वर्ष - 32
अंक - 15
08-04-2023

पटना के आइएमए हाॅल में एआइपीएफ, पटना चैप्टर का कन्वेंशन विगत 4 अप्रैल को आयोजित हुआ. इस मौके पर ‘फासीवाद के खिलाफ संघर्ष का बिहार माॅडल’ विषय पर एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया, जिसमें भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य, सामाजिक कार्यकर्ता सरफराज, एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट के डाॅ. विद्यार्थी विकास और ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने बतौर वक्ता हिस्सा लिया. परिचर्चा की अध्यक्षता पटना के जाने-माने शिक्षाविद् गालिब और संचालन एआइपीएफ के संयोजक कमलेश शर्मा ने की.

परिचर्चा में भाग लेते हुए माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कुछ ही दिन पहले बिहारशरीफ, सासाराम सहित राज्य के कुछ अन्य दूसरे हिस्सों में सांप्रदायिक उन्माद की घटनाओं से अपने वक्तव्य की शुरूआत की. उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक उन्माद-उत्पात की ये घटनाएं और इसके लिए बिहारशरीफ का चुनाव बेहद सोच समझकर किया गया. 100 साल पुराने ऐतिहासिक मदरसे को जला कर राख कर दिया गया. यह एक पहचान गिराने की कोशिश है. आगे कहा कि अगले ही दिन अमित शाह की नवादा में रैली हुई. उन्होंने शांति की अपील करने की बजाए सांप्रदायिक उन्माद की घटनाओं को वोट की राजनीति से जोड़ दिया. अमित शाह ने कहा कि गुजरात में भाजपा ने ‘स्थाई शांति’ कायम कर दी है. यह स्थायी शांति क्या है? यह मुसलमानों के लिए दंगाई भाजपाइयों का कोडवर्ड है. गुजरात माॅडल जनसंहार व हिंसा पर आधारित माॅडल है. तमाम विपक्ष शासित राज्यों में भाजपा द्वारा इसी प्रकार की कोशिशें की जा रही हैं. आज देश को बिहार माॅडल की जरूरत है. बिहार माॅडल सामंती-सांप्रदायिक हमलों को झेलते हुए जनांदोलनों को आगे बढ़ाने का माॅडल है. बिहार ने जनसंहार पर आधारित माॅडल स्वीकार नहीं किया. यही माॅडल देश को गुजरात होने से बचाएगा.

उन्होंने कहा कि इसके बावजूद बिहार में प्रशासन पर सवाल उठने ही चाहिए. नीतीश कुमार ‘सुशासन’ की बात करते रहे हैं, लेकिन सांप्रदायिक उन्माद की घटनाओं को रोक पाने में प्रशासन अक्षम साबित हुआ है. राज्य में सामाजिक सद्भाव की भावना को फिर से स्थापित करना होगा. यह वही बिहार है जिसने आडवाणी की रथ यात्रा को रोका था. इसलिए महागठबंधन सरकार को हर स्तर पर गंभीर काम करने होंगे. कहा कि बिहार की सत्ता से विदाई के बाद बिहार को गुजरात बना देने के लिए भाजपा के लोग कुछ भी करेंगे. हमें बिहार के शानदार इतिहास से प्रेरणा लेनी है. महागठबंधन सरकार से बिहार के लोगों को भारी उम्मीदें हैं और सरकार को उन्हें पूरी करनी चाहिए. सरकार को लोगों के हिसाब से चलना होगा और यदि वह इस रास्ते चलती है तो 2024 में यहां भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलेगी.

डाॅ. विद्यार्थी विकास ने कहा कि भारत में फासीवाद का आधार ब्राह्मणवाद है. भाजपा शासन में इतिहास की पाठ्य पुस्तकों से बहुत से अध्यायों को हटा दिया गया है. दूसरी ओर देश की 70 करोड़ आबादी आज भी भुखमरी के कगार पर है. लगातार मानवाधिकारों का हनन हो रहा है. बिहार की धरती से इन फासीवादियों को मुकम्मल जवाब मिलेगा.

सामाजिक कार्यकर्ता सरफराज ने कहा कि देश में मुसलमानों को डर के साए में जीना पड़ रहा है. मदरसों को तहस-नहस किया जा रहा है. बिहारशरीफ में नमाज पढ़ते वक्त मस्जिदों पर हमला किया गया. राम के नाम पर दंगा-फसाद की इस राजनीति के खिलाफ हम सबको एकजुट होना होगा.

ऐपवा महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि बिहार की महिलाओं ने काफी जद्दोजहद के बाद अपने अधिकार पाए हैं और अपनी पहचान हासिल की है. बिहार में जो संघर्ष चला है, उसमें बिहार की महिलाओं का बराबर का योगदान रहा है. उन्होंने कहा कि बिहार माॅडल को और सशक्त बनाने के लिए आशा, रसोइया आदि स्कीम वर्करों समेत महिलाओं की दावेदारी को बढ़ाना होगा और इसके लिए उनकी मांगों को पूरा करना होगा.

इससे पहले समकालीन लोकयुद्ध के संपादक संतोष सहर ने संक्षेप में एआइपीएफ के उद्देश्यों को रखा. परिचर्चा में कई प्रस्ताव भी ग्रहित किये गए जिनमें बिहार में शांति सद्भावना की बहाली और सांप्रदायिक उन्माद के पीड़ितो को मुआवजा व सुरक्षा देने की मांग की गई. साथ ही, एपीएमसी ऐक्ट की पुनर्बहाली की मांग पर चल रहे किसान आंदोलन, बागमती पर तटबंध बनाने के खिलाफ चल रहे आंदोलन तथा स्कीम वर्करों, फुटपाथ दुकानदारों, अतिथि सहायक प्राध्यापकों आदि आंदोलनों के प्रति एकजुटपा प्रकट की गई और आने वाले दिनों में आने वाले दिनों में उनके साथ रिश्ते को मजबूत बनाने का भी संकल्प लिया गया.

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में गालिब ने कहा कि सांप्रदायिक उन्माद के खिलाफ एआइपीएफ शांति-सद्भाव की अपील के साथ जनता के बीच जाएगा.

इस कार्यक्रम के बाद एआइपीएफ के पटना चैप्टर का गठन भी किया गया और इसकी 41 सदस्यीय कमेटी और 5 सदस्यीय एक सलाहकार मंडल के नामों की घोषणा की गई. सलाहकार मंडल में पटना विश्वविद्यालय इतिहास विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो. भारती एस कुमार, एनआइटी, पटना के पूर्व प्राध्यापक प्रो. संतोष कुमार, अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व जेपी आंदोलनकारी का. केडी यादव, चर्चित चिकित्सक डाॅ. पीएनपी पाल और संतोष सहर के नाम शामिल हैं.

कार्यक्रम में उपर्युक्त वक्ताओं के अलावा रामेश्वर चौधरी, रामलखन चौधरी, कुमार किशोर, पुष्पराज, उदयन राय, मंजीत आनंद साहू, अधिवक्ता मंजू शर्मा व राजाराम, डाॅ. अलीम अख्तर, रामेश्वर पासवान, सुमंत शरण, पूर्व सांसद रामेश्वर प्रसाद, विकास यादव, संतोष आर्या, नीरो डाॅस, रंजन यादव, पंकज श्वेताभ, डाॅ. सुष्मिता प्रधान, अफ्सा जबीं, आस्मां खान, विजयकांत सिन्हा, रवीन्द्रनाथ राय, गजेन्द्र मांझी, फैयाज हाली, गुलाम सरवर आजाद, मो. शहजादे आदि समेत बड़ी संख्या में नागरिक मौजूद थे.