वर्ष - 29
अंक - 50
12-12-2020


संगतकार

मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज सुंदर कमजोर कांपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
मुख्य गायक की गरज में
वह अपनी गूंज मिलाता आया है प्राचीन काल से
गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
खो चुका होता है
या अपने ही सरगम को लांघकर
चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थाई को संभाले रहता है
जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था
तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाढस बंधाता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है
गाया जा चुका राग
और उसकी आवाज में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊंचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए.
(रचनाकाल -1995)

तानाशाह

तानाशाहों को अपने पूर्वजों के जीवन का अध्ययन नहीं करना पड़ता. वे उनकी पुरानी तस्वीरों को जेब में नहीं रखते या उनके दिल का एक्स-रे नहीं देखते. यह स्वतःस्फूर्त तरीके से होता है कि हवा में बन्दूक की तरह उठे उनके हाथ या बंधी हुई मुठ्ठी के साथ पिस्तौल की नोक की तरह उठी हुई अंगुली से कुछ पुराने तानाशाहों की याद आ जाती है या एक काली गुफा जैसा खुला हुआ उनका मुंह इतिहास में किसी ऐसे ही खुले हुए मुंह की नकल बन जाता है. वे अपनी आंखों में काफी कोमलता और मासूमियत लाने की कोशिश करते हैं लेकिन क्रूरता एक झिल्ली को भेदती हुई बाहर आती है और इतिहास की सबसे क्रूर आंखों में तब्दील हो जाती है. तानाशाह मुस्कराते हैं, भाषण देते हैं और भरोसा दिलाने की कोशिश करते हैं कि वे मनुष्य है, लेकिन इस कोशिश में उनकी भंगिमाएं जिन प्राणियों से मिलती-जुलती हैं वे मनुष्य नहीं होते. तानाशाह सुन्दर दिखने की कोशिश करते हैं, आकर्षक कपड़े पहनते हैं, बार-बार सज-धज बदलते हैं, लेकिन यह सब अन्ततः तानाशाहों का मेकअप बनकर रह जाता है.

इतिहास में कई बार तानाशाहों का अन्त हो चुका है, लेकिन इससे उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उन्हें लगता है वे पहली बार हुए हैं.

गुजरात के मृतक का बयान

पहले भी शायद मैं थोड़ा-थोड़ा मरता था
बचपन से ही धीरे-धीरे जीता और मरता था
जीवित बचे रहने की अन्तहीन खोज ही था जीवन
जब मुझे जलाकर पूरा मार दिया गया
तब तक मुझे आग के ऐसे इस्तेमाल के बारे में
पता भी नहीं था
मैं तो रंगता था कपड़े ताने-बाने रेशे-रेशे
चौराहों पर सजे आदमकद से भी ऊंचे फिल्मी कद
मरम्मत करता था टूटी-फूटी चीजों की
गढ़ता था लकड़ी के रंगीन हिण्डोले और गरबा के डाण्डिये
अल्युमिनियम के तारों से
छोटी-छोटी साइकिलें बनाता बच्चों के लिए
इसके बदले मुझे मिल जाती थी
एक जोड़ी चप्पल, एक तहमद
दिन भर उसे पहनता, रात को ओढ़ लेता
आधा अपनी औरत को देता हुआ.
मेरी औरत मुझसे पहले ही जला दी गई
वह मुझे बचाने के लिए खड़ी थी मेरे आगे
और मेरे बच्चों का मारा जाना तो पता ही नहीं चला
वे इतने छोटे थे उनकी कोई चीख भी सुनाई नहीं दी
मेरे हाथों में जो हुनर था, पता नहीं उसका क्या हुआ
मेरे हाथों का ही पता नहीं क्या हुआ
उनमें जो जीवन था, जो हरकत थी, वही थी उनकी कला
और मुझे इस तरह मारा गया
जैसे मारे जा रहे हों एक साथ बहुत से दूसरे लोग
मेरे जीवित होने का कोई बड़ा मकसद नहीं था
और मुझे मारा गया इस तरह
जैसे मुझे मारना कोई बड़ा मकसद हो.
और जब मुझसे पूछा गया – तुम कौन हो
क्या छिपाए हो अपने भीतर एक दुश्मन का नाम
कोई मजहब कोई तावीज
मैं कुछ नहीं कह पाया मेरे भीतर कुछ नहीं था
सिपर्फ एक रंगरेज, एक कारीगर, एक मिस्त्रा,
एक कलाकार, एक मजूर था
जब मैं अपने भीतर मरम्मत कर रहा था
किसी टूटी हुई चीज की
जब मेरे भीतर दौड़ रहे थे
अल्युमिनियम के तारों की साइकिल के नन्हे पहिए
तभी मुझपर गिरी आग, बरसे पत्थर
और जब मैंने आखिरी इबादत में अपने हाथ फैलाए
तब तक मुझे पता नहीं था
बन्दगी का कोई जवाब नहीं आता
अब जबकि मैं मारा जा चुका हूं, मिल चुका हूं
मृतकों की मनुष्यता में
मनुष्यों से भी ज्यादा सच्ची ज्यादा स्पन्दित
तुम्हारी जीवित बर्बर दुनिया में न लौटने के लिए
मुझे और मत मारो और न जलाओ, न कहने के लिए
अब जबकि मैं महज एक मनुष्याकार हूं
एक मिटा हुआ चेहरा
एक मरा हुआ नाम
तुम जो कुछ हैरत और कुछ खौफ से देखते हो मेरी ओर
क्या पहचानने की कोशिश करते हो
क्या तुम मुझमें अपने किसी स्वजन को खोजते हो
किसी मित्रा परिचित को या ख़ुद अपने को
अपने चेहरे में लौटते देखते हो किसी चेहरे को.