वर्ष - 31
अंक - 33
19-08-2022

आजादी की 75वीं सालगिरह के एक सप्ताह पहले, भारत 9 अगस्त 2022 के दिन ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन की 80वीं वर्षगांठ मना रहा है. मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन से ‘भारत छोड़ो’ आह्वान जारी करने के फौरन बाद कांग्रेस के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन उस आह्वान ने भारत के अनेक हिस्सों में लोकप्रिय जन-उभार पैदा कर दिया और चार समानांतर सरकारों – यूपी में बलिया, बंगाल में टमलुक, ओडिशा में तालचर और महाराष्ट्र में सतारा – को भी जन्म दिया. वस्तुतः, सतारा की समानांतर सरकार 1947 तक चली थी, और ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन तथा बरतानवी औपनिवेशिक शासकों की अंतिम निकासी के बीच ऐतिहासिक सेतु बन गई थी.

बहरहाल, इतिहास ने भारत के साथ एक क्रूर मजाक किया है. सत्ता उन ताकतों के हाथ में चली गई है, जिनके पूर्वज न केवल स्वतंत्रता आन्दोलन से अलग रह गए थे, बल्कि जिन्होंने 1857 के स्वतंत्रता युद्ध के बाद विभिन्न चरणों में औपनिवेशिक शासकों के साथ सहयोग भी किया था. 2014 में ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के नारे के साथ नरेंद्र मोदी सत्ता में आए थे. आज, गृह मंत्री अमित शाह शेखी बघार रहे हैं कि भाजपा पचास वर्षों तक भारत पर राज करेगी, और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्ढा यह बोल रहे हैं कि भाजपा भारत की एकमात्र पार्टी बन जाएगी ! विपक्ष-शासित सरकारों को अस्थिर किया जा रहा है और एक के बाद दूसरी सरकारों को गिराया जा रहा है, विपक्षी दलों के कार्यालयों पर छापा मारा जा रहा है, पुलिस उन कार्यालयों को घेर ले रही है और विपक्षी नेताओं को ईडी के द्वारा परेशान किया जा रहा है.

जब हमारा देश संविधान और राष्ट्रीय ध्वज को अंगीकार कर रहा था, तब आरएसएस ने इन दोनों को साफ-साफ खारिज कर दिया, और वह मनुस्मृति को भारत की आधारभूत संहिता तथा भगवा झंडे को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के बतौर मान्यता देने की जिद कर रहा था. स्वतंत्र और आधुनिक भारत की संवैधानिक दिशा के प्रति आरएसएस का विरोध सिर्फ वैचारिक वाद-विवाद के घेरे तक ही सीमित नहीं था. उसने पंख फूटते गणतंत्र को अस्थिर करने तथा उसे भटका देने के लिए कोई कोर कसर उठा नहीं रखी. गांधी की हत्या उसकी इसी वृहत्तर साजिश का अभिन्न हिस्सा थी. एक दूसरी साजिशाना घटना अयोध्या में 22 दिसंबर 1949 को हुई, जब अयोध्या के सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह और जिलाधिकारी केकेके नायर की कृपा से बाबरी मस्जिद के अंदर राम की मूर्ति चोरी-छिपे स्थापित कर दी गई – ये दोनों महानुभाव बाद में आज की भाजपा के पूर्ववर्ती संस्करण भारतीय जनसंघ की राजनीति में सक्रियतापूर्वक शामिल हो गए.

