वर्ष - 30
अंक - 2
09-01-2021


– दीपंकर भट्टाचार्य

कल समूची दुनिया ने संयुक्त राज्य अमरीका, जो ऐतिहासिक रूप से दूसरे देशों के खिलाफ युद्ध छेड़ने, वहां तख्तपलट की साजिश रचने, समूची दुनिया में अपने “दोस्ताना” तानाशाहों को गद्दी पर बैठाने के लिये सरकारें गिराने में व्यस्त रहा है, खुद उसी अमरीका में एक नाकाम तख्तपलट के प्रयास को होते देखा. दुनिया भर के लोगों ने यह देखकर सम्मिलित रूप से चैन की ली कि यह प्रयास नाकाम रहा और अमरीका में अगले राष्ट्रपति के हाथों सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण और संवैधानिक संक्रमण की सम्भावना अभी भी बरकरार है.

भारत में अब हम कई दशकों से इसी तरह के दृश्यों का नजारा कर रहे हैं. जिस उन्मादी भीड़ ने दिन-दहाड़े बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया, उसने ठीक इसी प्रकार के तख्तपलट की साजिश को अंजाम दिया था. इस कृत्य के लिये भीड़ को भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने ठीक इसी तरह से भड़काया था, और सरकार के कई तबकों ने स्पष्ट तौर पर इस मिलीभगत में साथ दिया था. भारत में यह तख्तपलट कामयाब हो गया और अब न्यायपालिका ने भी इसको न सिर्फ माफ कर दिया बल्कि उसको पुरस्कार से नवाजा भी है. और अब भीड़-गिरोह द्वारा हत्याओं को सरकार द्वारा संरक्षित खेल-तमाशे के बतौर सुगठित रूप दे दिया गया है जिसमें व्यक्तियों की हत्या अथवा जनसंहार को अंजाम देने वालों का सजा से बच निकलना सुनिश्चित कर दिया गया है.

भाजपा द्वारा नियमित रूप से बीच-बीच में विपक्षी पार्टियों के विधायकों और सांसदों को खरीदा जाना और यहां तक कि 2017 में बिहार में जनादेश को ही सम्पूर्ण रूप से हड़प लेना लोकतंत्र के उल्लंघन की इसी किस्म की घटनाएं हैं.

हाल में जिस प्रकार से राज्य सभा में बिना कोई मतदान कराये ही किसान-विरोधी कृषि कानूनों को पारित घोषित कर दिया गया, उसने भारत में लोकतंत्र के सर्वोच्च संवैधानिक सदन के अंदर ही लोकतंत्र का विनाश कर दिया.

ट्रम्प और भारत में उनकी तुरही बजाने वाले दोस्तों के बीच फर्क इसी तथ्य में निहित है कि जहां अमरीका में लगता है कि अंततः ट्रम्प की निरंकुशता पर संवैधानिक लोकतंत्र ने काबू पा लिया है, वहीं भारत में इस प्रकार के तख्तपलटों को अपनी सफलता से खुराक मिल रही है.

ट्रम्प के निरंकुश शासन का एक और दौर झेलने से बच निकलने के लिये अमरीका में लोकतंत्र की पक्षधर शक्तियों का अभिनंदन करते हुए हम भारत के लोगों को दीर्घकालीन और संकल्पबद्ध प्रतिरोध के लिये अपने आपको तैयार करना होगा, क्योंकि सिर्फ यही प्रतिरोध सत्तारूढ़ फासीवादी शक्तियों के पंजों से लोकतंत्र की रक्षा कर सकता है.