वर्ष - 31
अंक - 48
02-12-2022

ऐक्टू के नेतृत्व में ऑल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन के बैनर तले हजारों की संख्या में आशा कार्यकर्ता, मिड-डे-मील, आंगनबाड़ी, ममता, सहिया आदि ने विगत 21 नवंबर, 2022 को देश की राजधानी दिल्ली के जंतर मंतर पर केंद्र सरकार के खिलाफ और अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद की. उन्होंने सरकार को चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगे नहीं मानी गई तो वे पूरे देश में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाएंगीं.

स्कीम कर्मियों की प्रमुख मांगों में सरकारी कर्मचारी का दर्जा, जीवन जीने लायक 28 हजार रूपये मासिक वेतन, 60 साल के रिटायरमेंट के बाद पेंशन, कोरोना काल में काम का हर महीने 10 हजार रूपया भत्ता आदि शामिल हैं.

अखिल भारतीय स्कीम वर्कर्स फेडरेशन की राष्ट्रीय संयोजक शशि यादव और मिड-डे-मील वर्कर्स यूनियन की राष्ट्रीय संयोजक सरोज चौबे के साथ ही बिहार से आशा नेता विद्यावति, सुनीता, शैव्या पांडे, कविता, मिड-डे-मील वर्कर्स की नेता सुनीता, विभा भारती; छतीसगढ़ से स्कीम वर्कर्स नेता उमा नेताम; उत्तर प्रदेश की आशा कार्यकर्ता यूनियन की राज्य अध्यक्ष लक्ष्मी देवी, राज्य सचिव साधना पांडे, कंवलप्रीत कौर; उत्तराखंड से आशा नेता रीता कश्यप, पूजा, रिंकी जोशी; महाराष्ट्र से आंगनबाड़ी कर्मियों की नेता मदीना शेख, सुवर्णा तालेकर; झारखंड से मिड-डे-मील वर्कर्स की नेता अनिता देवी, रविन्द्र कुमार; आंध्र प्रदेश से आशा नेता जाहिरा बेगम व अतरजान बेगम; पंजाब से मिड -डे-मील की नेता अंगूरी देवी, दिल्ली से आशा नेता रमा समेत असम एवं कार्बी आंग्लोंग से भी आशा नेताओं ने भाग लिया.

कामरेड सरोज चौबे ने बताया कि ऑल इण्डिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (ऐक्टू) के आह्नान पर आयोजित यह कार्यक्रम अखिल भारतीय स्तर पर चलाये गये एक अभियान के बाद लिया गया था. इस अभियान में सभी प्रकार के स्कीम वर्कर्स ने अपने राज्यों में भाग लिया. कामरेड शशि यादव ने सभी स्कीम वर्कर्स के लिए काम के घंटों को नियत करने और उनको राज्य कर्मचारी का दर्जा के साथ कार्यस्थलों पर जेंडर सेल बनाने की मांग की.

ऐक्टू के महासचिव राजीव डिमरी ने सभी राज्यों से आये स्कीम कर्मचारियों को संबोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार सबसे महत्वपूर्ण काम करने वाले इन कर्मियों के साथ भारी अन्याय कर रही है. उनकी मांगों के पूरा नहीं होने की स्थिति में पूरे देश में संघर्ष तेज होगा.

दिल्ली की आशा नेता श्वेता राज ने कहा कि एक ओर तो विश्व स्वास्थ्य संगठन आशाओं को ‘ग्लोबल हेल्थ लीडर’ का सम्मान दे रहा है और हमारी सरकार उनका शोषण कर रही है तथा उन्हें न्यूनतम वेतन व कार्यस्थल की सुविधाओं से वंचित कर रही है. कोरोना महामारी के दौरान जनसेवा में अपनी जान तक गंवा देनेवाली बहुत सी आशाओं और अन्य स्कीम कर्मियों के परिजनों को कोई मुआवजा तक नहीं मिला.

स्कीम वर्कर्स की प्रमुख मांगें

  1. स्कीम वर्कर्स (आशा, मिड-डे मील, आंगनबाड़ी, आदि) को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दो!
  2. स्कीम वर्कर्स के लिये राष्ट्रीय स्तर पर 28,000 रूपये मासिक वेतन तय करो! पेंशन सहित समुचित सामाजिक सुरक्षा की गारंटी करो!
  3. स्कीम वर्कर्स के लिये काम के घंटे तय करो!
  4. कार्यस्थल पर होने वाले लैंगिक शोषण को रोकने के लिए जेंडर सेल का गठन करो!
  5. इन जनोपयोगी सरकारी स्कीमों (एनएचएम, मिड-डे मील, आईसीडीएस, आदि) का निजीकरण / एनजीओकरण बंद करो!
  6. कोरोना काल में दिवंगत हुए स्कीम वर्कर्स के परिवारों को उचित मुआवजा प्रदान करो!

– श्वेता राज