यहां भारत के प्रथम गृह मंत्री सरदार पटेल के शब्दों को याद करना प्रासंगिक होगा, जिन्होंने गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था. भारत सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति में यह स्पष्ट बताया गया था कि राष्ट्र को खतरे में डालने वाली नफरत व हिंसा की ताकतों को समूल उखाड़ने के लिए यह प्रतिबंध जरूरी हो गया था. श्यामा प्रसाद और गोलवरकर को लिखी अपनी चिट्ठियों में पटेल ने आरएसएस द्वारा फैलाई जा रहे सांप्रदायिक जहर और उसके विनाशकारी दुष्परिणामों का जिक्र किया था जिसके चलते गांधी समेत कई अन्य लोगों की जान गई थी. अंत में, आरएसएस ने जब संविधान और राष्ट्रीय ध्वज को लिखित रूप से स्वीकार कर लिया, तब 11 जुलाई 1949 को उसपर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया. प्रतिबंध हटाते हुए उस विज्ञप्ति में यह उम्मीद जताई गई थी कि आरएसएस अपने वायदे के मुताबिक सांस्कृतिक क्षेत्र में एक लोकतांत्रिक संगठन के तौर पर काम करेगा, कोई गोपनीयता नहीं रखेगा और हिंसा से हर्गिज दूर रहेगा. लेकिन, प्रतिबंध समाप्त होते ही आरएसएस अपने उसी पुराने रास्ते पर लौट गया, जिसे भारत ऐसी भारी कीमत चुकाते हुए महसूस करता आ रहा है.

आज मोदी सरकार इतिहास को विकृत करने और भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन की शख्सियतों को हड़पने के लिए भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ को एक बड़े मौके के बतौर इस्तेमाल कर रही है. उसने ‘ध्वज सहिता’ को संशोधित किया है ताकि झंडे को उसके इतिहास से परे हटाकर व्यवसाय की वस्तु बना दिया जा सके – यह झंडा आत्मनिर्भरता और भारत के उस पुराने फूलते-फलते हस्तकरघा उद्योग को पुनर्जीवित करने के संघर्ष का प्रतीक था जिसे अंगरेजी औपनिवेशिक हुकूमत ने ब्रिटेन के कपड़ा मिलों को बढ़ावा देने की खातिर बर्बाद कर दिया था. इस सरकार ने आजादी को इसके मूल अर्थ से भी वंचित कर दिया है. हमारे स्वतंत्रता आन्दोलन में आजादी का मतलब सिर्फ औपनिवेशिक शासन से ही नहीं, बल्कि तमाम किस्म के सामाजिक बंधनों और उत्पीड़न से भी आजादी था. ब्रिटिश शासन और विभिन्न रजवाड़ों के अधीन गुलाम लोगों की स्थिति से बाहर निकालकर हम, भारत के लोग, भारत के संविधान को अपनाकर आजाद मुल्क के आजाद नागरिक बन गए हैं. आज भारतीय जनता की ये तमाम आजादियां दांव पर चढ़ गई हैं. सच कहने, न्याय चाहने और अधिकार की मांग करने के लिए नागरिकों को सजा दी जा रही है. विभाजन के संत्रास के बावजूद, भारत ने धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणतंत्र के बतौर आगे बढ़ने का संकल्प लिया था, जिसमें भारतीय तानेबाने का निर्माण करने वाली सामाजिक विविधता और सम्मिश्रित संस्कृति को सम्मान मिल सके. आज उसी संकल्प को उलट देने की कोशिश की जा रही है और संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक भारत के संवैधानिक लक्ष्य को प्रभावी ढंग से हटाकर उसकी जगह पर फासिस्ट हिंदू राष्ट्र बनाने के आरएसएस के सौ साल पुराने सपने को स्थापित किया जा रहा है.

इसीलिए, भारत की आजादी की 75वीं सालगिरह मनाने के लिए हमारे द्वारा लगातार चलाये जा रहे ‘हम, भारत के लोग’ अभियान के हिस्से के बतौर हमलोग 9-15 अगस्त के दौरान सप्ताह भर की विशेष मुहिम चलाएं और हमारे महान शहीदों के सपनों का भारत निर्मित करने का अपना संकल्प दुहराएं :
 
‘हम, भारत के लोग’ का एक ही मिशन – अपनी आजादी, लोकतंत्र, संविधान की रक्षा करें!