वर्ष - 32
अंक - 27
02-07-2023

2024 के लोकसभा चुनावों के पहले नरेंद्र मोदी एक बार फिर देश के अंदर अपनी तेजी से गिरती छवि को सुधारने के लिए अपनी तथाकथित वैश्विक छवि का सहारा ले रहे हैं. जब मणिपुर मई माह की शुरूआत से ही जल रहा है और वहां 100 से ज्यादा लोग मौत के शिकार हो चुके हैं, 200 से ज्यादा चर्चों को जला दिया गया है और 50,000 से ज्यादा लोग विस्थापित होकर राहत शिविरों में जिंदगी बचाने की कोशिश कर रहे हैं, तब प्रधान मंत्री इस संकट-ग्रस्त राज्य को अधर में लटकता छोड़कर अमेरिका की राजकीय यात्रा पर उड़ गए. उनके 9 वर्षों के शासनकाल में यह उनकी छठी अमेरिका यात्रा थी. और बाइडन प्रशासन ने भारत के गिर्द अमेरिकी सामरिक जकड़बंदी को मजबूत बनाने के लिए मोदी सरकार की चुनाव पूर्व अमेरिकी यात्रा की उनकी छटपटाहट का भरपूर फायदा उठाया है.

लोग जिस रूप में इसे देख रहे हैं और मोदी सरकार व गोदी मीडया जिस तरह से पीठ थपथपाने वाले प्रचार में जुटी हुई है, उसे परे हटाकर हमें इस यात्रा की असली सारवस्तु को समझने के लिए बाइडन-मोदी संयुक्त वक्तव्य पर गौर करना होगा. 58 पैराग्राफ लंबे इस वक्तव्य में दुनिया के लगभग सारे मुद्दों को छुआ गया है, लेकिन इसके केंद्र में है प्रतिरक्षा संबंध को गहरा और व्यापक बनाना जिसका एकमात्र मतलब है अमेरिका पर भारत की वृहत्तर सामरिक निर्भरता और नतीजतन भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का क्षरण. भारत को पहले ही ‘क्वाड’ (‘चतुर्भुज सुरक्षा संवाद’, जिसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत शामिल हैं) और आ2यू2 (इजरायल, भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात) में खींच लिया गया है जिसका प्रमुख उद्देश्य है चीन के वर्चस्व को रोकने तथा उसको घेरने की अमेरिकी नीति को लागू करना और अमेरिका-इजरायल गठबंधन को सुदृढ़ करना.

इस संयुक्त वक्तव्य में भारत के अंतरिक्ष व प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में तथा प्रतिरक्षा सेक्टर में भी अमेरिका की गहरी सामरिक घुसपैठ के तामाम चिन्ह परिलक्षित होते हैं. अब अमेरिका को भारतीय नौसेना तथा नौसेना संसाधनों तक और अधिक पहुंच मिल जाएगी, वहीं भारत को बहुत बढ़ी हुई कीमत पर 31 प्रिडेटर ड्रोन खरीदने के लिए लुभा लिया गया है, जिसके लिए भारत को 3.1 अरब डॉलर चुकाने होंगे – यह एक ऐसा करार है जिसमें राफेल घोटाले की तमाम संभावनाएं छिपी हुई है. बेशक, विनिर्माण क्षेत्र में भी कुछ करार हुए हैं, जैसे कि जेनरल इलेक्ट्रिक और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के बीच एफ-414 जेट इंजन के उत्पादन अथवा गुजरात में सेमीकंडक्टर एसेंबलिंग व टेस्टिंग टेक्नोलॉजी स्थापित करने में सहयोग के प्रस्ताव. बहरहाल, इनमें अधिकतर निवेश भारत को ही करना होगा, और समय ही बताएगा कि किसी महत्वपूर्ण प्रौद्यिगिकी हस्तांतरण से भारत को वास्तव में कोई फायदा होगा भी या नहीं.

भारत की लगातार बढ़ती अमेरिका-केंद्रिक विदेश नीति से न केवल उसे भारी-भरकम वित्तीय कीमत चुकानी पड़ेगी, बल्कि उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण रूप से इस नीति के विपरीत कूटनीतिक व राजनीतिक परिणाम सामने आएंगे. भारत के अपने खुद के राष्ट्रीय हित में उसे इस क्षेत्र में शांति तथा तमाम पड़ोसियों के साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध की जरूरत है. चीन के साथ भारत का सीमा-विवाद कूटनीतिक समाधान की मांग कर रहा है, लेकिन अगर भारत चीन को रोकने और घेरने की अमेरिकी रणनीति का घनिष्ठ संश्रयकारी बनेगा तो उससे चीन के साथ भारत के वैरभाव की खाई ही चौड़ी व गहरी हो जाएगी. भारत जितना ही ज्यादा अमेरिका-इजरायल खेमा की ओर खिंचेगा, उतना ही ज्यादा वह न केवल तमाम निकटवर्ती पड़ोसियों से, बल्कि खाड़ी के देशों से भी अलगाव में चला जाएगा और चीन के लिए वस्तुतः अपना प्रभाव का दायरा बढ़ाना आसान हो जाएगा. नए संसद भवन में लगे ‘अखंड भारत’ के नक्शे ने नेपाल समेत भारत के सभी पड़ोसियों को भारत की क्षेत्रीय विस्तारवादी आकांक्षाओं के बारे में आशंकित कर दिया है.

