वर्ष - 30
अंक - 44
30-10-2021


अपने एक भाषण और अखबार के एक लेख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया है कि उनके नेतृत्व में भारत ने 21 अक्टूबर 2021 तक कोविड 19 के टीके की 100 करोड़ खुराक पूरी कर, टीकाकरण से जुड़ी एक प्रभावशाली और ‘ऐतिहासिक’ जीत हासिल की है.

टीकाकरण से जुड़ी इस डींग के साथ मोदी सरकार उनकी छवि को ‘टीका पुरूष’ के रूप में पेश करना चाहती है ताकि कोविड 19 के मोर्चे पर आपराधिक विफलता, जिसके कारण पहले चरण और लाॅक डाउन, और दूसरे चरण के समय लाखों जानें गयीं, के जिम्मेदार व्यक्ति के रूप में भारत और विदेश में बनी उनकी छवि को छुपाया जा सके. मोदी जानते हैं कि गंगा में बहती लाशों और ऑक्सीजन की कमी से सांस लेने के लिए तड़पते लोगों की भयावह तस्वीर अभी तक लोगों के जेहन में ताजा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 5 मई 2021 को उत्तर प्रदेश और केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ एक घातक अभियोग जारी किया है, जिसमें कहा है, ‘अस्पतालों में ऑक्सीजन की सप्लाई ना होने के कारण कोविड पीड़ितों की मौत होना एक आपराधिक गतिविधि है और किसी जनसंहार से कम नहीं है’. उत्तर प्रदेश के चुनाव करीब होने के कारण, मोदी सरकार अपने अपराधों की दर्दनाक यादों को टीकाकरण के मोर्चे पर हुई तथाकथित ऐतिहासिक जीत के प्रचार के पीछे छुपाने की कोशिश में लगी है.

लेकिन जांच-पड़ताल के आगे यह प्रचार ढह जाता है. मोदी सरकार ने वादा किया था कि तीन महीने में 100 करोड़ खुराकें पूरी हो जायेंगी, लेकिन इस काम में नौ महीने लग गये. कहा यह भी गया था कि 2021 के अंत तक सभी वयस्कों का टीकाकरण हो जायेगा - इस लक्ष्य से भारत अभी भी कोसों दूर है.

भारत में सिर्फ 18 साल और उससे ज्यादा उम्र के लोग टीका ले सकते हैं, जबकि ज्यादातर दूसरे देशों में 12 और उससे ऊपर के सभी लोगों को टीका दिया जा रहा है. तो भारत में टीकाकरण के लिए योग्य लोगों का प्रतिशत दूसरे देशों से कम ही है. जनसंख्या के इस सीमित हिस्से से भी सिर्फ 31 प्रतिशत लोगों को दोनों खुराकें मिली हैं, जबकि सिर्फ 75 प्रतिशत को कम से कम एक खुराक मिली है.

दूसरे देशों के मुकाबले खराब प्रदर्शन के लिए भारत बड़ी जनसंख्या को बहाने के रूप में इस्तेमाल करता है. लेकिन ये बहाना टिक नहीं पाता. चीन की जनसंख्या भारत से ज्यादा होने के बावजूद वहां के 71 प्रतिशत लोगों का पूरी तरह से टीकाकरण हो चुका है.

भारत ने दूसरे देशों की तरह पहले से टीके मंगाने के बजाय इस काम के लिए जनवरी, यानि टीकाकरण अभियान शुरू होने के ठीक पांच दिन पहले तक इंतजार किया. और सिर्फ 20 प्रतिशत आबादी के टीकाकरण के लायक खुराकें हाथ में आयीं. टीके हासिल करने में हुई इस देरी और टीकों की कमी ने भारत को कोविड 19 के जानलेवा दूसरे चरण के लिए असुरक्षित छोड़ दिया.

मोदी का यह दावा झूठा है कि सभी भारतियों को मुफ्त टीके मिले हैं. वास्तव में, ज्यादातर देशों में कोविड 19 का टीका मुफ्त दिया जा रहा है, लेकिन भारत उन कुछ देशों में एक है जहां लोगों को टीका खरीदना पड़ रहा है. मोदी ने राज्यों को टीका डीलरों से अपने स्तर पर सौदा करने के लिए छोड़ दिया, जिसके कारण टीके की कीमतों में भयानक अराजकता दिखाई दी, और अंततः सर्वाेच्च न्यायालय को हस्तक्षेप कर सरकार को मजबूर करना पड़ा कि वह टीके की कीमतों पर कुछ हद तक लगाम लगाये.

