वर्ष - 31
अंक - 41
08-10-2022

पटना हाई कोर्ट ने नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों के आरक्षण को गैरकानूनी बताए हुए आरक्षित सीटों पर चुनाव को रद्द कर दिया है. इसके खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई है और दो चरणों वाले संपूर्ण नगर निकाय चुनाव को ही राज्य चुनाव आयोग ने अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया है. दरअसल नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों का आरक्षण भाजपाई साजिश का शिकार हुआ है.

आइए, थोड़ा विस्तार से इसे समझने का प्रयास करें. हाई कोर्ट का कहना है कि निकाय चुनाव में पिछड़ों के आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट के 2010 के फैसले में तय ‘ट्रिपल टेस्ट’ का पालन राज्य चुनाव आयोग ने नहीं किया है, इसलिए आरक्षण गैर कानूनी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शिक्षा और सरकारी नौकरी में दिए जा रहे आरक्षण की तर्ज पर और उसी आधार पर निकाय चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता. अगर सरकार निकाय चुनाव में पिछड़ों के लिए आरक्षण चाहती है तो इसकी खातिर उसे ट्रिपल टेस्ट (तीन शर्तें) पास करने होंगे – (1). सरकार को आयोग गठित कर निकाय क्षेत्र में पिछड़ी जातियों के पिछड़ेपन की जांच करवानी होगी. आयोग की जांच के आधार पर निकाय चुनाव में आरक्षण की जरूरत सामने आनी चाहिए. (2). सरकार को आयोग की अनुशंसा के आलोक में पिछड़ों के आरक्षण के क्षेत्र और सीमा तय करनी होगी. (3). कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकता. यह तीनों प्रक्रिया लगातार, मतलब हर चुनाव से पहले जारी रखनी होगी.

हाई कोर्ट ने कहा है कि चूंकि उपरोक्त 3 शर्तों के आधार पर निकाय चुनाव में आरक्षण तय नहीं किया गया है, इसलिए यह गैरकानूनी है. हाई कोर्ट ने कहा था कि राज्य चुनाव आयोग आरक्षित सीटों को अनारक्षित (जेनरल सीट) घोषित कर इन सीटों पर फिर से चुनाव करा सकती है. लेकिन आयोग ने पूरा चुनाव ही स्थगित कर दिया.

सुनने में सुप्रीम कोर्ट की बात ठीक लग सकती है, क्योंकि उसने आरक्षण रद्द करने की बात नहीं की है. बस, पिछड़ेपन की जांच करने को कहा है. लेकिन अगर इसकी प्रक्रिया को देखें तो साफ पता चलता है कि आरक्षण के मामले में यह अड़ंगा लगाना ही है. पिछड़ी/अतिपिछड़ी जातियों का पिछड़ापन कोई अबूझ पहेली नहीं है. इसकी जरूरत दिन के उजाले की तरह साफ है. शिक्षा और नौकरी में आरक्षण के साथ पंचायतों/नगर निकायों सहित अन्य राजनीतिक संदर्भों में पिछड़ों/अतिपिछड़ों को आरक्षण उनके ऐतिहासिक पिछड़ेपन को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

बिहार में जातीय जनगणना होने वाली है. जनगणना के बिंदुओं को और व्यापक बनाने का निर्देश भी हाई कोर्ट दे सकता था जिससे कि पिछड़ों के आरक्षण के ट्रिपल टेस्ट की शर्तें भी पूरी हो जातीं. चुनाव अंतिम चरण में था. आर्थिक संकट के इस गंभीर दौर में सरकार और जनता के करोड़ों रुपए खर्च हो चुके थे. इसे रोकना न सिर्फ एक भारी आर्थिक क्षति है, बल्कि स्थानीय स्तर पर कार्यरत लोकतांत्रिक प्रणाली को भी बाधित करना है. फिर, 2007 में नगर निकाय चुनाव के नियम बनने के बाद तीन बार चुनाव हो चुके हैं और पिछड़ों को आरक्षण भी दिया जा चुका है. राज्य सरकार का कहना है कि 2007 में कानून बनने पर सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे सही कहा था. इसलिए सुप्रीम कोर्ट का 2010 का फैसला इस पर लगुनहीं होता. लेकिन हाई कोर्ट ने कुछ नहीं सोचा और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के नाम पर बहुत ही अव्यावहारिक, अविवेकपूर्ण, दुर्भाग्यपूर्ण और पिछड़ा विरोधी फैसला लिया. नतीजा सामने है, निकाय चुनाव  को ही कोर्ट के पचड़े में डाल दिया गया है. यह और कुछ नहीं, संघ-भाजपा की आरक्षण विरोधी गहरी साजिश का हिस्सा है. विगत दिनों हमने देखा है कि सुप्रीम कोर्ट तक इस भाजपाई साजिश की चपेट में आता रहा है.

लेकिन दूसरी ओर पिछड़ों के आरक्षण के पक्ष में भाजपा घड़ियाली आंसू बहा रही है और नीतीश सरकार को ट्रिपल टेस्ट की अवहेलना के लिए कोस रही है. यहां तक कि उसने इसके लिए नीतीश सरकार के खिलाफ आंदोलन भी किया है. इसे कहते हैं – चोर बोले जोर से! महज थोड़े समय को छोड़ दिया जाए तो विगत तीनों निकाय चुनावों – 2007, 2012 और 2017 – के समय भाजपा के पास ही नगर विकास मंत्रीलय रहा है. 2010 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी दो चुनाव हुए हैं, लेकिन न तो भाजपा का ज्ञान खुला और न ही उसमें पिछड़ा प्रेम जागा! वर्तमान चुनाव की प्रक्रिया भी भाजपा-जदयू सरकार के कार्यकाल में ही शुरू हुई थी. दरअसल, सत्ता खोने से बौखलाई भाजपा बिहार के सामाजिक-राजनीतिक जीवन में हर हाल में खलल डालने और व्यवधान पैदा करने में लगी है और ऊपर से पिछड़ा प्रेम का ढोंग भी कर रही है.

इसलिए निकाय चुनाव में पिछड़ों के आरक्षण में व्यवधान पैदा करने वाली भाजपाई साजिश का विरोध समय की मांग है. आरक्षण विरोधी भाजपा की साजिश के खिलाफ आगामी 8 अक्टूबर 2022 को भाकपा(माले) ने एक दिवसीय  राज्यव्यापी विरोध कार्यक्रम की घोषणा की है. इसके तहत जिला मुख्यालयों पर विरोध मार्च, विरोध सभा या भाजपा के पुतला दहन का कार्यक्रम आयोजित होगा. इस कार्यक्रम में महागठबंधन की पार्टियों को भी यथासंभव आमंत्रित किया जायेगा.

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