वर्ष - 29
अंक - 39
19-09-2020

भारत की आजादी के आंदोलन के चर्चित नेता और क्रांतिकारी यतींद्रनाथ दास ने अंग्रेजी राज में जेलों में भारतीयों के साथ होते बुरे व्यवहार के खिलाफ 13 जुलाई 1929 को आमरण अनशन शुरू किया था और 63वें दिन 13 सितंबर 1929 को अनशन के दौरान ही लाहौर सेंट्रल जेल में शहीद हो गए थे. 20 वर्षों के आजीवन कारावास की सजा में पलामू जिले के मेदिनीनगर कारा में बंद भाकपा(माले) के लोकप्रिय नेता का. बिश्वनाथ सिंह ने यतींद्रनाथ दास की शहादत को याद करते हुए विगत 13 सितंबर से  अपने साथियों पवन विश्वकर्मा व श्रवण विश्वकर्मा और अन्य कैदियों के साथ मिलकर जेल के भीतर ही अनशन शुरू किया है.

19 अगस्त 2020 को काराधीक्षक में माध्यम से उन्होंने झारखंड के राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, कांग्रेस, राजद, राकांपा और भाकपा(माले) व भाजमो व अन्य दलों के विधायक दल नेताओं, पलामू जिले के उपायुक्त व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र भेजकर इस निर्णय की जानकारी दी. पत्र में उन्होंने सजा पुनरीक्षण परिषद द्वारा कैदियों की रिहाई में भेदभाव को दूर करने, प्रशासन द्वारा ओपन जेल में सामान्य कैदियों के स्थानांतरण में प्राथमिकता देने और हाशिए में पड़े कैदियों के हितों पर सकारात्मक पहल की उम्मीद करते हुए निम्नलिखित मांगों पर संज्ञान लेने का निवेदन किया –
1. कैदी पुनरीक्षण परिषद की त्रैमासिक बैठक सुनिश्चित की जाए, उसमें 2020 के बैठक में रिहाई से वंचित 40 कैदियों पर फिर से विचार किया जाए और कोरोना के मद्देनजर तत्काल उनको कारामुक्त किया जाए;
2. रिहाई से वंचित 40 कैदियों सहित आधा से अधिक सजा पूरी कर चुके कैदियों को तत्काल ओपन जेल में स्थानांतरित किया जाए;
3. सामाजिक जांच पड़ताल के बजाय कारा पदाधिकारियों के अनुशंसा पर कैदियों की रिहाई सुनिश्चित की जाए;
4. भोजन, वस्त्र, आवास की तरह ही बंदियों को निःशुल्क टेलीपफोन से संवाद की सुविधा मुहैया करायी जाए, प्रति 100 बंदियों पर एक टेलीफोन बूथ दिया जाए;
5. उत्तर प्रदेश की जेलों की तरह ही झारखंड के तमाम जेलों में बंदियों को जेल गेट के भीतर बने पार्क में परिजनों से मुलाकात कराने की व्यवस्था की जाए.

राजनीतिक दलों व संगठनों भाकपा, भाकपा(माले), माकपा, जदयू, इप्टा आदि ने कैदियों के अनशन के समर्थन में लगातार नुक्कड़ सभाओं का आयोजन किया. इन  सभाओं को संबोधित करते हुए भाकपा(माले) राज्य कमिटी सदस्य रविन्द्र भुइयां, जन संग्राम मोर्चा के नेता युगल पाल, भाकपा राज्य सचिव केडी सिंह, जदयू के जिला अध्यक्ष राजनारायण पटेल आदि नेताओं ने संबोधित किया.

भाकपा(माले) के जिला सचिव आरएन सिंह ने कहा कि जेल कानूनों में दो सौ सालों से कोई खास बदलाव नहीं हुए है. अंग्रेजों के जमाने का जेल मैनुअल आज भी चल रहा है. तब जेलों का इस्तेमाल अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वालों को क्रूर यातना देने और उनका मुंह बंद करने के लिए होता था. आज इसका इस्तेमाल विपक्ष की आवाजों को दबाने में हो रहा है. छात्र नेता उमर खालिद की गिरफ्तारी इसका सबसे बड़ा सबूत है.

इन सभाओं को दिहाड़ी मजदूर यूनियन के गौतम और आइसा की दिव्या भगत ने भी संबोधित किया. सभा में इप्टा के प्रेम प्रकाश, भाकपा(माले) के पाटन प्रखंड सचिव पवन विश्वकर्मा, रसोइया संघ की जिला सचिव अनीता देवी, भाकपा(माले) जिला कमिटी सदस्य शिवकुमार पासवान, सुरेन्द्र पासवान, मनीष विश्वकर्मा, पवन विश्वकर्मा, नरेश, संजू, अविनाश, जसिम, अखिलेश, रंजीत, कंचन, बीरेंद्र, रामपति, ललिता के अलावा अन्य लोग भी शामिल रहे.