वर्ष - 31
अंक - 42
15-10-2022

यूएपीए,-पीएसए-एनआइए-अफस्पा को निरस्त करने, सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा करने, उनको तत्काल स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की मांग.

सैकड़ों छात्र, शिक्षक, कार्यकर्ता, नागरिक और कैद में बंद लोगों के परिजनों ने ‘इंडिया बिहाइंड बार्स’ प्रेस कॉन्प्रफेंस में शामिल होकर सभी राजनीतिक बंदियों की रिहाई की मांग की.

8 अक्टूबर 2022 को दिल्ली में भारी बारिश के बावजूद आइसा, आइलाज और आरवाईए द्वारा राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिए आयोजित कार्यक्रम में यूएपीए, पीएसए, एनआईए आदि कानूनों के तहत अलग-अलग राजनीतिक कैदियों के साथ एकजुटता में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में नागरिकों की भीड़ उमड़ पड़ी. राजनीतिक बंदियों के परिवार के सदस्यों और दोस्तों के साथ शिक्षकों और कार्यकर्ताओं ने भाजपा सरकार द्वारा लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमले के खिलाफ आवाज उठाई.

राजनीतिक कार्यकर्ता और खालिद सैफी की पत्नी नरगिस सैफी ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि खालिद के साथ हो रही नाइंसाफी देश के साथ नाइंसाफी है. खालिद का संघर्ष संविधान को बचाने की लड़ाई है. हम तब तक आराम नहीं करेंगे जब तक कि भाजपा की नफरत के शिकार सभी कैदियों को रिहा नहीं किया जाता. भाकपा(माले) के महासचिव कामरेड दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि भाजपा के खिलाफ यह लड़ाई हमारे स्वतंत्रता संग्राम की तरह महत्वपूर्ण है. नफरत और हिंसा के इस शासन से लड़ने के लिए हमें एक नई राजनीतिक चेतना जगानी होगी. डीयू में प्रोफेसर और हनी बाबू की संगी जेनी रोवेना ने यूएपीए के खिलाफ बोलते हुए कहा कि यूएपीए लोगों को दंडित करने का एक तरीका है जब आपके पास उन्हें चुप कराने का कोई तरीका नहीं बचता. यह कोई कानून नहीं है बल्कि लोकतंत्र के दमन का हथियार है.

राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा कि जब यूएपीए कानून को संसद में पेश किया गया था तब मैं संसद में मौजूद था और हमने जो आशंकाएं और आलोचनाएं व्यक्त की थीं, वे आज लोकतांत्रिक ताकतों पर इस क्रूर हमले से सही साबित हो रही हैं. जीएन साईंबाबा की संगी और सामाजिक कार्यकर्ता वसंता ने कहा कि साईंबाबा इतने सालों से तरह-तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं. इस सरकार में अपने नागरिकों के लिए जिम्मेदारी और हमदर्दी की कोई बुनियादी समझ नहीं है.

राजनीतिक कार्यकर्ता और उमर खालिद की दोस्त बनोज्योत्सना लाहिड़ी ने कहा कि जो मामले, तर्क और कानून हमारे दिमाग को बेतुके लगते है, उसे इस  सरकार की तानाशाही ने कायदा बना दिया है. वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि दुनिया में कहीं भी लोकतंत्र ने पुलिस और राजनीतिक कार्यपालिका को यह निर्धारित करने का पूरा अधिकार नही दिया है कि कोई आतंकवादी है या नहीं. यूएपीए कानून एक लोकतांत्रिक समाज के लिए एक विसंगति है. प्रोफेसर नंदिनी सुंदर ने कहा कि अब पुलिस तय कर रही है कि देश के बुद्धिजीवी क्या लिख सकते हैं और क्या नहीं लिख सकते हैं, और वही यह तय कर रही है कि लोग क्या बोल सकते हैं या और क्या नहीं बोल सकते.

स्वतंत्र पत्रकार नेहा दीक्षित ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता की बात करते हुए कहा कि निचली और ऊपर के स्तर की अदालतों का पूरा राजनीतिकरण इस अर्थ में हुआ है कि अदालतों के वरिष्ठ अधिकारी आज स्वतंत्र पत्राकारों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामले दर्ज कर रहे हैं. न्यायपालिका के स्वतंत्र चरित्र को इस सरकार और आरएसएस ने नष्ट कर दिया है. द वायर की वरिष्ठ संपादक आरफा खानम ने कहा कि आज सरकार पर सवाल उठाने वाला कोई भी व्यक्ति होने वाले दमन से भयभीत है. बिल्कुल ही आम बना दिये गए इस भय का साहस के साथ मुकाबला किया जाना चाहिए.

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