वर्ष - 30
अंक - 52
25-12-2021

ऐपवा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रति राव, महासचिव मीना तिवारी व सचिव कविता कृष्णन ने केन्द्र सरकार से मांग की है कि 18 वर्षीय बालिग महिला पर शादी न थोपें, पर उसके शादी करने के अधिकार को जुर्मन करार दिया जाए.

महिलाओं के लिए शादी के उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 कर देने का कैबिनेट का प्रस्ताव अनुचित है और इसे वापस किया जाए. सभी बालिग़ लोगों के लिए शादी का उम्र 18 वर्ष होनी चाहिए इसलिए पुरुषों के लिए भी उम्र को 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दिया जाना चाहिए.

अगर 18 वर्षीय युवा सरकार चुनकर देश का भविष्य चुनने के काबिल हैं, तो उनको अपना भविष्य चुनने से क्यों रोक रही है सरकार?

कम उम्र में प्रेग्नेंसी महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो तो सकती है – इनसे लड़कियों और महिलाओं की पढ़ाई में भी बाधा पैदा होती है. पर जो सरकार बाल विवाह को रोकने में अब तक अक्षम है वह आज बालिग महिलाओं के विवाह को रोकने के लिए कानून बनने पर क्यों आमादा है? सच तो यह है कि लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ्य की समस्याएं – अनीमिया, जच्चा-बच्चा का कुपोषण, आदि गरीबी से पैदा होती हैं, बालिगों की अपनी इच्छा से विवाह से नहीं. सरकार गरीबी और कुपोषण को मिटाने के लिए मारुति कदम उठाना तो दूर, इन्हें बढ़ाने में लगी है. पर शादी की उम्र बढ़ाकर महिला पक्षधर होने का झूठा दावा कर रही है.

बाल विवाह और कम उम्र में विवाह की समस्या का हल, शादी का उम्र बढ़ाने में नहीं है, बल्कि बालिग महिलाओं की स्वायत्तता को मदद करने में है.

18-21 वर्ष के बीच की युवतियों की उनके बिना मर्जी के जबरन शादी न करवायी जाए, पर उनकी मर्जी से की जा रही शादी को रोका न जाए. शादी के बाद बच्चे कब पैदा करें – इस निर्णय में भी बालिग महिलाओं की राय का सम्मान किया जाए. बाल विवाह या जबरन शादी करवाए जाने की लड़कियों व महिलाओं की शिकायत के लिए सरकार हेल्पलाइन खोलें और उनका साथ दें. प्यार और शादी के मामलों में परिवार या सरकार की राय नहीं, महिलाओं की राय चले.

2013-14 में द हिंदू अख़बार में छपी स्टडी के अनुसार, दिल्ली की निचली अदालतों में सुने जाने वाले बलात्कार के केसों में से 40 प्रतिशत केस बलात्कार के मामले हैं ही नहीं, बल्कि प्रेमी के साथ भाग कर शादी करने के मामले हैं जिनमें महिला के माता-पिता ने बलात्कार का झूठा आरोप लगाया है. ऐसे मामलों में महिला के माता-पिता, सामाजिक पंचायत, संघ के गिरोह इत्यादि, महिला के नाबालिग होने का झूठा दावा करते हैं, उसके साथ खूब हिंसा और ज्यादती करते हैं. कैबिनेट का यह प्रस्ताव महिलाओं को नहीं, बल्कि महिलाओं की स्वायत्त निजी फैसलों पर हमला प्रायोजित करने वाली ऐसी ताकतों को सशक्त करेगा.

इसलिए ऐपवा मांग करती है कि कैबिनेट अपने प्रस्ताव को वापस करें और इसकी जगह मौजूदा कानूनों में जरूरी बदलाव करें ताकि देश के सभी बालिग नागरिकों को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार सुरक्षित रहे.