वर्ष - 31
अंक - 6
05-02-2022

भाकपा(माले) के वरिष्ठ नेता, बिहार के पूर्व राज्य सचिव और पोलित ब्यूरो के पूर्व सदस्य कामरेड पवन शर्मा (74 वर्ष) का विगत 30 जनवरी 2022 के अपराह्न करीब 4 बजे पटना के एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया. 29 जनवरी की रात्रि 8 बजे उनको गंभीर हृदयाघात (हार्ट अटैक) हुआतुरत ही उनको पटना पीएमसीएच स्थित इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान में भर्ती कराया गया. चिकित्सकों ने बताया कि हृदयाघात इतना गंभीर है कि किसी भी क्षण वे गुजर जा सकते हैं. उन्हें बचाने का एकमात्र उपाय है कि उनकी आपातकालीन सर्जरी हो और कोरोनरी आर्टरी में स्टेंट डाला जाये. चूंकि वहां यह व्यवस्था नहीं थी इसलिए उनको तत्काल एक् निजी अस्पताल में ले जाया गया. वहां रात्रि 1 बजे उनका आपरेशन संपन्न होने के बाद उनमें सुधार होने लगा था. लेकिन अगले दिन अपराह्न 4 बजे उन्हें दोगारा गंभीर हृदयाघात हुआ जिसे संभालना संभव नहीं हो सका.

का. पवन शर्मा का जन्म 17 जून 1947 को औरंगाबाद जिले के दाउदनगर प्रखंड अंतर्गत मुसेपुर खैरा गांव के एक सामान्य किसान परिवार में हुआ. वे अपने माता पार्वती देवी और पिता राधारमण शर्मा की छठी संतान (चार बेटियों, चार बेटों) थे. हाईस्कूल तक की शिक्षा आसपास के गांवों में हासिल करने के बाद उन्होंने गया कॉलेज, गया से भूगोल विषय में बीए (ऑनर्स) और मगध विश्वविद्यालय, गया से भूगोल विषय में ही एमए की पढ़ाई पूरी की.

युवा काल में ही का. पवन शर्मा खेल, समाज, साहित्य व राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे. वर्ष 1965 से बिहार में पैदा हो रहे छात्र विक्षोभ और समाजवादी आंदोलन से प्रभावित हुए और 1967 के विधानसभा चुनाव में अपने क्षेत्र से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी रामविलास सिंह यादव को जीत दिलाने में अहम् भूमिका निभाई. आगे चलकर शहीदे आजम भगत सिंह, निराला, राहुल सांकृत्यायन, प्रेमचंद, यशपाल आदि के विचारधारा व साहित्य के असर में वे मार्क्सवाद की तरफ मुड़े. उसी समय हुए नक्सलबाड़ी के महान विद्रोह ने उनको गहरे प्रभावित किया. 1970 में जब वे एमए की पढ़ाई कर हे थे और विश्वविद्यालय के छात्रवास मे रहते थे, भाकपा(माले) के संपर्क में आए. उन्होंने छात्रवास में भाकपा(माले) समर्थक छात्रों का एक ग्रुप बनाया और एमए की परीक्षा तिथि बढ़ाने की मांग पर वहां छात्रों के सफल आंदोलन की अगुआई की. तबतक पढ़ाई से उनका मन उचट चुका था. 1972 में एमए की परीक्षा उतीर्ण करने के बाद का. पवन शर्मा अपने गांव लौट आए.

गांव में रहते हुए का. पवन शर्मा ने भाकपा(माले) जो का. जौहर, विनाद मिश्र व स्वदेश भट्टाचार्य की अगुआई में पुनः संगठित हो रही थी और भोजपुर व पटना समेत शाहाबाद व मगध के कई जिलों में जबरदस्त किसान आंदोलन चला रही थी, के नेताओं से संपर्क बनाने की कोशिश शुरू की. उनका संपर्क भाकपा(माले) के पूर्व बिहार राज्य सचिव का. रामजतन शर्मा से जो तब उनके ही प्रखंड के एकौनी गांव में जनसेवक की नौकरी करते थे, के साथ हुआ. वे पार्टी के एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के बतौर काम करने के लिए खुद को तैयार करने लगे और अंततः 5 फरवरी 1974 को उन्होंने अपना घर छोड़ दिया.

