वर्ष - 31
अंक - 48
02-12-2022

विस्थापन की आग में झुलसता तराई का लखीमपुर खीरी जनपद

लखीमपुर खीरी के किसान एक बार फिर संघर्ष के रास्ते पर कदम से कदम मिलाकर चल पड़े हैं. यह संघर्ष हजारों परिवारों की जिंदगी बचाने का संघर्ष है. समय की विडंबना देखिए ऐतिहासिक किसान आंदोलन में लखीमपुर खीरी में हुआ किसानो का नरसंहार अंतरराष्ट्रीय चर्चा के केंद्र में आ गया था और इसके बाद ही राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकार के खिलाफ बने जन दबाव के कारण ही तीन कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा था. आज फिर उसी निघासन तहसील में शारदा नदी के बाएं बाजू की तरफ बसे दर्जनों मजरों के किसान भूमि बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

वन विभाग और जिला प्रशासन के संयुक्त तत्वावधान में कई गांवों के किसानों को उजाड़ने की नोटिस दी गई है. जनपद की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत मूड़ा बुजुर्ग इस संघर्ष का केंद्र बनता जा रहा है. विगत 13 नवंबर से मूड़ा बुजुर्ग के मौनी बाबा कुटी पर किसान महासभा के नेतृत्व में सैकड़ों किसान अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं. कारण यह है कि 17 सौ किसान परिवारों को जो 945 एकड़ जमीन पर बसे हुए हैं, वन विभाग उनकी जमीन से हटाना चाहता है.

इन किसानों के यहां आबाद होने का इतिहास बहुत पुराना है. आजादी के पहले से पूर्वांचल और पंजाब के किसानों का यहां आना शुरु हुआ जो 60 के दशक तक जारी रहा. ये किसान परिवार तराई के खाली मैदानों में बसते चले गए थे. स्वतंत्रता पूर्व लखीमपुर खीरी रियासतों द्वारा शासित जिला था और यह इलाका ओयल स्टेट के अधीन आता था. किसान ओयल के राजा को तरह-तरह का नजराना देकर उनकी सहमति से यहां बसे. बाद में किसी षड्यंत्रा के तहत ओयल राज ने इस जमीन को किसानों को अंधेरे में रखते हुए वन विभाग के नाम कर दी. यह राजाओं-जमीदारों और सरकार के मिलीभगत की एक अलग घिनौनी कहानी है.

यह इलाका वीरान घास के मैदानों व जंगलों का दुर्गम क्षेत्र था जो किसानों के बसने के बाद प्रदेश के सबसे ज्यादा उपजाऊ कृषि क्षेत्र में बदल गया है. इसलिए प्रदेश में भाजपा की योगी सरकार के आने के बाद से ही तराई को तनाव के क्षेत्र में बदलने की कोशिश चल रही है ताकि इस क्षेत्रा की भूमि को कारपोरेट कंपनियों के हाथों सौंपा जा सके.

इसी साजिश के तहत 2018 में ही हजारों किसान परिवारों को भू-माफिया घोषित कर उनको जमीन खाली करने का फरमान जारी किया गया और मूड़ा बुजुर्ग ग्राम पंचायत के 17 सौ से ज्यादा किसान परिवारों को भूमि खाली करने की नोटिस दी गई है. इस तरह के आदेश सैकड़ों गांवों, जैसे पलिया तहसील के बसई, नारंग, काप, टांडा, सुआभोज जैसे अनेकों गांव के किसानों को जारी किए गए हैं.

अधिकांश किसान परिवार आजादी के पहले से बसे हैं. जो पिछले 50 वर्षों से यहां लगातार प्रशासन और वन विभाग के हमले के खिलाफ कानूनी और लोकतांत्रिक तरीके से लड़ रहे हैं. वे अदम्य साहस के साथ प्रकृति और राज्य के जुल्म से लड़ते हुए यहां आबाद है.

