वर्ष - 32
अंक - 39
23-09-2023

- पुरुषोत्तम शर्मा

पिछले दो दशकों में नशे से तबाह हो चुका पंजाब आज फिर से एक नई राजनीतिक करवट लेने की ओर बढ़ चला है. एतिहासिक मुजारा किसान आन्दोलन और नक्सलबाड़ी किसान आन्दोलन की धरती मालवा के मानसा में भाकपा(माले) की पहल पर पिछले तीन महीने से जिले के नौजवानों द्वारा ‘नशा नहीं-रोजगार दो’ आंदोलन चलाया जा रहा है. यह आंदोलन धीरे-धीरे पूरे पंजाब में अपनी पहचान और आधार बढ़ाता जा रहा है. पंजाब की भगवंत मान सरकार जो एक माह में पंजाब से नशा समाप्त करने के वायदे के साथ सत्ता में आई थी, किसी भी तरह से इस आंदोलन को खत्म करने के प्रयासों में जुटी है. पिछले बीस वर्षों से पंजाब में नशे के कारोबार के फलने-फूलने में केंद्रीय भूमिका निभाने वाले पंजाब के सत्ताधारी वर्ग के राजनेताओं, पुलिस व प्रशासन के अधिकारियों के लिए यह आंदोलन एक चुनौती बनता जा रहा है. पंजाब में नशे का कारोबार 20 वर्ष पूर्व बादल के राज में बढ़ने लगा था. पंजाब में भाकपा(माले) के संस्थापक जिन बाबा बूझा सिंह की प्रकाश सिंह बादल की पुलिस ने 28 जुलाई 1970 की आधी रात को फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी थी, आज उन्हीं के नाम पर बना बाबा बूझा सिंह भवन और उनकी बनाई पार्टी भाकपा(माले) लिबरेशन इस आन्दोलन के केंद्र में है.

दरअसल पंजाब के सत्ताधारी वर्ग के आर्थिक हित इस नशे के काले कारोबार के साथ नाभि-नाल की तरह जुड़ चुके हैं. जैसे-जैसे चुनावों में पूंजी की भूमिका बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे सत्ताधारी राजनीतिक दलों और नेताओं का जुड़ाव नशे के काले कारोबारी तंत्र के साथ बढ़ता जा रहा है. देश में अकेला पंजाब ही ऐसा प्रदेश होगा जिसका एक भी परिवार ऐसा नहीं बचा है जिसने अपने घर, रिश्तेदारी या नजदीकी परिचितों में किसी न किसी को इस नशे के हमले में न खोया हो. पंजाब में शराब को नशे में नहीं गिना जाता है. जिस नशे के खिलाफ आज पंजाब में लड़ाई शुरू हुई है, वह हेरोइन, सेंथेटिक हेरोइन (चिट्टा) और मेडिकल नशा है. एक सर्वे के अनुसार आज पंजाब का हर सातवां व्यक्ति इस जानलेवा नशे का आदी हो चुका है. तीन करोड़ की कुल आबादी वाले पंजाब में आज प्रतिदिन 8-9 नौजवान इस नशे से मौत के मुंह में समा रहे हैं. इस हिसाब से देखा जाए तो पिछले 20 वर्षों में पंजाब के लगभग एक लाख लोग इस नशे से मौत के मुह में समा चुके हैं. इनमें 90 प्रतिशत नौजवान हैं, जिनकी उम्र 35 वर्ष से कम होती है. पंजाब के हर गांव, हर मोहल्ले के कुछ परिवारों की जमीनें, घर इस नशे की लत के कारण बिक चुकी हैं. ऐसे परिवार भी लगभग हर शहर, गांव, मुहल्ले में मिल जाएंगे जिनकी जमीनें व घर तो नहीं बचे, पर परिवार में नशे के आदी वे सदस्य भी नहीं बचे. पंजाब का किसान, मजदूर, व्यापारी, कर्मचारी यानी पंजाबी समाज में कोई भी तबका नहीं बचा है, जिसे इस नशे के काले कारोबार ने अपना शिकार न बनाया हो.

