वर्ष - 31
अंक - 48
02-12-2022

बिहार की राजधानी पटना में विगत 19 फरवरी, 2022 को अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसियेशन (ऐपवा) की ओर से ‘महिलाओं के लिए बराबरी व न्याय के नजरिए से कानूनों में सुधार की जरूरत’ विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया.

गोष्ठी का विषय विषय प्रवेश करते हुए ऑल इंडिया लायर्स एसोसिएशन फाॅर जस्टिस (आइलाज) की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एडवोकेट मंजू शर्मा ने कहा कि पर्सनल लाॅ के स्रोत परंपराएं व प्रथाएं हैं. ये कानून लोगों की आइडेंटिटी से जुड़े हुए हैं. हमारा देश बहु-सांस्कृतिक विशेषताओं का देश है. जिस देश में विविध सांस्कृतिक पहचान के लोग रहते हों वहां ‘वन नेशन- वन लेजिस्लेशन’ की बात करना उनमें भय पैदा करने की कोशिश है. पहले भी सीएए व एनआरसी वगैरह का बात करके भय का वातावरण पैदा किया जा चुका है. इसके अलावा मोदी सरकार का कानून लाने का तरीका भी जनतांत्रिक नहीं है. सरकार संसद में बिना बहस कराए कई कानून लोगों पर थोप चुकी है. भाजपा सरकारों ने कभी भी महिलाओं के हित की बात नहीं की है. महिलाओं का हितैषी होने के नाम पर समान नागरिक संहिता की बात करनेवाली भाजपा और मोदी सरकार को पहले अपने बहुप्रचारित योजना ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ (जो कि एक असफल योजना है) को ही सफल करके महिलाओं का विश्वास जीतकर दिखलाना चाहिए था. उन्होंने कहा कि गोवा में समान नागरिक संहिता लागू है लेकिन वह भी पितृसत्तात्मक सोच से ग्रसित है. मुस्लिम पर्सनल कानून में बहु विवाह को स्वीकृति दी गई है, जिसे निरस्त किए जाने की जरूरत है. हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार एक शादी के होते हुए दूसरी शादी गैरकानूनी तो है, लेकिन यह कितना सफल है? सभी पर्सनल कानूनों में अनेक खामियां हैं, उनमें संशोधन की आवश्यकता है. संविधान, राज्य के नीति निर्देशक तत्व के अंतर्गत जहां राज्य को प्रगतिशीलता और वैज्ञानिकता को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनाने के लिए निर्देशित करता है वहीं लोगों को अपने विशिष्ट पहचान को संरक्षित रखने का मौलिक अधिकार भी प्रदान करता है. नए कानून बनाना और मौजूदा कानूनों में संशोधन समय की मांग होती है लेकिन इसका उद्देश्य किसी समुदाय विशेष को लक्षित करना और महिलाओं के नाम पर अपना राजनीतिक हित साधना नहीं होना चाहिए.

गोष्ठी को मुख्य वक्ता के बतौर संबोधित करते हुए ऐपवा महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव के समय में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जिस तरह से समान नागरिक संहिता की चर्चा शुरू की है इससे साफ जाहिर है कि भाजपा का उद्देश्य महिलाओं को न्याय व बराबरी देना नहीं, बल्कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना है. उन्होंने उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून के महिला विरोधी चरित्र, कर्नाटक के स्कूलों में छात्राओं के हिजाब पहनने के विवाद में सरकार की भूमिका, स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी की कोशिश करने वाली लड़कियों को बाधित करने की भाजपा-आरएसएस के संगठनों के अभियान आदि की चर्चा की. उन्होंने बताया कि महिलाओं की स्थिति जानने और उसमें सुधार के लिए जरूरी अनुशंसा करने हेतु वर्ष 2012 में ‘पैम राजपूत कमीशन’ का गठन हुआ था. इस कमीशन ने महिलाओं की स्थिति का अध्ययन कर 2014 में एक विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी. लेकिन भाजपा की सरकार बनने के बाद इस रिपोर्ट को ठंढे बस्ते में डाल दिया गया. उन्होंने कहा कि ‘पैम राजपूत कमीशन’ ने स्पष्ट कहा कि समान नागरिक संहिता से ज्यादा जरूरी है कि सभी पर्सनल लाॅ महिलाओं के लिए न्यायपूर्ण बनाए जायेंइस कमीशन के अनुसार ‘हिंदू कोड बिल’ और ‘स्पेशल मैरिज एक्ट’ में भी सुधार की जरूरत है. एक कानून से ज्यादा जरूरी है कि हर कानून में महिलाओं के लिए न्याय और बराबरी के लिए सुधार किए जाएं.

मीना तिवारी ने कहा कि न्यायालय में महिलाओं के अधिकार को लेकर जब भी कोई मामला सामने आया है केंद्र की सरकार महिलाओं के खिलाफ खड़ी रही है. कानूनों में सुधार के लिए सरकार को महिलाओं की राय जानने के बाद ही कदम उठाना चाहिए.

ऐपवा उपाध्यक्ष प्रो. भारती एस कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि महिलाओं से संबंधित कानूनों को सही तरीके से क्रियान्वित करने की आवश्यकता है. बाल विवाह को रोकने के लिए कानून बनाया गया लेकिन यह आज भी जारी है. जो भी कानून बने हैं वे मृतप्राय है, इन्हें प्रभावी बनाने के लिए नई पीढ़ी को आगे बढ़ना होगा. समान नागरिक संहिता की बात बीजेपी हिन्दू वोट के ध्रुवीकरण के लिए कर रही है.

एडवोकेट नीलिमा सिन्हा ने कहा कि महिलाओं से संबंधित कोई भी कानून बनाने व उसमें संशोधन करते समय महिलाओं की राय अवश्य ली जानी चाहिए. साथ ही उन्होंने महिलाओं को घर से बाहर तक भेदभाव का साहस के साथ मुकाबला करने के लिए प्रोत्साहित किया.

प्रो. मनीता यादव ने महिलाओं को शिक्षित और जागरूक बनाए जाने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि हम एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में रहते हैं और हमें कुछ मौलिक अधिकार भी मिले हुए हैं. स्वास्थ्य विभाग में कंसल्टेंट अंकिता मिश्रा तिवारी ने कहा कि बिहार के तर्ज पर पूरे देश भर में कामकाजी महिलाओं को विशेष अवकाश की सुविधा मिलनी चाहिए. महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले दर्ज तो होते हैं लेकिन सजा दिए जाने के मामले नगण्य हैं.

वरिष्ठ ऐपवा नेत्री दमयंती सिन्हा ने कहा कि ससुराल में महिलाओं की स्थिति मजबूत बनाने संबंधी कानून बनाए जाने चाहिए. कोरस की समता राय ने कहा कि महिलाओं को अपनी मानसिक गुलामी से ऊपर उठना होगा और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना होगा. गोष्ठी को विभा गुप्ता, एडवोकेट वैष्णवी, पूनम कुमारी, अफ्शां जबीं, रश्मि श्रीवास्तव समेत कई महिलाओं ने संबोधित किया.

गोष्ठी में लगभग 50 महिलाओं ने हिस्सा लिया. गोष्ठी का संचालन ऐपवा की नगर अध्यक्ष मधु मिश्रा और सहसचिव अनुराधा ने किया. कार्यक्रम की शुरुआत अफ्रशां जबीं के क्रांतिकारी गीतों से हुई.

– एडवोकेट मंजू शर्मा