज्य सरकारों, राजनीतिक पार्टियों, निष्पक्ष विशेषज्ञों और नागरिक समाज के संगठनों से इस विषय में परामर्श करने की जरूरत ही नहीं समझी, वहीं नरेन्द्र मोदी तथा संघ-भाजपा ब्रिगेड ने कोरोना महामारी के संकट का इस्तेमाल मोदी की व्यक्ति पूजा को बढ़ावा देने तथा भाजपा को आगे बढ़ाने में करने की हरचंद कोशिश की है. चीन और मुसलमानों को कोरोना रोग का क्रमशः ‘उत्पादक’ और ‘वितरक’ बताने का एक कुटिल अभियान चलाया जा रहा है. मुसलमानों के खिलाफ जहरीला नफरत प्रचार अभियान का प्रसार करने के लिये निजामुद्दीन में तबलीगी जमाम के जमावड़े को खास तौर पर निशाना बनाया जा रहा है जिसका परिणाम कई तरह के जोर-जुल्म में हुआ है जैसे एक मुस्लिम महिला को बच्चा पैदाकरते समय मेडिकल सेवा देने से इन्कार कर दिया गया, जिसके फलस्वरूप उसके बच्चे की मौत हो गई. मुसलमानों का सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है और उन्हें उनके घरों से खदेड़ा जा रहा है. इसी बीच, डाक्टरों एवं आवश्यक सेवाएं प्रदान कर रहे लोगों के साथ एकजुटता जाहिर करने के नाम पर लोगों से कहा गया कि वे ताली-थाली-बर्तन बजायें और दिया व मोमबत्ती जलायें. दोनों अवसरों पर इसके परिणामस्वरूप ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का बड़े पैमाने पर उल्लंघन हुआ है और इसके बारे में खतरनाक अंधविश्वासभरी अफवाहें प्रचारित हुई हैं कि इस रोग का कैसे मुकाबला किया जा सकता है.

सरकार द्वारा कारोबार मालिकों व नियोजनकर्ताओं को दिये गये आदेशों और अपीलों का, कि मजदूरों की छंटनी न की जाए और न ही उनकी तनख्वाह में कटौती की जाए, कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है और सरकार इस आदेश को लागू करवाने की दिशा में कोई गंभीर प्रयास ही नहीं कर रही हैअब कोरोना संकट से लड़ने के लिये फंड जुटाने के नाम पर सरकार ने सांसदों के जरिये वितरित की जाने वाली स्थानीय क्षेत्र विकास की राशि को अगले दो वर्षों के लिये स्थगित कर दिया है. जहां इस तरह स्थानीय क्षेत्र विकास पर लगाई गई पाबंदी के चलते 7,900 करोड़ रुपये की राशि केन्द्र सरकार के हाथ में आ लायेगी, वहीं सरकार नई दिल्ली के हृदयस्थल राष्ट्रपति भवन से लेकर इंटिया गेट तक के इलाके में सेन्ट्रल विस्टा परियोजना पर 20,000 करोड़ रुपये की राशि खर्च कर देने को अड़ी हुई है. इसी बीच, नफरत व अंधविश्वास के अनवरत प्रचार के बलबूते पर भाजपा जनता के बीच ‘मोदी मील’ वितरित करने के जरिये लोगों की भुखमरी का फायदा उठाकर अपने राजनीतिक हित में उसका इस्तेमाल जारी रखे हुए है.

कोरोना महामारी और लाॅकडाउन की दुधारी चोट ने हमारे दैनंदिन अस्तित्व को अभूतपूर्व धक्का पहुंचाया है. हर चीज पटरी से उतर गई है. मगर यकीनन कष्ट भोग रही जनता एक दूसरे की मदद करके इस संकट का मुकाबला करने के तरीके भी खोज रही है. जनता का यह लड़ाकू संकल्प और उनकी सहन-क्षमता ही इस असाधारण संकटपूर्ण स्थिति का मुकाबला करने की कुंजी है. जहां भाजपा सर्वाधिक पिछड़े और प्रतिक्रियावादी विचारों को बढ़ावा देने तथा लोगों को हमारे समाज में मौजूद परस्पर अविश्वास और नफरत के कुओं की गहराई में धकेलने की कोशिश कर रही है, वहीं हमें हमेशा जनता के अपने अनुभव की शानदार परम्पराओं तथा शक्तिशाली पहलुओं पर भरोसा करना होगा, उनकी ऊर्जा को सही दिशा में गोलबंद करना होगा और उनकी पहलकदमी के दरवाजे खोलना होगा. अपनी सतर्कता बरकरार रखते हुए और कोरोना महामारी से लड़ते हुए हमें जनता के लिये फौरन राहत पहुंचाने तथा हमारे तमाम कामरेडों की सामूहिक भावना और पहलकदमी को मजबूत करनाहोगा. इसी किस्म के संकटपूर्ण मोड़ों पर हमें अपने इस उसूल पर खरा उतरना होगा: “जनता का स्वार्थ ही पार्टी का स्वार्थ है”, और हमरे तमाम विचारों, रवैये एवं कार्यवाही के जरिये कम्युनिस्ट की हैसियत से अपनी दावेदारी पेश करनी होगी.