एक अनुमान के अनुसार पंजाब में इस नशे के काले कारोबार में प्रतिदिन 20 करोड़ रुपये का नशा बेचा जा रहा है. राज्य में एक वर्ष में लगभग 7,500 करोड़ रु. का यह काला कारोबार है. 14 से 35 वर्ष के नौजवान इनके मुख्य शिकार हैं. पंजाब में 53 फीसदी नशेड़ी हेरोइन का नशा लेते हैं. इनमें से 90 प्रतिशत को गांव में ही सप्लाई मिल जाती है. इस नशे के लिए एक नशेड़ी को औसतन 14 सौ रुपए एक दिन का खर्च जुटाना होता है. न सिपर्फ लड़के बल्कि लड़कियों को भी इस नशे के जाल में फंसाया जा रहा है. आज पंजाब में न सिपर्फ स्कूल कालेजों में, बल्कि शहरों-कस्बों, गांवों के हर मोहल्ले, हर गली में नशा बेचने वालों का तंत्र फैल चुका है और इनमें महिलाओं को भी जोड़ा जा रहा है. नशा तस्करी में पकड़ी जा रही ज्यादातार महिलाओं के पति और बेटे नशे का धंधा कर जेल चले गए या वे नशे की भेंट चढ़ गए. उसके बाद अपने गुजारे के लिए इन महिलाओं ने भी इस धंधे को शुरू कर दिया है. पंजाब में इस जानलेवा नशे की होम डिलिविरी भी शुरू हो चुकी है. इस नशे की लत के कारण घर के जेवर, बर्तन, राशन, गैस सिलेंडर, कपड़े, बोरिंग मशीन, खेत में लगा ट्रांसफार्मर बेच कर नशे का जुगाड़ करते बच्चे आपको हर तरफ दिख जाएंगे. नशे की प्राप्ति के लिए चोरी-झपटमारी बढ़ रही है. लड़कियों-महिलाओं को इस नशे की लत में डाल कर देह व्यापार के लिए मजबूर करने की घटनाएं भी सुनने को मिलने लगी हैं. 

चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) के सामुदायिक चिकित्सा विभाग द्वारा जारी की गई पुस्तक ‘रोडमैप फाॅर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ सब्सटेंस एब्यूज इन पंजाब’ के दूसरे संस्करण के अनुसार 30 लाख से अधिक लोग, यानी पंजाब की 15.4 फीसदी आबादी इस समय नशीले पदार्थों का सेवन कर रही है. राष्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट से पता चलता है कि नारकोटिक ड्रग एंड साईकॉट्राॅपिक सब्सटेंस एक्ट 1985 (एनडीपीएस अधिनियम) के तहत दर्ज 10,432 एफआईआर के साथ उत्तर प्रदेश अब शीर्ष स्थान पर है, इसके बाद महाराष्ट्र (10,078) है और पंजाब (9,972) का तीसरा स्थान है. हालांकि इसमें एक से तीन नम्बर तक के राज्यों की एफ़आइआर संख्या में थोड़ा ही अंतर है. मगर आबादी के अनुपात में इस आंकड़े को देखेंगे तो पंजाब महाराष्ट्र से चार गुना और यूपी से सात गुना ज्यादा है. प्रति एक लाख जनसंख्या पर अपराध की दर देखने पर पंजाब की स्थिति किसी भी अन्य राज्य की तुलना में बहुत खराब है. 2014 में रिपोर्ट किए गए एनडीपीएस अपराधों की दर पंजाब में प्रति एक लाख जनसंख्या पर 50.5 है. एक और आंकड़ा पंजाब को शीर्ष पर रखता है, 2014 के अंत में भारत में एनडीपीएस अधिनियम के तहत कुल दोषियों में से लगभग 44.5% पंजाब में थे. 2020 में पंजाब में एनडीपीएस एक्ट के तहत 11455 लोगों के खिलाफ मामले दर्ज हुए. इनमें से 10615 के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल हुए, 1652 लोगों पर दोष सिद्ध हुआ. इससे आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पंजाब में नशे के कारोबार ने माइक्रो लेवल तक अपना कितना विस्तार कर लिया है.

नशे का सवाल पंजाब के सत्ताधारियों और नौकरशाहों के लिए कितना महत्वपूर्ण है इसे राज्य के दो डीएसपी की कहानी से ही समझा जा सकता है. इनमें से एक डीएसपी सुशील कुमार गोयल को बचाने के लिए राज्य की नौकरशाही से लेकर सत्ताधारी तक पूरा जोर लगाए हुए हैं. जबकि एक और डीएसपी बलबिन्दर सिंह सेखों को 6 माह की जेल और नौकरी से बर्खास्तगी झेलनी पड़ी है. पिछले 15 वर्षों से मानसा में ही जमे रहे डीएसपी सुशील कुमार गोयल को लेकर मानसा जिले में आम चर्चा है कि वे नशा तस्करों, सत्ताधारियों व नौकरशाही के बीच एक मजबूत पुल की भूमिका निभा रहे थे. इसीलिए वे आज मानसा में चल रहे नशा विरोधी आंदोलन के निशाने पर हैं और आंदोलनकारियों की मांग है कि डीएसपी गोयल को बर्खास्त कर उनकी संपत्ति और संपर्कों की जांच हो. पर राज्य सरकार और राज्य की नौकरशाही इसके लिए तैयार नहीं है और उसे बचाने के लिए उल्टे नशा विरोधी आन्दोलन के कार्यकर्ताओं पर फर्जी मुकदमे दर्ज कर चुकी है. जबकि राज्य में नशे के काले कारोबार के खिलाफ ईमानदारी से काम करने वाले एक और डीएसपी बलविंदर सिंह सेखों, जिन्होंने चंडीगढ़ उच्च न्यायालय में भी पंजाब के नशा तस्करों व सत्ताधारी लोगों के संपर्कों को लेकर एक सीलबंद लिफाफा जमा किया था, सरकार और नशे के काले कारोबारियों के निशाने पर आ गए. इसके लिए उन्हें नौकरी से बर्खास्तगी और 6 माह की जेल भी झेलनी पड़ी है.

