वर्ष - 32
अंक - 19
06-05-2023

1970 में, यानी जब बिहार और झारखंड एक था, डाल्टेनगंज (तत्कालीन पलमू) जिले में उत्तरी कोयल नदी पर कूटकू डैम (मंडल डैम) का निर्माण हुआ था. सरकार की योजना थी कि नहर के जरिए मुंगेर जिला तक पानी पहुंचाया जायेगा. नहर की खुदाई का काम 1985 तक पूरा कर लिया जायेगा.

तब से इस नदी में जाने कितना पानी बह युका लेकिन आज 53 वर्षों बाद भी नहर की खुदाई का काम गया जिले के कोच व टिकारी प्रखंड तक ही हो सका है. शुरूआती कुछ वर्षों तक नहर के पानी से गया जिले के आमस, गुरुआ, गुरारू, परैया, और टिकारी तथा औरंगाबाद जिले के गोह, रफीगंज, मदनपुर तथा औरंगाबाद सदर व देव प्रखंड के उत्तरी हिस्से के लगभग सवा लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई का कार्य होता था. कूटकू डैम बरवाडीह रेलवे स्टेशन से 28 किलोमीटर दक्षिण दो पहाड़ों के बीच में अवस्थित है. डैम से 100 किलोमीटर उत्तर मुहम्मदगंज रेलवे स्टेशन के पास भीम बराज है जिसका उद्घाटन 1992 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव तथा सिंचाई मंत्री जगदानंद सिंह ने किया था.

विडम्बना यह रही कि 1992 से ही उपरोक्त दोनों जिलों के 11 प्रखंडों से गुजरने वाली नहर में गाद  भर जाने के कारण पानी आना बंद हो गया है. यह गाद (सिल्ट) खासतौर से 277 आरडी से 306 आरडी तक कमोबेश एक 11 किलोमीटर दूरी में भरा हुआ है. थोड़ा बहुत गाद तो जीरो आरडी से ही है लेकिन 277 आरडी तक अभी भी पानी पहुंचता है और वहीं आकर रुक जाता है.

तब से ही उक्त इलाके के किसान गाद की सफाई के लिए स्थानीय अधिकारियों व नेताओं से लेकर राज्य  सरकार व राज्यपाल तक का दरवाजा खटखटाते रहे हैं, आंदोलन करते रहे हैं. प्रखंड मुख्यालयों से लेकर प्रमंडल मुख्यालय गया तक पद यात्रायें हुई हैं. लेकिन हर बार संबंधित अधिकारी व राजनेता महज आश्वासन ही देते रहे हैं.

1992 में प्रगतिशील किसान मोर्चा, 1998 में भारतीय किसान संघ, 2004 में किसान-मजदूर मोर्चा एवं शहीद भगत सिंह विचार मंच और 2011 में जन चेतना समिति व जनवादी मजदूर सभा के बैनर तले संगठित होकर किसानों ने आंदोलन चलाया. किसान-मजदूर मोर्चा और शहीद भगत सिंह विचार मंच के बैनर से सर्वाधिक आंदोलन हुआ है.

हास्यास्पद बात यह है कि कुटकू डैम का निर्माण 1970 में ही हो चुका था लेकिन ख्याति बटोरने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 4 जनवरी 2020 को मेदनीनगर में जो मोहम्मदगंज बराज से 60 किलोमीटर दक्षिण है, कूटकू डैम का दुबारा शिलान्यास किया.

2022 से उत्तर कोयल नहर किसान संघर्ष मोर्चा के बैनर से गाद की सफाई के लिए चौतरफा आंदोलन जारी है. इस आंदोलन की खासियत यह है कि इसके पहले जो भी आंदोलन हुए हैं, वे गाद की सफाई के लिए सरकार पर दबाव के लिए हुए हैं. लेकिन इस बार किसान सरकार के आश्वासन के घूंट पीते-पीते ऊब गए हैं और श्रमदान के जरिए खुद से नहर उड़ाही के लिए कमर कस चुके हैं. वे श्रमदान करनेवालों के लिए दिल खोलकर भोजन, रुपए और अन्य जरूरत की सामग्री जुटा रहे हैं और अब तक लाखों रुपए का सहयोग इकट्ठा कर चुके हैं. सहयोग इकट्ठा करने का काम निरंतर जारी है और मददगारों की तादाद दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है. साथ ही, किसानों ने 277 आरडी के पास अवस्थित सुरोंधा गांव के पास धरना भी दे रखा है जहां दिन-रात सैकड़ों लोग उपस्थित रहते हैं.

