वर्ष - 30
अंक - 5
30-01-2021


जन संस्कृति मंच, पटना ने विगत 28-29 जनवरी 2021 को 5वां गोरख स्मृति आयोजन किया. इस कार्यक्रम में पहले दिन हिंदी-भोजपुरी के कवि बलभद्र की कविताओं पर परिचर्चा हुई. दूसरे दिन युवा कवियों का कविता पाठ और हिरावल का गायन प्रमुख आकर्षण रहा.

किसान की आंखों से दुनिया को देखते हैं बलभद्र

पहले दिन छज्जूबाग में ‘हिरावल’ द्वारा गोरख पांडेय के गीत ‘समय का पहिया चले’ के गायन के बाद कवि-आलोचक बलभद्र के कविता-संग्रह ‘समय की ठनक’ पर परिचर्चा आयोजित की गई.

परिचर्चा के आरंभ में बलभद्र ने अपना आत्मवक्तव्य दिया और अपनी कविताओं का पाठ किया. उन्होंने कहा कि उन्होंने भोजपुर के किसान आंदोलन में संघर्ष करते हुए, लाठियां खाते हुए तथा रमताजी, गोरख पांडेय, विजेंद्र अनिल और दुर्गेंद्र अकारी के गीतों गाते हुए कविता की तमीज सीखी. उन्होंने ‘रामजतन के जेवर अपने’, ‘रोपनहारिनें’, ‘ओ पंडुक’, ‘हद बाड़ी स’, ‘भलहीं जे रहबो कुजतिया’ और ‘अन्न हैं, कलपेंगे’ शीर्षक अपनी कविताएं सुनाईं.

युवा आलोचक कृष्ण समिद्ध ने कहा कि कवि बलभद्र किस्सागो कवि हैं. इन्होंने अपनी कई कविताएं किस्सागो शैली में लिखी है. इनकी कविताएं जीवन के द्वैत को सफल तरीके से व्यक्त करती हैं. इनकी कविताएं ज्यादातर साधारण जीवन की सामान्य घटनाओं से संबंधित हैं.

कवि-आलोचक सुनील श्रीवास्तव ने कहा कि इनकी कविताएं श्रम करने वालों के प्रति संवेदना और उनके जीवन के प्रति आत्मीय लगाव की कविताएं हैं. इस दुनिया को साजिशन जटिल बनाया गया है. बलभद्र की कविताएं असली और नकली तथा जरूरी और गैरजरूरी के भेद की पहचान कराती हैं. आलोचक सुधीर सुमन ने कहा कि कवि बलभद्र की कविताओं में भोजपुर के किसान आंदोलन के विभिन्न प्रसंगों के साथ ही भारतीय कृषक जीवन और ग्रामीण प्रकृति के व्यापक संदर्भ मौजूद हैं. वे किसान की आंखों से दुनिया को देखते हैं. इनमें सर्जक और रचना के बीच कोई फांक नहीं है. निजी पारिवारिक जीवन की भी जो कविताएं हैं, वे पाठकों और श्रोताओं के भीतर प्रायः अपने अहसास की तरह दाखिल होती हैं. वृद्धों, स्त्रियों, श्रमिकों और किसानों के प्रति ऐसी सहानुभूति अपेक्षाकृत कम दिखाई पड़ती है. अंधराष्ट्रवाद किसानों और उनकी संततियों के लिए खतरनाक है, इसे ये कविताएं बेलाग-लपेट तरीके से दिखाती हैं. ऐसी कविताओं को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना चाहिए.