पंजाब की ऐसी पृष्ठिभूमि में अप्रैल 2023 के अंत में भाकपा(माले) लिबरेशन के केंद्रीय कमेटी सदस्य और मालवा क्षेत्र के इंचार्ज कामरेड राजविंदर सिंह राणा के पास मानसा शहर का एक नौजवान परविंदर सिंह झोटा जो मानसा में पहले एक दबंग युवा के रूप में जाना जाता था, अपने कुछ साथियों के साथ पहुंचा. उसने बताया कि वो और उसके कई साथी पहले इस नशे के चुंगल में फंस चुके थे. पर अब वे इस चुंगल से बाहर आ रहे हैं और पंजाब की जवानी को मौत के मुंह में धकेलने वाले इस नशे के काले कारोबार के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई लड़ने का मन बनाए हैं. इस लड़ाई को लड़ने के लिए उसने और उसके साथियों ने एक संगठन ‘एंटी ड्रग टास्क फोर्स’ बनाया है. उसने कहा हम इस सवाल पर सभी राजनीतिक पार्टियों के चरित्र से परिचित हैं. हम बचपन से आप लोगों को मजबूती से लड़ते हुए देख रहे हैं. इसलिए हमारा भरोषा सिर्फ लिबरेशन पार्टी पर ही है. इस लड़ाई में आप लोग ही हमारा साथ दे सकते हो और आपके मार्ग निर्देशन में ही यह लड़ाई सही दिशा में आगे बढ़ सकती है. इस सवाल पर कामरेड राणा ने पार्टी की जिला कमेटी से बात की. पार्टी की मानसा जिला कमेटी ने मई दिवस के मौके पर पार्टी मुख्यालय बाबा बूझासिंह भवन में जिले भर के पार्टी कार्यकर्ताओं व ‘एंटी ड्रग टास्क फोर्स’ के इन नौजवानों को लेकर एक कन्वेंशन आयोजित किया. इस कन्वेंशन में नशा विरोधी अभियान को मानसा शहर के साथ ही पूरे जिले में चलाने, इसके लिए वार्ड, गांव, मोहल्लों में नशा विरोधी बैठकों के साथ ही नशा विरोधी कमेटियां बनाने और सरकार व जिला प्रशासन से नशे के काले कारोबार को रोकने की मांग करने का निर्णय हुआ.

भाकपा(माले) ने इस आन्दोलन को ‘नशा नहीं, रोजगार दो’ नारे के तहत चलाने का आह्वान युवाओं से किया. इस अभियान को मानसा शहर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में भी आम जनता का भरपूर समर्थन और सहयोग मिलने लगा. लेकिन नशा विरोधी इस अभियान से जिले के नशा विक्रेता, नशे के कारोबार में लिप्त मेडिकल स्टोर मालिक और पुलिस काफी परेशान हो गए. इस मुहिम को शुरू होते ही रोक देने और इससे जुड़े कार्यकर्ताओं में भय पैदा करने के लिए पुलिस ने 3 मई को पांच नेतृत्वकारी युवकों के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 (हत्या के प्रयास) के तहत एक झूठा मामला दर्ज कर दिया. इसके बाद एंटी ड्रग टास्क फोर्स के प्रमुख परविंदर सिंह झोटा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. पुलिस की इस साजिश के खिलाफ कामरेड राजविंदर सिंह राणा के नेतृत्व में 250 नौजवान, महिला, माले कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतर कर मानसा थाना का घेराव कर दिया. आंदोलनकारियों ने परविन्दर सिंह झोटा को तत्काल रिहा न करने पर 2 दिन बाद जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन की घोषणा की. 5 मई को एक हजार लोगों ने जिला मुख्यालय पर जोरदार प्रदर्शन कर धरना दिया. धरने के दौरान ही पुलिस ने परविंदर झोटे को कोर्ट में पेश कर उस पर दर्ज मुकदमें में जांच उपरांत उसे निर्दाेष पाने पर रिहा करने की कोर्ट से अपील की. कोर्ट ने झोटे को तुरंत रिहा कर दिया. रिहा होते ही परविंदर झोटा धरना स्थल पहुंच गया. उस समय आन्दोलनरियों का जोश देखते बन रहा था.