अनिश्चितकालीन धरना क्यों शुरू हुआ?

मूड़ा बुजुर्ग ग्राम पंचायत दर्जनों छोटे-छोटे मजरों से मिलकर बनी है जिसमें प्रतापगढ़, संकरी गौढी, महाराजगंज, बबुरी सुतिया, त्रिशूली पुरवा, राघव पुरी, निषाद पुरवा, कामता नगर, श्रीरामपुर, घोसियाना, चकलुआ सहित अनेकों मजरे हैं. 6 नवंबर को संकरी गौढ़ी के किसान जगदीश महतिया के पुत्र रामप्रवेश यादव, जो ट्रैक्टर से किराए पर गन्ने की ढुलाई का काम करते हैं, जंगल नंबर 13 के श्री नारायण यादव का गन्ना लेकर गुलरी पुरवा विशाल के कोल्हू पर गए थे. यह गन्ना जो डनलप गाड़ी पर लदा था मुंद्रिका यादव के राजस्व भूमि गाटा संख्या 02/37 का था. वहां अचानक सुबह 7 बजे वन विभाग के लोग पहुंचे. ट्रैक्टर पर लदे गन्ने को पलट दिया और ट्रैक्टर की चाबी लेकर चले गए. गन्ना लदा ट्रैक्टर सीसीटीवी फुटेज में देखा जा सकता है. बाद में पुलिस ने शीशम की लकड़ी से भरी डनलप गाड़ी दिखाकर ट्रैक्टर का चालान काटा और दो लड़कों को जेल भेज दिया.

इसके पहले महीनों से वन विभाग के लोग गांवों में दहशत फैला रहे थे. वे किसानों से रबी की बुवाई न करने, खेतों को खाली रखने तथा तैयार गन्ने की फसलों को बिक्री रोकने का प्रयास कर रहे थे. वे चीनी मिलों पर दबाव डाल रहे हैं कि किसानों को गन्ने की पर्ची आवंटित न की जाये. चीनी मिलें लंबे समय से किसानों के गन्ने की पेराई करती आ रही हैं. किसानों की भूमि चीनी मिलों के सर्वे में गन्ना सप्लाई के लिए पंजीकृत है.

6 नवंबर की घटना ने आग में घी का काम किया और किसान संगठित होकर आंदोलन के रास्ते पर चल पड़े. किसानों ने प्रशासन को मांगपत्र दिया और कहा कि अगर अत्याचार नहीं रुका तो 13 नवंबर से वे अनिश्चितकालीन धरना शुरू करेंगे. इस धरने में जिसकी अगुवाई किसान महासभा कर रही है. धरने में भारतीय किसान यूनियन के साथ अन्य संगठन भी शामिल हो रहे हैं.

मूड़ा बुजुर्ग के किसानों की जमीन पर उच्च न्यायालय द्वारा स्थगन आदेश जारी किया गया है और किसानों का उत्पीड़न करने और उजाड़ने पर प्रतिबंध लगा है. लेकिन वन विभाग के अधिकारी उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना कर रहे हैं.

किसान महासभा 2018 से ही सरकार के किसान उजाड़ू अभियान के खिलाफ आंदोलन चला रही है. कई बार सभा, प्रदर्शन, जुलूस के द्वारा मांग पत्रा दिए जाते रहे हैं. किसानों की एकजुटता की वजह से ही अभी तक सरकार किसानों को उजाड़ने में कामयाब नहीं हो पाई है. लेकिन सरकार भी किसानों को उजाड़ने, उनके प्रतिरोध को कुचलने और उस जमीन पर कब्जा करने के लिए कटिबद्ध दिख रही है जिससे क्षेत्र में भारी तनाव और टकराव की स्थिति बनी हुई है.

