वर्ष - 31
अंक - 5
29-01-2022

विगत 27 जनवरी 2022 को रांची में आदिवासी संघर्ष मोर्चा की एक जिलास्तरीय बैठक आयोजित हुई. बैठक की का अध्यक्षता अलमा खलखो, मेवा उरांव, बिरसा उरांव व महाबीर मुंडा के अध्यक्ष मंडल और संचालन जगरनाथ उरांव ने किया. आदिवासी संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक देवकीनंदन बेदिया सम्मेलन में मुख्य अतिथि के बतौर उपस्थित थे. बैठक में बुढ़मू, मांडर, रातू, कांके, ओरमांझी, चानो, रांची सदर समेत अन्य प्रखंडों के दर्जनों गांवों से लोग शामिल हुए. बैठक में सर्वप्रथम आधार पत्र का वितरण व पाठ किया गया.

देवकीनंदन बेदिया ने आदिवासी संघर्ष मोर्चा की दिशा, दृष्टि व संघर्ष चलाने के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला. ब्रिटिश उपनिवेश के खिलाफ, स्वतंत्रता संग्राम में तिलका मांझी से लेकर बिरसा मुंडा के उलगुलान तक जल-जंगल-जमीन की रक्षा से लेकर देश की आजादी तक के महान संग्रामों में किसी भी आदिवासी नेता ने ‘अपना राज-अपना शासन’ (आदिवासी पारंपारिक स्वशासन व्यवस्था) के साथ कोई समझौता नहीं किया बल्कि सीधे-सीधे कहा ‘मेरा धरती-मेरा देश छोड़ो’. इसके लिए हजारोंझार लोगों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया. आज देश के आजादी 75वां वर्ष पूरा होने जा रहा है. हमारे जल-जंगल-जमीन-खनिज को छीनने के लिए भाजपा की केंद्र सरकार नये नियम कानून ला रही है.

सुदामा खलखो, बिरसा उरांव, संदीप कुमार कश्यप, दिगंबर मुंडा, बुद्धदेव केरकेट्टा, महावीर मुंडा समेत अन्य लोगों ने कहा कि आदिवासियों के जंगल व जमीन पर दबंग लोगों व कंपनियों द्वारा अबैध ढंग से कब्जा किया जा रहा है. गांव के बिचौलियों के माध्यम से भू-माफिया मिलीभगत कर जमीन लूटने का काम कर रहे हैं. मसना-सरना की समुदायिक जमीनों को बिचौलियों के द्वारा खरीद-बिक्री की जा रही है. प्रशासनिक व सरकारी अधिकारियों के द्वारा भी आदिवासियों को भूमि संबंधी न्याय नहीं मिल रही है. अभी जमीनों का ऑनलाइन की एक बड़ी समस्या बनी हुई है क्योंकि आनलाइन नहीं होने से जमीनों का रसीद नहीं काटा जा रहा है. इससे जाति व आवासीय प्रमाण पत्र व अन्य कार्यों को संपन्न करने में समस्या पैदा हो रही है. बच्चों का भविष्य चौपट हो जा रहा है. बैठक में सरहूल पर्व में सामूहिक गीत, नृत्य, नाटक, लघु भाषण सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने पर भी चर्चा की गई.

जगरनाथ उरांव ने आदिवासियों को एकजुट करने के लिए गांव-गांव में बैठकें आयोजित करने पर बल देते हुए गांव व पंचायत से आंदोलन की शुरुआत किये जाने पर जोर दिया. बैठक के अंत में 22 सदस्यीय जिला स्तरीय एक संयोजन समिति का गठन किया गया.

अंत में निम्न प्रस्तावों को लेकर जिला स्तर पर संघर्ष करने का निर्णय लिया गया -

1. गैरमजरूआ व वनभूमि की जिन जमीनों पर आदिवासी जोत-आबाद कर एवं आवास बनाकर रह रहे हैं, वैसे तमाम जमीनों की बंदोबस्ती एवं वनपट्टा देने के लिए संघर्ष करना,

2. छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट/ संथाल परगना टेनेंसी एक्ट, मुंडारी खुंटकटी अधिकार और पांचवीं अनुसूची में निहित प्रावधानों को सख्ती से लागू कराने के लिए संघर्ष करना,

3. गैरमजरूआ खास एवं आम की सामूहिक जमीनों को सरकार भूमि बैंक बनाकर कंपनियों के हाथों सौंपने यानी निजीकरण करने के खिलाफ संघर्ष करना,

4. ग्राम सभा के अधिकार की रक्षा व उसे सशक्त बनाने के लिए संघर्ष करना,

5. केंद्र सरकार के द्वारा खूंटी जिला में ग्राम सभा को अवहेलना करते हुए ड्रोन सर्वे के माध्यम से व्यक्तिगत खतियानी जमीनों के अधिकार को सीमित कर, कागजात के अभाव में जोत-कोड़ कर रहे जमीनों से बेदखल कर, गैरमजरूआ वन भूमि सामुदायिक जमीनों को कंपनियों के हाथों देने की साजिश का पर्दाफाश करना और ग्राम सभा अधिकार के तहत सामुदायिक जमीनों की सरंक्षण करने के लिए संघर्ष करना,

6. जमीनों को ऑनलाइन करने के दौरान बड़े पैमाने पर जमीनों का घोटाला करने, सरकार के अंचल-प्रखंड अधिकारी एवं कर्मचारियों के द्वारा तकनीकी को ठीक-ठाक करने के नाम पर गरीबों, किसानों, जमीनधारी ग्रामीणों से मोटी राशि वसुलने और गरीब आदिवासियों के हाथों से जमीनों को छीनने की साजिश के खिलाफ संघर्ष करना और ऑफलाइन रसीद काटने के लिए संघर्ष करना,

7. भू-माफियाओं द्वारा गरीब आदिवासियों की जमीनों को सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से हड़पने की साजिश के खिलाफ संघर्ष करना,
8. समुदायिक भूमि के निजीकरणे के खिलाफ एवं गरीबों, आदिवासियों के बीच बंदोबस्ती, वनपट्टा, भूमि वितरण करने के लिए संघर्ष करना,

9. आदिवासियों की संस्कृति, परंपराओं, स्वशासन के सरंक्षण के लिए संघर्ष करना.

- जगरनाथ उरांव