अगले दिन एसएसपी मानसा ने भाकपा(माले) के नेताओं और युवाओं के साथ बैठक की और जिले में नशे की बिक्री पर पूरी तरह से नियंत्रण के लिए एक महीने का समय मांगा. नेताओं ने इस संबंध में अपनी सहमति दी और कहा कि हम अब से डेढ़ महीने बाद पानी 21 जुलाई 2023 को यहां जिला स्तरीय जनसभा करेंगे और पुलिस के काम को समीक्षा करेंगे. इसके बाद भाकपा(माले) नेता राजविंदर राणा, जसबीर कौर नत्त, कृष्णा कौर, बलविंदर घरांगना, दर्शन दानेवाला, गुरसेवक मान, एंटी ड्रग टास्क फोर्स के नेता परविंदर झोटा, गगन शर्मा, अमन पटवारी सहित कई नौजवान शहर, कस्बों, गांवों, स्कूल-कालेजों में नशे के खिलाफ बैठकें कर नशा विरोधी कमेटियों के गठन में जुट गए. वहीं जिला मुख्यालय पर लगे पक्के मोर्चे पर भाकपा(माले) केन्द्रीय कंट्रोल कमीशन के सदस्य कामरेड नछत्तर सिंह खीवा, झोटा के पिता पूर्व सैनिक भीमसिंह, गुरदेव, ग्यानी दर्शन सिंह सहित दर्जनों कार्यकर्ता कार्यक्रम को चलाने में जुटे रहे. इस मुहिम का दबाव स्थानीय नशा तस्करों और पुलिस प्रशासन पर साफ दिखने लगा. पुलिस को ऐसे नशा बेचने वाले मेडिकल स्टोरों और स्थानीय छुटभैये तस्करों के खिलाफ एक्शन लेना पड़ा. मानसा जिले से दर्जनों ऐसे लोग गिरफ्तार हुए और जेल भेजे गए. लगभग आधा दर्जन मेडिकल स्टोर बंद कराने पड़े. मानसा शहर से शुरू हुआ ‘नशा नहीं रोजगार दो’ आंदोलन धीरे-धीरे मानसा जिले के गांवों और अन्य कस्बों में भी फैलने लगा. इस मुहिम को जनता का व्यापक समर्थन मिलता देख नशे का काला कारोबारी तंत्र इस आंदोलन को खत्म करने की योजना में लग गया.

15 जुलाई 2023 की सुबह बड़ी संख्या में पुलिस बल ने परविंदर झोटे के घर को घेर लिया. इसकी खबर कामरेड राजविंदर राणा को मिली और वे झोटे के घर पहुंचे. कामरेड राजविंदर सिंह राणा समेत कई लोगों के विरोध के बावजूद पुलिस ने झोटे को जबरन दोबारा गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने आरोप लगाया कि झोटे और उसके सहयोगी युवकों ने शहर के एक मेडिकल स्टोर मालिक से 400 रुपये की फिरौती ली है. साथ ही नशे के कैप्सूल बेचने वाले एक केमिस्ट के गले में चप्पलों का हार पहनाकर उसकी मानहानि की है. इन दोनों ही मामलों में उन पर एफआइआर दर्ज है. लेकिन पुलिस यहीं पर नहीं रुकी. अगले दिन पंजाब पुलिस के एडीजीपी से बठिंडा में प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि नशे के सौदागरों को रोकना या पकड़ना पुलिस का काम है और हम परविंदर या किसी और को ऐसे मामले में दखल नहीं देने देंगे. इसके बाद जिला बठिंडा के थाना मोड़ मंडी में भी परविंदर सिंह और कई अन्य लोगों के खिलाफ एक नया मामला दर्ज कर दिया गया. इसके तुरंत बाद ही भाकपा(माले) की पहल पर 19 जुलाई 2023 को पार्टी कार्यालय बाबा बूझा सिंह भवन में शहर व जिले के किसान, मजदूरों, युवा, सामाजिक, व्यापारिक संगठनों को एक बैठक बुलाई गयी. इस बैठक में उगराहां के संगठन को छोड़ करीब साठ संगठनों ने हिस्सा लिया. चर्चा के बाद बैठक में इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए बैठक में शामिल प्रत्येक संगठन के एक प्रतिनिधियों को लेकर राज्य स्तरीय नशा विरोधी एक्शन कमेटी बनाने का निर्णय लिया गया. पाटी की केंद्रीय कमेटी के सदस्य कामरेड राजविंदर सिंह राणा को जो पहले दिन से ही इस आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे हैं, आम सहमति से इस कमेटी का संयोजक चुना गया. 23 जुलाई को मानसा में एक बड़ी संयुक्त रैली का आह्वान किया गया. बैठक में फैसला लिया गया कि पंजाब में सत्ता में रह कर नशे के कारोबार को बढाने वाले अकाली दल, भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के किसी भी बड़े नेता को नशा विरोधी रैली में बोलने की इजाजत नहीं दी जाएगी.