गाद की सफाई और सुरोंधा गांव में धरना का संयुक्त कार्यक्रम विगत 18 अप्रैल से शुरू किया गया. सुरोंधा गांव एकदम ही निर्जन व पथरीली जगह पर है. यह दो पहाड़ियों के बीच में है. इसके उत्तर में उमगा तथा दक्षिण में डेलहो पहाड़ी है. इन पहाड़ों से दक्षिण लंगूराही नाम का जंगल है जो दूर-दूर तक चला जाता है. पहाड़ों व जंगलों का यह सिलसिला छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश से गुजरते हुए कैमूर पहाड़ी से जुड़ा जाता है. उमगा व डेलहो पहाड़ी के मध्य से ही यह नहर निकली है. सुरोना गांव के पास 277 आरडी पुल है. 306 आरडी यहां से 11 किमी दूर जीटी रोड के पार स्थित बुधौल गांव के पास है.

सुरोंधा गांव जहां किसान धरने पर बैठे हैं, बमुश्किल 30 घरों की बस्ती है. यह गांव गया शहर से 50 किमी दक्षिण-पश्चिम, औरंगाबाद से 15 किमी पूर्व-दक्षिण तथा मदनपुर प्रखंड से 4 किमी दक्षिण में अवस्थित है. यहां यादव, मुशहर तथा पासी जातियों के लोगों की छिट-पुट आबादी है. धरना स्थल पर टेंट लगे हुए हैं और शामियाना गड़ा हुआ है. यहां मात्र एक ही चापाकल है. धरना स्थल पर पीने के पानी की व्यवस्था भी नहीं है. पीने का पानी जमुनिया गांव से, जो यहां से डाई किलोमीटर दूर है, प्राइवेट टैंकलोरी से लाया जाता है.

धरना कार्यक्रम और गाद की सफाई कार्य की सूचना औरंगाबाद व गया दोनों ही जिलों के संबंधित पदाधिकारियों को दे दी गई थी. हालांकि धरना स्थल औरंगाबाद जिले में पड़ता है. एसपी स्वपन बेस्राम ने आश्वासन दिया था कि स्थानीय थाना धरनार्थियों के सुरक्षा में तैनात रहेगा. लेकिन 10वें  दिन यानी 27 अप्रैल 2023 तक प्रशासन का कोई कर्मी इसको देखने के लिए भी नहीं आया.

18 अप्रैल से धरना तथा गाद की सफाई का काम शुरू किया गया. 19 अप्रैल की दोपहर तक लगभग 10 फीट गहराई, 20 फीट चैड़ाई तथा 100 फीट की लंबाई में गाद सफाई का काम पूरा किया जा चुका था. श्रमदान में लगभग डेढ़ सौ किसान शामिल थे. तभी अचानक कार्यपालक अभियंता अपने दल-बल व पुलिस के साथ आ धमके. किसानों को मदद पहुंचाने के बजाय उन्होंने व्यवधान पैदा करने की कोशिश की. उन्होंने किसानों को काम रोक देने को कहा और उन पर मुकदमा दर्ज कर देने की धमकी दी. किसानों ने इसकी परवाह न करते हुए उनको बताया कि गाद सफाई के लिए चले आंदोलन के दौरान उन्होंने 12 घंटे तक ग्रैंड कोर्ड लाइन को जाम किया था, जिस दौरान राजधानी एक्सप्रेस जैसी गाड़ियां भी घंटों बाधित रही और राष्ट्रपति शासन के दौरान  हजारों किसानों ने राजभवन को घेर लिया था. किसान उनकी धमकी से जरा भी डरनेवाले नहीं हैं. अंत में अधिकारी पीछे हटे और उन्होंने 5 मई से प्रशासनिक स्तर से गाद सफाई करवाने का आश्वासन दिया, किसानों ने अपना धरना समाप्त नहीं किया और कहा कि 5 मई तक अगर गाद सफाई की शुरुआत नहीं हुई तो 6 मई से वे पुनः खुद से सफाई कार्य शुरू करेंगे. किसान अब भी वहां डटे हुए हैं. 1 मई को धरनास्थल पर ही मई दिवस मनाया गया जिसमें सैकड़ों किसान-मजदूर शामिल हुए. उन्होंने संकल्प लिया कि वे 2023 में ही इस नहर में कोयल नदी का लाल पानी लाकर रहेंगे.

