वर्ष - 32
अंक - 39
23-09-2023

जब से व्यापक आधर वाला एकताबद्ध विपक्ष सामने आया है, मोदी सरकार और संघ ब्रिगेड की चूलें हिल गई हैं. यह सरकार अच्छी तरह जानती है कि 2019 में पुलवामा संहार-कांड से उत्पन्न जुनूनी राष्ट्रवादी लहर की पृष्ठभूमि में भी राजग (एनडीए) का साझा वोट प्रतिशत 45% से ज्यादा नहीं जा सका था, जबकि भाजपा का अपना वोट प्रतिशत 40 से भी कम था. उसके बाद से राजग के तीन संश्रयकारी दल – पंजाब में अकाली दल, महाराष्ट्र में शिव सेना और बिहार में जद(यू) – भाजपा से किनारा कर चुके हैं और भाजपा की अपनी चुनावी ताकत भी स्पष्टतः छीजती जा रही है जैसा कि सबसे उल्लेखनीय तौर पर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में देखा गया है. इसीलिए भारत के विभिन्न गैर-भाजपा दलों का एक साथ आना भाजपा के लिए चिंता का स्पष्ट कारण बन रहा है.

चुनावी अंकगणित के परे जिस चीज ने भाजपा को हिला दिया है, वह है निकम्मी मोदी सरकार के विनाशकारी शासन के खिलाफ बढ़ता जनाक्रोश, और इस जनाक्रोश के साथ विपक्षी एकता के विकसित होते ढांचे की बढ़ती गत्यात्मकता का उभरता तालमेल. ‘इंडिया’ नाम ने इस एकता प्रक्रिया को सुखद सामूहिक पहचान दी है और एक उलटा विमर्श भी पैदा किया है जिसने यह स्पष्ट कर दिया है कि थके-हारे मोदी निजाम को आगामी चुनावों में असली लड़ाई का सामना करना पड़ेगा. इसके बाद से भाजपा एकताबद्ध विपक्ष पर निशाना साधने के हताशोन्मत्त प्रयासों में लग गई है. ‘इंडिया’ को ईस्ट इंडिया कंपनी और इंडियन मुजाहिदीन के साथ जोड़ने से लेकर इसे ‘भारत’ के खिलाफ खड़ा करने तक की हरचंद कोशिशें चलाई जा रही हैं.

जहां समूचा देश संसद के अचानक घोषित विशेष सत्र की वास्तविक कार्रवाहियों और उसके नतीजे की प्रतीक्षा कर रहा है, वहीं संघ-भाजपा खेमा इंडिया गठबंधन के खिलाफ जहरीला अभियान छेड़कर कोई मनमाफिक नतीजा हासिल करने में विफल ही दिख रहा है. पहली मुहिम की अगुवाई तो खुद नरेंद्र मोदी उसी जोश से कर रहे हैं जैसा कि उन्होंने कर्नाटक में अपनी जुनूनी ‘जय बजरंगबली’ चुनावी मुहिम के दौरान किया था. इस बार, संघ ब्रिगेड तमिलनाडु के युवा कल्याण मंत्री उदयनिधि स्टालिन के एक बयान पर उछलकर सामने आया है, जो उन्होंने तमिलनाडु में आयोजित एक सम्मेलन के दौरान दिया था, जिसमें उन्होंने जाति उत्पीड़न और विभिन्न किस्म के सामाजिक भेदभाव तथा अन्याय से जनता को मुक्त करने के लिए ‘सनातन’ को खत्म करने का आह्वान किया था.

‘सनातन’ शब्द को हिंदूवाद का समतुल्य बताकर और उसे उसके संदर्भ से अलग हटाकर भाजपा इसे हिंदुओं के खिलाफ एक संहारात्मक आह्वान और हिंदू संस्कृति पर हमले के बतौर पेश कर रही है. दूसरा मुद्दा इंडिया गठबंधन के उस फैसले से जुड़ा है जिसमें उसके घटक दलों ने कुछ खास टीवी चैनलों के चुने हुए चंद एंकरों द्वारा नफरत-भड़काऊ और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के इरादे से चलाई जाने वाली बहसों में हिस्सा न लेने का निर्णय लिया है. खुद इन एंकरों से भी ज्यादा एक बार फिर भाजपा ही इस मुद्दे को लेकर उछल पड़ी है और वह इस फैसले को आपात्काल के जैसा ही अभिव्यक्ति व मीडिया की आजादी पर हमला बता रही है, और यहां तक कि इस गठबंधन पर इन एंकरों के लिए संभावित शारीरिक खतरा उत्पन्न करने का भी आरोप लगा रही है. अब संपूर्ण संघ-भाजपा प्रतिष्ठान और गोदी मीडिया के प्रचारकों ने इंडिया गठबंधन को हिंदू-विरोधी और मीडिया स्वतंत्रता के दुश्मन के बतौर पेश करने का संगठित अभियान ही छेड़ दिया है.