का. पवन शर्मा ने गया जिले के एक इलाके में पार्टी संगठक के बतौर काम करना शुरू किया और इस दौरान कोराय, शांतिनगर, मेंहीयन आदि समेत कई गांवों में पार्टी संगठन का निर्माण किया. तुरत ही उन्हें पटना जिले के मसौढ़ी-पुनपुन क्षेत्र में पार्टी कामकाज की जिम्मेवारी दी गई. 1975 में उन्हें पुनः गया जिले में पार्टी कामकाज की जिम्मेवारी दी गई. तबतक देश में आपातकाल की घोषणा हों गई और आपातकाल के दौरान ही गया जिले के ही एक गांव में पार्टी के दूसरे महाधिवेशन का सफल आयोजन हुआ. फिर वे अपने गृह जिले औरंगाबाद कि जिम्मेवार बने जहां अलपा समेत कई गांवों में भूमि आंदोलनों का नेतृत्व किया. मार्च 1977 में एक पार्टी बैठक में शामिल होने के लिए जाने के क्रम में वे मसौढ़ी में का. नंदकिशोर प्रसाद व अन्य साथियों के साथ पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए. फुलवारीशरीफ के थाना हाजत और बांकीपुर के केन्द्रीय जेल में उन्हें असह्य यातनायें दी गई लेकिन वे जरा भी नहीं डिगे. उन्होंने जमानत पर जेल से रिहा होने से बिल्कुल इंकार कर दिया और केन्द्र में नई बनी जनता पार्टी की सरकार द्वारा नक्सलवादयों की बिना शर्त रिहाई की घोषणा के बाद ही जेल से बाहर निकले.

जेल से बाहर आने के बाद उन्हें उत्तर बिहार में पार्टी का जिम्मेवार बनाया गया जहां उन्होंने मुजफ्फरपुर, चंपारण, समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी, वैशाली व सीवान जिलों में पार्टी संगठन को मजबूती व विस्तार देने में महती भूमिका निभाई. उत्तर बिहार की आबोहवा व पानी का उनके स्वास्थ्य पर पड़े विपरीत असर को देखते हुए वे पुनः मध्य बिहार स्थानांतरित किए गए. इसी दौर में पार्टी में शुद्धिकरण आंदोलन चला, आइपीएफ व किसान सभा समेत कई जनसंगठनों के निर्माण तथा चुनाव भागीदारी का निर्णय हुआ. का. पवन शर्मा ने तमाम पार्टी निर्णयों और उनको अमली जामा पहनाने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.

वे लंबी अवधि तक भाकपा(माले) की बिहार राज्य कमेटी के सदस्य रहे, 1987-2002 तक पार्टी केन्द्रीय कमेटी के सदस्य, 1987-1995 तक बिहार राज्य कमेटी के सचिव और 1992-96 तक पार्टी पोलित ब्यूरो के सदस्य रहे. राज्य सचिव पद से मुक्त के बाद भी उन्होंने गया, सीवान, रोहतास व नालंदा जिलों में पार्टी के जिला सचिव व प्रभारी की जिम्मेवारी निभाई. अखिल भारतीय खेत मजदूर सभा (आरा, 2003) का निर्माण हुआ तो वे इसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तथा बिहार राज्य सचिव रहे और अभी भी इसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य थे. उनका निधन भाकपा(माले) कतारों और बिहार के संग्रामी मजदूर-किसानों के लिए अपूरणीय क्षति है. वे हमेशा उनके दिलों में बने रहेंगे और सामाजिक-राजनीतिक बदलाव की प्रेरणा देते रहेंगे.