बैरी पइसवा का राज मिटाना होगा - बलभद्र

दूसरे दिन प्रेमचंद रंगशाला में गोरख स्मृति आयोजन की शुरूआत करते हुए हिंदी-भोजपुरी के कवि बलभद्र ने कहा कि किसान की मेहनत का सम्मान करते हुए उसे राजनीतिक रूप से सचेत बनाने का काम भी कविता ने किया है. गोरख की कविताएं किसानों के जीवन और उनके संघर्ष की कविताएं हैं. उनकी कविता में राजनैतिक रूप से सचेत किसान सामंतवाद और पूंजीवाद दोनों से मुक्ति चाहता है. गोरख ने मेहनतकश किसान महिलाओं के दुख-दर्द और उनकी आकांक्षा को भी अपनी कविता में अभिव्यक्ति दी है. उनके किसान बैरी पैसे का राज मिटाने के लिए लड़ते हैं और दो टूक कहते हैं कि जो सरकार किसानों के दुख और तबाही के लिए जिम्मेवार है, उसकी उन्हें कोई दरकार नहीं. आज देश में कारपोरेट और सरकार गठजोड़ के खिलाफ किसानों का जो संगठित आक्रोश उमड़ रहा है, उस संदर्भ में गोरख पांडेय की कविताएं और अधिक प्रासंगिक हो गई हैं.

गोरख पांडेय की भोजपुरी कविताओं -- ‘सपना’ और ‘मेहनत का बारहमासा’ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पारंपरिक लोकछंद और लोक काव्यशैली में लिखे गए गीतों के जरिए गोरख ने किसान त्रासदी और उसके प्रतिरोध को नये अर्थ-संदर्भों से जोड़ दिया. बलभद्र दीक्षित ‘पढ़ीस’ से लेकर रमाकांत द्विवेदी ‘रमता’, विजेंद्र अनिल, दुर्गेंद्र अकारी और बलराज पांडेय तक की कविताओं के जरिए किसान और कविता को रिश्ते पर विस्तार से उजागर किया.

एक तख्तनशीं आज भी इतराया हुआ है

कवि राजेश कमल के संचालन में सत्रह कवियों और शायरों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया. इसकी शुरूआत युवा कवि अंचित ने अपनी कविता ‘चुप मत होना’ और ‘शपथ’ के पाठ से की. चर्चित शायर संजय कुमार कुंदन ने अपनी गजल ‘एक तख्तनशीं आज भी इतराया हुआ है’ मौजूदा तानाशाही की खिल्ली उड़ाई. प्रो. कुमकुम झा ने एक अनुत्तरित प्रश्न, ज्योति स्पर्श ने ‘और क्या चल रहा है?’, प्रियंका प्रियदर्शिनी ने ‘स्त्रियों की बात’ में स्त्री के अस्तित्व और उसके संघर्ष से जुड़े सवालों को उठाया. प्रियंबरा भारती की कविता ‘वे कौन हैं?’, कृष्ण समिद्ध ने ‘हत्या के बाद’ और ‘शिकारी’, प्रशांत विप्लवी ने ‘बुनकरों का एक गांव’ और ‘विदा होने का समय’, युवराज ने ‘एक दिन’, ‘प्रियदर्शी मैत्री शरण ने ‘चाय और प्रकृति’ और एक गीत ‘मत उपजाओ गन्ना सुगर बहुत हो रक्खा है’, गुंजन श्री ने एक मैथिली गजल, राजभूमि ने एक भोजपुरी कविता, प्रभात प्रणीत ने ‘मुल्क’ शीर्षक कविता, बालमुकुंद ने हिंदी-मैथली की एक-एक कविता, सदफ इकबाल ने एक नज्म और एक गजल तथा सिद्धार्थ वल्लभ ने ‘कोढ़ग्रस्त समय’ का पाठ किया. हिरावल ने गोरख के कई गीतों-गजलों को गाया.

इस आयोजन में हिंदी-भोजपुरी के कवि-आलोचक तैयब हुसैन ‘पीड़ित’, वरिष्ठ साहित्यकार यादवेंद्र, कवि कुमार मुकुल, माले नेता का. पवन शर्मा व संतोष सहर, ऐपवा नेत्री सरोज चौबे, शिक्षाविद गालिब, कवि शाह नवाज, फिल्मकार विस्मय चिंतन, संस्कृतिकर्मी अनिल अंशुमन, रंगकर्मी संतोष झा, किसान नेता उमेश सिंह, राम कुमार, राजन कुमार, प्रकाश, सुनील सिंह, राजदीप कुमार, राजभूमि, सम्राट, रवि, अंकित, मासूम, मंजरी, सुप्रिया, शांति, सृष्टि, कृष्णा, विकास, सौरभ, शुभम, मृत्युंजय, भारत, आदर्श आदि मौजूद रहे.

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