अब हम उस मुद्दे को देखें जिसमें चंद एंकरों का नाम लेकर कहा गया है कि उनके शो में ‘इंडिया’ के नेतागण और उसके प्रवक्ता हिस्सा नहीं लेंगे. इसमें उन एंकरों की स्वतंत्रता का कहीं कोई हनन नहीं हो रहा है. यह तो ‘इंडिया’ का फैसला है कि वह उनके शो में शरीक नहीं होगा. यह तो महज एंकरों के खास समूह को चिन्हित करना भर है जो निरंतर नफरत और झूठ फैलाकर रोज-ब-रोज माहौल को प्रदूषित कर रहे हैं, और इस प्रकार एक निष्ठावान प्रचार मशीन की भांति सरकार का हित-साधन कर रहे हैं. जब गोदी मीडिया ने खुद ही दिल्ली बोर्डर पर आन्दोलन कर रहे किसानों को खालिस्तानी आतंकवादी कहा था, तो उस किसान आन्दोलन ने जबर्दस्त विरोध करते हुए गोदी मीडिया को अवैध करार दिया था और मोदी हुकूमत व अडानी-अंबानी काॅरपोरेट शक्तियों के साथ-साथ उसे भी अपने निशाने पर लिया था. इंडिया ब्लाॅक ने उसी को आगे बढ़ाते हुए उन्मादी प्रचार को पत्रकारिता समझने से इन्कार किया है.

जहां तक कि सनातन विवाद का सवाल है तो यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि अगर जाति प्रथा भारत में इतनी मजबूती से संस्थाबद्ध हुई है, तो धर्म ने उसे मान्यता देने तथा वैध बनाने में बड़ी भूमिका अदा की है. अन्याय और असमानता की इस संस्थाबद्ध प्रणाली के खिलाफ जाति-विरोधी आन्दोलन को कठिन संघर्ष करना पड़ा है. बाबासाहब अंबेडकर ने मनुस्मृति को सरेआम जलाकर स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लिए अपना जीवनपर्यंत जेहाद छेड़ा था. और, इस प्रतिवाद की अंतिम बड़ी कार्रवाई के बतौर अपनी मृत्यु के दो माह पूर्व उन्होंने हिंदू धर्म का परित्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया था. जाति के इस मूल मुद्दे पर विचार करने के बजाय मोदी सरकार ‘हिंदू खतरे में’ कार्ड खेलने के जरिये इसे दबा देना चाहती है.

सनातन का शाब्दिक अर्थ है कालातीत या शाश्वत, और हमारे हाल के इतिहास में बहुधा इस शब्द का इस्तेमाल धार्मिक अथवा सामाजिक सुधारों के प्रयासों को रोकने के लिए किया गया है. संयोगवश, जहां मोदी शासन ‘सनातन पर खतरे’ का राग अलाप रहे हैं, वहीं मोहन भागवत ने आरएसएस खेमा को बहुजन समाज पर ढाये गए दो हजार सालों के अन्याय को खत्म करने हेतु सकारात्मक कार्रवाई के बतौर अगले दो सौ वर्षों तक आरक्षण को स्वीकार करने का आह्वान किया है. संघ ब्रिगेड के विचारक प्रायः जाति को मुगल काल में पैदा की गई और ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा मजबूत बनाई गई ‘विकृति’ के बतौर पेश करते हैं. लेकिन बेशक, जब भागवत दो हजार वर्षों के जातीय अत्याचार की बात करते हैं तो हिंदू धर्म और जाति के बीच सजीव संबंध से इन्कार नहीं किया जा सकता है.

संघ परिवार का एक ही समय में अलग-अलग जुबान बोलने का इतिहास रहा है. जहां भागवत दो हजार वर्षों के सामाजिक अन्याय की बात बोलते हैं, वहीं संघ ब्रिगेड वास्तव में ‘शौर्य जागरण यात्रा’ निकालकर देश भर में उन्माद फैलाने और अंतरधार्मिक विवाह व धर्मांतरण रोकने तथा ‘सनातन धर्म’ की रक्षा करने के लिए दस हजार ‘धर्म-योद्धाओं’ की बहाली करने में मशगूल है. उदयनिधि स्टालिन को जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं. जब भारतीय जनता कीमतें, रोजगार, आजीविका, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे दैनन्दिन के ज्वलंत मुद्दों को मजबूती से उठा रही है और भारत की संवैधानिक बुनियाद व मिलीजुली संस्कृति की हिफाजत करने के लिए कृतसंकल्प है, तो संघ ब्रिगेड एक बार फिर देश को गुमराह करने और जनसंहारी हिंसा भड़काने की हताशोन्मत्त कोशिश कर रहा है. इस साजिश को अवश्य ही चकनाचूर करना होगा.