किसान महासभा ने बार-बार जिला प्रशासन से अनुरोध किया कि वह न बरसों से आबाद किसानों को न उजाड़े और जमीन पर उनके मालिकाना हक की गारंटी करें और क्षेत्रा में शांति व्यवस्था बनाए रखे. 13 नवंबर से चल रहे अनिश्चितकालीन धरने की तहसील प्रशासन ने 16 नवंबर तक कोई नोटिस नहीं ली तो किसानों ने 17 नवंबर को निघासन तहसील तक किसान मार्च निकालेने का निर्णय लिया.

17 नवंबर 2022 : किसानों का लांग मार्च

17 नवंबर 2022 की सुबह से ही किसान लाल झंडे के साथ मार्च की तैयारी करने लगे. किसानों का हुजूम सुबह से ही धरना स्थल मौनी बाबा की कुटी पर इकट्ठा होने लगा. 8 बजते-बजते हजारों की तादाद में किसान जमा हो गये थे. वे अपने हाथों में लाल झंडा लिये बबुरी बन होते हुए तारानगर चौराहे पहुंचे और वहां से सड़क के रास्ते झंडी स्टेट होते हुए दिन के एक बजे तहसील निघासन पहुंच गये.

15 किलोमीटर के इस लांग मार्च में महिलाओं की तादाद और उत्साह देखने लायक था. ऐसा लग रहा था जैसे कोई लाल सैलाब सड़कों से बहता हुआ आगे बढ़ता जा रहा है. रास्ते में गांव-गांव से पीड़ित किसानों का जत्था जुलूस में शामिल होता चला गया. यह इस बात का संकेत है कि किसानों के अंदर सरकार की नीतियों के खिलाफ कितना सघन आक्रोश संघनित हो रहा है.

किसान ‘उच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान करो-किसानों को उजाड़ना बंद करो’, ‘किसानों पर दमन नहीं चलेगा’, ‘वन विभाग-जिला प्रशासन गठजोड़ मुर्दाबाद’, ‘जोर जुल्म नहीं सहेंगे’, ‘जमीन का टुकड़ा नहीं जाने देंगे’, ‘जो जमीन सरकारी है वह जमीन हमारी है’, ‘हमारी जमीन का मालिकाना अधिकार दो, वर्षों से आवाद किसानों को उजाडना बंद करो’, ‘फर्जी मुकदमे वापस लो’, ‘किसानों की जमीन पर कारपोरेट का महल नहीं खड़ा होगा’, आदि नारे लगा रहे थे.

अंत में तहसील प्रशासन ने किसानों के प्रतिनिधि मंडल से बातचीत करते हुए आश्वासन दिया कि यथास्थिति बनाए रखी जाएगी. साथ ही, 19 नवंबर को एक विस्तारित बैठक तहसील प्रशासन, वन विभाग और किसान नेताओं के साथ होगी जिसमें समस्या के निदान की कोशिश की जाएगी. इस दौरानं वन विभाग या कोई भी अधिकारी किसानों का किसी भी तरह का उत्पीड़न या आतंक फैलाने की कोशिश नहीं करेगा और किसान रबी की बुवाई और गन्ने की सप्लाई जारी रखेंगे. किसान महासभा ने अवैध रूप से खींच कर ले जाये गए किसान जगदीश महतिया के टैक्टर को तुरंत छोडने, उनपर से मुकदमा वापस लेने, झूठी साजिश रचने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की भी मांग की है. सरकार उजाड़ने के लिए अगर कटिबद्ध है तो किसान अपनी जीविका, जिंदगी और जमीन बचाने के लिए.

इस आंदोलन की अगुवाई भाकपा(माले) की केंद्रीय कमिटी सदस्य कृष्णा अधिकारी, किसान महासभा के राज्य उपाध्यक्ष रामदरश, रंजीत सिंह, रामप्रसाद, तपेश्वरी देवी, सरला देवी, रामकेवल, दिनेश सहित दर्जनों युवा महिला किसान और भारतीय किसान यूनियन के नेता कर रहे थे.

– जयप्रकाश नारायण