मोदी का ये दावा भी झूठा है कि टीकाकरण में किसी को कोई प्रधानता नहीं दी जा रही है. उनकी सरकार ने टीके के मासिक उत्पादन का 25 प्रतिशत हिस्सा निजी अस्पतालों के हवाले करने की इजाजत दी है जिससे अमीर लोग अपने लिए टीके आसानी से खरीद पायें और गरीबों को टीके के लिए सरकारी केंद्रों पर लाइन लगानी पड़े.

ठीक समय पर टीके न खरीद कर, जिससे विकट अभाव पैदा हुआ; अप्रैल 2021 के कुंभ मेले जैसे बड़े जमावड़े को बढ़ावा देकर, हिंदू भक्तों को कोविड 19 नहीं होगा जैसे झूठे संदेश देकर, कुंभ में जांच के नकली आंकड़ों के जरिये सुरक्षित होने की झूठी तसल्ली पैदा कर और अस्पतालों में जरूरी ऑक्सीजन सुनिश्चित ना कर पाने के कारण प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के दूसरे नेता दूसरे चरण में पीड़ितों की संख्या, प्रसार और खतरा बढ़ाने के लिए निजी तौर पर जिम्मेदार हैं. तब से अब तक प्रधानमंत्री मोदी ने जान बूझकर दूसरे चरण में हुई मौतों की संख्या को दबाया है और मृतकों की संख्या सिर्फ 4 लाख बतायी है जबकि मृतकों की असली संख्या करीब 40 लाख है. आज भी कोविड 19 के कारण हुए अनाथ हो चुके और जीवनसाथी को खो चुके लोग वंचित जीवन जी रहे हैं, जिन्हें सरकार से मान्यता तक नहीं मिली है, मदद तो दूर की बात है. पहले चरण में प्रधानमंत्री मोदी के अनियोजित और अमानवीय लाॅक डाउन के कारण अनगिनत प्रवासी मजदूरों की जानें गयीं और भारत बेरोजगारी के गर्त में और भी धंस गया. अब प्रधानमंत्री मोदी अपनी पालतू मीडिया संस्थानों की मदद से कोविड 19 के मोर्चे पर अपने आपराधिक विफलता की कहानी को सफल टीकाकरण की मनगढ़ंत कहानी में बदलना चाहते हैं.

अंतर्राष्ट्रीय जानकारों के एक पैनल ने दुनिया भर के उन नेताओं को लेकर एक ‘दुष्टों की सूची’ बनायी है जिनकी कोविड 19 से जुड़ी गड़बड़ नीतियों के कारण बड़े पैमाने पर लोगों की जानें गयीं जिसे रोका जा सकता था. नरेंद्र मोदी इस सूची में सबसे ऊपर हैं, जिसमें शामिल दूसरे नाम हैं ब्राजील के जायर बोल्सोनारो, बेलारूस के अलेक्जेंडर लुकाशेंको, अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप और मेक्सिको के आंद्रेस मैनुएल लोपेज ओब्रादोर. ऐसे नेताओं को लोगों की मौत का जिम्मेदार माना जाना चाहिए.

ये याद रखना चाहिए कि ब्राजील में एक संसदीय पैनल ने 1200 पन्नों की एक रिपोर्ट जमा की है जिसमें जायर बोल्सोनारो की कोविड 19 से जुड़ी भयंकर नीतियों के लिए, जिसके कारण 6 लाख ब्राजीली लोगों की जानें गयीं, उन पर ‘मानवता के विरुद्ध अपराध’ का अभियोग लाने का सुझाव दिया गया है. इस रिपोर्ट में भारत बायोटेक के पुराने ब्राजीली बिजनेस पार्टनर, प्रेसीसा मेडिकामेंटोस के दो आला अधिकारियों पर भी धोखाधड़ी और जालसाजी के अलावा ‘संगठित अपराध’ चलाने का भी अभियोग लाया गया है. भारत में भी हमें खुद की तारीफ करने की मोदी की कोशिशों का पर्दाफाश करना होगा, उनके झूठ का खुलासा करना होगा और उनकी केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों को कोविड 19 और लाॅक डाउन की तबाही के लिए  जिम्मेदार ठहराना होगा, जो कि सचमुच ‘मानवता के विरुद्ध अपराध’ है.