23 जुलाई 2023 को ‘नशा विरोधी ज्वाइंट एक्शन कमेटी’ के बैनर तले मानसा की मुख्य सड़कों पर जिले के अलावा पंजाब के विभिन्न कोनों से अपनी पहल पर लगभग 7-8 हजार लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. जबकि, उस दिन मानसा और पंजाब का एक तिहाई हिस्सा बाढ़ में डूबा था. रैली को किसान नेता राकेश टिकैत, रुलदू सिंह मानसा, डाॅ. दर्शन पाल, हरिंदर सिंह लख्खोवाल, जगजीत सिंह डल्लेवाल, मजदूर मुक्ति मोर्चा, पंजाब के प्रमुख नेताओं गोबिंद सिंह चाजली, विजय कुमार भीखी, ऐपवा नेत्री जसबीर कौर नत्त समेत पंजाब के लगभग सभी किसान नेताओं ने संबोधित किया. मंच संचालन एक्शन कमिटी के संयोजक कामरेड राजविंदर सिंह राणा ने किया. एक्सन कमेटी ने सभा में पंजाब में नशे के कारोबार पर पूर्ण रोक लगाने, परविंदर झोटे की बिना शर्त रिहाई, ऐसे झूठे मामले रद्द करने, किसी इलाके में नशे के कारण किसी युवक की मौत हो जाती है तो उसके लिए संबंधित थानेदार और डीएसपी को जिम्मेदार ठहराते हुए परिवार को उचित मुआवजा देने की मांगों को पूरा कराने के लिए संघर्ष जारी रखने का ऐलान किया. सर्वसम्मति पर उसी दिन से जिला मुख्यालय मानसा पर अनिश्चितकालीन धरने की शुरुआत कर दी. इसके बाद बारी-बारी से सभी संगठनों ने इस स्थाई धरने में अपनी भागीदारी करनी शुरू कर दी.

इस बीच इस आन्दोलन के समर्थन में पूरे राज्य से लोगों का आना जारी रहा. आन्दोलन कारियों ने झोटे की रिहाई न होने पर 1 सितम्बर को जिले के आप विधायकों के घरों के आगे भी पक्का मोर्चा लगाने का आह्वान किया. इसके लिए विधायकों को चेतावनी पत्र सौंपे गए. 31 अगस्त को जिले के दो आप विधायक मुख्यमंत्री के ओएसडी को लेकर धरना स्थल पर पहुंचे और झोटे को जल्द रिहा करने के वायदे के साथ विधायकों का घेराव कार्यक्रम स्थगित करने की अपील की. एक्शन कमेटी ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया. एक सप्ताह बाद भी परविंदर झोटे के रिहा न होने पर एक्शन कमेटी ने 12 सितम्बर से आप विधायकों के आवास घेरने का एलान कर दिया. अंततः सरकार और जिला प्रशासन ने आंदोलन के दबाव में 11 सितम्बर को झोटे के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस लेकर उसकी रिहाई के आदेश करा दिए. 11 सितम्बर की रात को झोटा जेल से रिहा हो गया. झोटे को रिहा करने के बाद अब पुलिस-प्रशासन स्थाई धरना उठाने का दबाव बनाने लगा था. लेकिन 15 सितम्बर को बाबा बूझासिंह भवन में नशा विरोधी एक्शन कमेटी की बैठक ने पंजाब में नशे के काले कारोबार के खत्म होने तक सर्वसम्मति से आंदोलन को जारी रखने का फैसला लिया है. इस आन्दोलन से बर्खास्त डीएसपी बलविंदर सेखों सहित कई नशा विरोधी समूह जुड़ रहे हैं.

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