वर्ष - 30
अंक - 45
06-11-2021


30 अक्टूबर को 13 राज्यों व एक केंद्रशासित प्रदेश दादरा-नगर हवेली के 3 लोकसभा सीटों और 29 विधानसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनाव के नतीजों से हमें अगले साल की शुरुआत में देश के लिए अहम माने जा रहे विधानसभा चुनावों के पहले देश के बदलते राजनीतिक माहौल की झलक दिखती है. आम तौर पर उपचुनावों में सत्तापक्ष को फायदा होता है, लेकिन उपचुनावों के नतीजों से कई हैरतअंगेज बातें निकली है. सबसे हैरानी भरा भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश के सभी तीन विधानसभा सीटों और एकमात्र लोकसभा सीट पर कांग्रेस की जीत के नतीजे हैं. भाजपा को शायद सबसे अहम फायदा तेलंगाना में मिला, जहां भाजपा टीआरएस पार्टी से आये एक दलबदलू को अपने उम्मीदवार के बतौर चुनावी जंग में उतार कर अपनी ताकत को बढ़ाने में सफल रही.

दूसरा राज्य असम रहा जहां भाजपा को भारी बढ़त मिली. असम के सभी 5 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा और उसके सहयोगी यूपीपीएल ने जीत हासिल की. ये वो 5 सीटें हैं जिनमें से 4 सीटों पर इस साल की शुरुआत में हुए आम चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगियों, एआईयूडीएफ और बीपीएफ ने जीत दर्ज की थी. असम और उत्तर-पूर्व के अन्य राज्यों में भाजपा और इसके सहयोगियों की निरंतर बढ़ती ताकत और मजबूती  इस जन-सांख्यिकीय और सांस्कृतिक विविधता की प्रचुरता से भरे इलाके की शांति, सामाजिक सद्भाव और मानवाधिकारों के लिए एक बड़ा खतरा है. पश्चिम बंगाल की सभी चार सीटों के नतीजे असम से बिल्कुल उल्टे हैं, जहां भाजपा की बड़े अंतर से करारी हार हुई. इनमें से विधानसभा चुनाव में जीती गई दो सीटें भी शामिल है. भाजपा भले ही दूसरे स्थान पर हो, पर वामदलों के वोटों में भी दो निर्वाचन  क्षेत्रों- शांतिपुर और उत्तर 24 परगना (खरदाहा) में मामूली सुधार हुआ.

मुख्यधारा का मीडिया भाजपा की हार और बिहार में उसके सहयोगी जदयू द्वारा बहुत मामूली अंतर से जीत को दिवंगत राजनेता से ‘सहानुभूति’ के संदर्भ में खुल कर बयां कर रही है, पर मोदी सरकार और भाजपा की विनाशकारी नीतियों और विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ जनता में बिल्कुल साफ दिख रही नाराजगी पर चुप है जो हिमाचल, हरियाणा और राजस्थान में उसकी हार की बढ़ी वजह बनी. यहां तक कि कर्नाटक में वर्तमान मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्रा में एक सीट भाजपा हार गई. आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की आसमान छूती कीमतों, गायब होती नौकरियां और गिरती आय के चौतरफा असर से पैदा परेशानी जनता के लिये इन उपचुनावों में शायद सबसे बड़ा मुद्दा रही है. जिस तरह से मोदी-योगी-खट्टर सरकार ने किसान आंदोलन को कुचलने और प्रदर्शन कर रहे किसानों को नीचा दिखाने की कोशिश की है, उससे लोगों के गुस्से में और इजाफा हुआ है.

भाजपा के खिलाफ जनता के बढ़ते गुस्से और चुनावों में उसे धूल चटाने के इरादों का पता इन उपचुनावों से बिल्कुल साफ हो जाता है. इस गुस्से को शक्तिशाली जन संघर्षों में बदलना और इसे चुनावी क्षेत्र में प्रभावी विपक्ष की भूमिका में लाना 2022 की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले सबसे अहम काम है. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में चल रहे किसान आंदोलन को अपने राजनीतिक लक्ष्य को हासिल करने के लिये किसान विरोधी मोदी सरकार को दंडित करने और संघ-भाजपा ब्रिगेड की विभाजनकारी-विनाशकारी राजनीति को विफल करने के लिए चुनाव एक बड़ा अवसर होगा. इस संबंध में प्रभावी विपक्षी एकता एक अतिरिक्त चुनौती बनी हुई है. बिहार के महागठबंधन में कांग्रेस और राजद दोनों के द्वारा दो विधानसभा क्षेत्रों में एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करने से पड़ी दरार एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी. भले ही कांग्रेस को राजद पर जदयू की जीत के अंतर से भी कम वोट मिले हों, लेकिन इस दरार ने निश्चित तौर पर एक गलत संदेश दिया.