वर्ष - 32
अंक - 29
15-07-2023

- कुमार परवेज

10 जुलाई 2023 से शुरू हुए बिहार विधानमंडल के मानसून सत्र में भाकपा(माले) विधायक दल की पहलकदमियों ने खूब सुर्खियां बटोरी. भाजपा द्वारा देश में थोपी जा रही तानाशाही-राजशाही को प्रमुख मुद्दा बनाया गया. सत्र के पहले दिन ऐतिहासिक सतमूर्ति से भाकपा(माले) विधायकों ने बड़े बैनर के साथ मार्च किया. बैनर का मुख्य नारा था – देश संविधान से चलेगा, राजदंड (सेंगोल) से नहीं. मार्च में इसके अलावा मणिपुर में जारी सांप्रदायिक हिंसा पर तत्काल रोक लगाने, वहां के मुख्यमंत्री को बर्खास्त करने, महिला पहलवानों को न्याय दिलाने और महंगाई पर रोक लगाने की मांगें भी शामिल थीं.

11 जुलाई को शिक्षक नियमावली पर भाकपा(माले) का स्वीकृत ध्यानाकर्षण भाजपा द्वारा, जो पूरे सत्र में भाजपा तेजस्वी यादव की बर्खास्तगी की मांग के बहाने सत्र को बाधित करने के प्रयास में रही, किए गए गैरजरूरी हंगामे की भेंट चढ़ गया. भाकपा(माले) विधायक दल ने भाजपा के झूठ का पर्दाफाश करते हुए अडाणी घोटाले, काॅरपोरेटों को भाजपा द्वारा दिए जा रहे संरक्षण, भ्रष्टाचारियों को भाजपा में शामिल करने आदि मसलों को उठाकर भ्उसको लगातार बैकफुट पर रखा. सदन के अंदर अपने वक्तव्य में विधायक दल नेता महबूब आलम ने कहा कि भाजपा का 9 साल का शासन विनाश काल साबित हुआ है. महंगाई व बेरोजगारी चरम पर है. लोकतंत्र व संविधान की हर दिन धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. देश को संविधान से नहीं बल्कि राजदंड से चलाने की कोशिश हो रही है. इसे पूरा देश देख और समझ रहा है. उन्होंने तेजस्वी यादव के इस्तीफे को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि भाजपा ईडी व सीबीआई का राजनीतिक इस्तेमाल कर रही है. तेजस्वी यादव पर किया गया चार्जशीट राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित है.

विधायक संदीप सौरभ ने चार वर्षीय स्नातक कोर्स के खिलाफ बिहार विधानसभा से प्रस्ताव लाने और पटना विश्वविद्यालय ऐक्ट, 1976 में संशोधन की मांग उठाई. उन्होंने कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि सरकार विश्वविद्यालयों को राजभवन से वापस ले ले. राजभवन पूरी तरह से नई शिक्षा नीति को लागू करने की मशीन बना हुआ है. ईडी के निदेशक के कार्यकाल को अवैध रूप से बढ़ाने, इतिहास बदलने की साजिश, पूरे देश में आदिवासियों पर बढ़ रहे हमले आदि मुद्दों पर भी भाजपा की घेरेबंदी की गई.

बेदखली व विस्थापन के सवाल पर भाकपा(माले) का ध्यानाकर्षण स्वीकार किया गया. इसमें कहा गया था कि बिहार की तकरीबन एक करोड़ की आबादी जिस जमीन पर दशकों से बसी हुई है, उसपर उनका मालिकाना हक नहीं है. दलित-गरीब परिवार बेदखली, विस्थापन, बुलडोजर के साये में जीने को मजबूर हैं. तटबंधों के चौड़ीकरण, व तालाबों के जीर्णोद्धार के नाम पर बुलडोजर चलाया जा रहा है. भूमाफिया के वर्चस्व के चलते पर्चाधारी भूमिहीनों को उजाड़ा जा रहा है. पीपी ऐक्ट 1948 आज की स्थिति में प्रभावी नहीं रह गया है. पंचायतों को मिलाकर नगर निकायों का विस्तार हुआ है, लेकिन नगर निकायों में आवासीय भूमि का कोई प्रावधान नहीं है. बिहार को गरीबी व पिछड़ेपन के दुष्चक्र से बाहर निकालने तथा सामाजिक न्याय के संकल्प को जमीन पर उतारने के लिए राज्य के तमाम अनधिकृत बसावटों का मुकम्मल सर्वे कराने एवं नया वास-आवास कानून बनाने की जरूरत है. यह भी कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना जिसमें 2022 तक सभी शहरी गरीबों को आवास दिलाने की बात कही गई थी, अपने लक्ष्य से कोसों दूर है. शहरी गरीबों के लिए आवास की व्यवस्था करने के प्रति केंद्रीय सरकार उदासीन है.

विधायक दल ने आशा व आशा फैसिललेटरों को न्यूनतम मासिक मानदेय देने, उनके लिए पेंशन योजना लागू करने, रसोइयों को न्यूनतम मानदेय देने, नहरों के आधुनिकीकरण, सिंचाई व गरीबों के लिए 200 यूनिट फ्री बिजली देने आदि मांगें भी उठाईं. 5 दिनों तक चले सत्रा में भाकपा(माले) विधायक दल की पहलकदमियों के कारण भाजपा को अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने में सफल नहीं हो सकी.

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