– रामाधार सिंह 


किसान विरोधी हैं मौजूदा सत्ताधारी

उत्तरी कोयल नहर सिंचाई संघर्ष मोर्चा के बैनर से सुरोंधा (मदनपुर, ओरंगाबाद) में चल रहे धरना के 10वें दिन विगत 27 अप्रैल को अखिल भारतीय किसान महासभा के बिहार राज्य सचिव डाक्टर रमाधार सिंह ने मुख्य वक्ता के बतौर किसानों को संबोधित किया.

जितेंद्र कुमार की अध्यक्षता में चल रहे धरना को उत्तरी कोयल नहर किसान संघर्ष मोर्चा के सचिव, भाकपा(माले) नेता व गुरारू के जिला परिषद सदस्य बालेश्वर यादव, अखिल भारतीय किसान महासभा राज्य कार्यालय सचिव अविनाश पासवान, किसान मोर्चा के सम्मानित अध्यक्ष जयनंदन शर्मा, उपाध्यक्ष – किशोरी मोहन, एलके बिंदु व उपेंद्र यादव, पूर्व मुखिया व मोर्चा के कोषाध्यक्ष देवलाल सिंह यादव तथा मोर्चा के अन्य नेताओं  – उपेंद्र यादव, धनेश यादव, राम विजय यादव, विनोद प्रसाद, व  पूर्व मुखिया जितेंद्र यादव आदि ने संबोधित किया. भाकपा(माले) नेता ललन सिंह, जदयू के परैया प्रखंड अध्यक्ष सुरेश प्रसाद विद्यार्थी व राजद के पूर्व प्रखंड अध्यक्ष लालदेव यादव तथा दर्जनों महिला-पुरुष शामिल थे.

डाॅ. रामाधार सिंह ने कहा कि सरकार अगर चिंतित रहती तो सवा लाख हेक्टेयर जमीन में पानी पहुंचाने वाली नहर के गाद की सफाई हो गई रहती. तब बिहार का यह भूभाग आज जलमग्न होता और जलस्तर गिरने का रोना नहीं रोना पड़ता. सोन नदी पर बने इंद्रपुरी डैम से प्रतिवर्ष लगभग 3000000 क्यूरेक पानी गंगा से होते हुए बंगाल की खाड़ी में चला जाता है. दक्षिण बिहार सहित उत्तरी झारखंड के बड़े क्षेत्र में इससे सिंचाई पूरी होती. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिलान्यास करने के बाद उसे भी इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिया है. नितीश कुमार राजगीर, गया तथा बोधगया में देवताओं की मूर्ति पर जलाभिषेक के लिए फतुहा से गंगा का  पानी लाने के लिए चिंतित हैं, पर किसानों के खेत तथा आदमी के कंठ को पानी मिले, इसके लिए जरा भी चिंतित नहीं है. अगर कदवन जलाशय का निर्माण हो गया होता पानी बिना लिफ्रट के गया पहुंच जाता क्योंकि कदवन से गया 40 मीटर नीचे जबकि फतुहा से लगभग 60 मीटर की ऊंचाई पर है. उन्होंने उम्मीद जताई कि कमर कस कर बैठे किसान किसान इस बार इस काम को पूरा कर के ही दम लेंगे.