अमेरिकी मीडिया और आम जनमत के अच्छे-खासे हिस्से के साथ-साथ प्रवासी भारतीयों व भारतीय-अमेरिकी समुदाय में से अनेक लोगों के लिए मोदी यात्रा का मतलब एक ऐसा मौका था, जब वे भारतीय लोकतंत्र के संकट के बारे में अपने विचार पेश कर सकें और असहमति व्यक्त करने वालों के खिलाफ की जाने वाली दंडात्मक कार्रवाइयों, बढ़ती हिंसा, असुरक्षा तथा भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों को प्रभावित करने वाले भेदभाव और मीडिया की आजादी, नागरिक स्वतंत्रता व मानवाधिकारों में आते जा रहे खतरनाक क्षरण पर सवाल उठा सकें. 75 अमेरिकी सांसदों ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति बाइडन को चिट्ठियां लिखीं, कई लोगों ने मोदी के भाषण का बहिष्कार किया, और सैकड़ों लोगों ने सड़क पर उतरकर प्रतिवाद किया. पूर्व राष्ट्रपति ओबामा ने भी सार्वजनिक तौर पर इन चिंताओं को उठाया, और व्हाइट हाउस में हुए संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में मोदी को पूछा गया कि उनकी सरकार इस स्थिति को ठीक करने के लिए क्या योजना बना रही है. मोदी ने भारत के संविधान का हवाला देते हुए रटा-रटाया जवाब दिया कि भारत संवैधानिक रूप से घोषित लोकतांत्रिक गणतंत्र है, इसीलिए वहां भेदभाव और मानवाधिकार उल्लंघन की कोई संभावना नहीं है. लेकिन ओबामा की टिप्पणी तथा संवाददाता सम्मेलन के सवाल पर भाजपा की ट्रोल आर्मी और साथ ही वरिष्ठ भाजपा नेताओं की आक्रोश-भरी प्रतिक्रिया से एक बार फिर सच सामने आ गया.

वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्टर सबरीना सिद्दकी को सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी एजेंट बताकर धमकियां दी जा रही हैं, क्योंकि उन्होंने भारत में लोकतंत्र की गिरावट पर सवाल पूछे थे. व्हाइट हाउस और अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों ने सबरीना को दी जा रही धमकियों की भर्त्सना की है. यहां तक कि भाजपा के नेतागण बराक ओबामा को भी ‘हुसैन ओबामा’ कहकर ट्रोल कर रहे हैं – उन्हें एक मुस्लिम, और इसीलिए भारत के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त बताया जा रहा है. शर्मनाक ढंग से, असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिश्व सर्मा ने ट्विटर पर एक पत्रकार को जवाब दिया कि असम पुलिस अमेरिकी ओबामा की खबर लेने के पहले भारत में ही हुसैन ओबामा से निपट लेगी! वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और प्रतिरक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी ओबामा पर आरोप लगाने में व्यस्त हैं कि उनके राष्ट्रपतित्व-काल में मुस्लिम देशों पर बमबारी की गई थी – वे ठंढे दिमाग से इस तथ्य को नजरअंदाज कर दे रहे हैं कि मोदी सरकार मुस्लिम देशों के प्रति अमेरिकी विदेश नीति का मुखर समर्थक बनी रही है!

अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र में मोदी का भाषण भी गौरतलब है. भारत की आजादी की 75वीं सालगिरह की चर्चा करते हुए मोदी ने एक बार फिर एक हजार वर्ष के विदेशी शासन का जिक्र किया. एक हजार साल के भारतीय इतिहास और धरोहर का यह अस्वीकार ही हिंदू वर्चस्ववादी बहुसंख्यावाद के जहरीले विमर्श की जड़ में धंसा हुआ है, और यही अस्वीकार भारतीय मुसलमानों को आक्रांता और ‘आंतरिक शत्रु’ के बतौर पेश करता है तथा मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत व हिंसा की अनवरत मुहिम के लिए वैचारिक औचित्य मुहैया कराता है जो अब एक राज्य से दूसरे राज्यों में मुस्लिमों के बहिष्कार और निष्कासन के आह्वान के साथ जनसंहार की खतरनाक हद तक जा पहुंचा है.

जब ट्रंप वहां के राष्ट्रपति थे, तब मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा को ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ के जोरदार नारे के साथ प्रचार मुहिम का मंच बना दिया था. मोदी के श्रोताओं में मौजूद अनेक प्रवासी भारतीयों समेत अमेरिकी मतदाताओं ने अपने विवेक के साथ ट्रंप की दूसरी पारी के लिए मोदी की इस चापलूसी-भरी चीख-पुकार से खुद को दिग्भ्रमित नहीं होने दिया. चुनाव-पूर्व राजकीय यात्रा पर आए मोदी और इस यात्रा के लिए तैयार किए गए प्रचार को अनुगृहीत करते हुए बाइडन प्रशासन ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि मोदी निजाम का असली चरित्र पूरी दुनिया के सामने बेनकाब न होने पाए. जिस प्रकार अमेरिकी मतदाताओं ने ट्रंप की नई विजय के लिए मोदी की चीख-पुकार को अनसुनी कर दिया, उसी प्रकार हम आशा करते हैं कि भारतीय मतदाता भी ‘वैश्विक नेता’ होने के मोदी के दावे की सच्चाई को समझेंगे और भारत पर उनके शासन द्वारा थोपी गई निरंतर विपदा के लिए मोदी को खारिज कर देंगे.