वर्ष - 29
अंक - 51
19-12-2020


तुम किसानों को सड़कों पे ले आए हो
अब ये सैलाब हैं
और सैलाब तिनकों से रुकते नहीं
ये जो सड़कों पे हैं
खुदकशी का चलन छोड़ कर आए हैं
बेड़ियां पावों की तोड़ कर आए हैं
सोंधी खुशबू की सबने कसम खाई है
और खेतों से वादा किया है के अब
जीत होगी तभी लौट कर आएंगे

अब जो आ ही गए हैं तो यह भी सुनो
झूठे वादों से ये टलने वाले नहीं

तुम से पहले भी जाबिर कई आए थे
तुम से पहले भी शातिर कई आए थे
तुम से पहले भी ताजिर कई आए थे
तुम से पहले भी रहजन कई आए थे
जिनकी कोशिश रही
सारे खेतों का कुंदन, बिना दाम के
अपने आकाओं के नाम गिरवी रखें
उनकी किस्मत में भी हार ही हार थी
और तुम्हारा मुकद्दर भी बस हार है

तुम जो गद्दी पे बैठे, खुदा बन गए
तुमने सोचा के तुम आज भगवान हो
तुमको किस ने दिया था ये हक़,
खून से सबकी किस्मत लिखो, और लिखते रहो

गर जमीं पर खुदा है, कहीं भी कोई
तो वो दहकान है,
है वही देवता, वो ही भगवान है
और वही देवता,
अपने खेतों के मंदिर की दहलीज को छोड़ कर
आज सड़कों पे है
सर-ब-कफ, अपने हाथों में परचम लिए
सारी तहजीब-ए-इंसान का वारिस है जो
आज सड़कों पे है

हाकिमो जान लो, तानाशाहो सुनो
अपनी किस्मत लिखेगा वो सड़कों पे अब
काले कानून का जो कफन लाए हो
धज्जियाँ उसकी बिखरी हैं चारों तरफ
इन्हीं टुकड़ों को रंग कर धनक रंग में
आने वाले जमाने का इतिहास भी
शाहराहों पे ही अब लिखा जाएगा.
तुम किसानों को सड़कों पे ले आए हो
अब ये सैलाब हैं
और सैलाब तिनकों से रुकते नहीं.
                –  गौहर रजा (10 दिसम्बर, 2020)