 

वे हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे – का. दीपंकर

दिवंगत पार्टी नेता कामरेड पवन शर्मा की अंतिम यात्रा 30 जनवरी 2022 की दोपहर दो बजे पटना स्थित बांस घाट पर पूरी हुई. बीती रात से ही उनका पार्थिव शरीर भाकपा(माले) के विधायक दल कार्यालय, 13 छज्जू बाग में लोगों के दर्शनार्थ रखा गया था. उनकी अंतिम यात्रा में माले महासचिव कॉ. दीपंकर भट्टाचार्य, राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो के सदस्य अमर, अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव पूर्व विधायक राजाराम सिंह, पूर्व राज्य सचिव नंदकिशोर प्रसाद, केंद्रीय कमिटी के सदस्य व ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, ऐपवा राज्य सचिव सदस्य शशि यादव, समकालीन लोकयुद्ध के संपादक संतोष सहर, भाकपा(माले) के वरिष्ठ नेता केडी यादव, आरएन ठाकुर,व राजाराम, भाकपा(माले) विधायक – अरूण सिंह, महानंद सिंह, संदीप सौरभ, रामबलि सिंह यादव, सुदामा प्रसाद, गोपाल रविदास, समकालीन लोकयुद्ध के सह संपादक प्रदीप झा व प्रबंध संपादक संतलाल समेत पार्टी की केंद्रीय व राज्य कमिटी के कई सदस्य तथा बक्सर, भोजपुर, रोहतास, सीवान, नालंदा, औरंगाबाद, अरवल, प. चंपारण, जहानाबाद, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर आदि जिलों से आये कई पार्टी नेता व सैकड़ों कार्यकर्ता-समर्थक भी मौजूद थे.

अंतिम यात्रा से पहले दोपहर 12 बजे आयोजित संक्षिप्त श्रद्धांजलि सभा में भाकपा(माले) नेताओं के अलावा शहर के चर्चित चिकित्सक डॉ. पीएनपी पाल, टिस पटना के डॉ. पुष्पेन्द्र, भाकपा के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय व नेता गजनफर नबाव, सीपीएम की केंद्रीय कमिटी के सदस्य अरूण मिश्रा व नेता गणेश शंकर सिंह, फारवर्ड ब्लॉक के अमेरिका महतो तथा सामाजिक कार्यकर्ता महेंद्र सुमन भी शरीक हुए. मौके पर उनकी पत्नी चंदेश्वरी देवी, नतिनी मैत्र, समृद्ध व उर्वशी, बेटियां मंजू शर्मा व कविता शर्मा, भतीजियां रानी मीनाक्षी, रोहिणी व वैदिह, भाई भरत शर्मा व शत्रुघ्न शर्मा व उनकी पत्नियों-बेटों समेत कई परिजन व गांववासी भी मौजूद थे. का. दीपंकर भट्टाचार्य समेत वरिष्ठ पार्टी नेताओं द्वारा उनके पार्थिव शरीर पर फूल-माला और पार्टी झंडा अर्पित करने के बाद उन्हें एक मिनट की मौन श्रद्धांजलि अर्पित की गई.

श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए कॉ. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि कॉ. पवन शर्मा के अचानक निधान से पूरी पार्टी को एक और आघात लगा है. वे पार्टी के शुरूआती दिनों के उन साथियों में थे जिन्हांने पार्टी को खड़ा करने और उसे आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई. उन्होंने बिहार के लगभग हर जिले में प्रत्यक्ष रूप से पार्टी निर्माण व कामकाज की देखरेख की और पूरी जिंदगी पार्टी व जनता की सेवा करने के फैसले पर अडिग रहे. फासीवाद के इस दौर में उनकी वैसी ही जरूरत थी जैसी कि पार्टी निर्माण के शुरूआती दिनों में थी. वे अब हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके विचार व उनकी विरासत प्रेरणा के रूप में हमेशा हमारे बीच मौजूद रहेंगे.

का. पवन शर्मा की बड़ी बेटी मंजू शर्मा ने कहा कि उनका जीवन कठिन संघर्ष और भारी उपलब्धियों से भरा रहा है. सभा का संचालन का. राजाराम सिंह ने किया.

Comrade Pawan Sharma