वर्ष - 33
अंक - 12
16-03-2024

-- मीना तिवारी

[ मुजफ्फरपुर के सकरा प्रखंड के सकरा वाजित गांव में 4 मार्च को भुखली देवी और उसके पति शिवनाथ दास की आत्महत्या की घटना की जानकारी के बाद ऐपवा महासचिव मीना तिवारी के नेतृत्व में एक टीम ने 12 मार्च 2024 को पीड़ित परिवार से मुलाकात की. इस टीम में मीना तिवारी, भाकपा(माले) राज्य कमिटी सदस्य जितेन्द्र यादव, ऐपवा नेत्री रानी प्रसाद, विवेक कुमार, राजेश रंजन और प्रेमलाल शामिल थे. इससे पहले 4 मार्च को घटना की जानकारी मिलते ही भाकपा(माले) जिला कमेटी की ओर से शत्रुघ्न सहनी, रौशन कुमार और अन्य नेताओं ने गांव का दौरा किया था.]

भारत में कार्यरत माइक्रोफाइनेंस कंपनियां छोटा कर्ज देने और उस पर मोटा सूद वसूलने का व्यवसाय करती हैं. ये संस्थाएं ग्रामीण क्षेत्रों में पचास हजार रूपये और शहरी क्षेत्रों में एक लाख पच्चीस हजार रुपए तक का कर्ज देकर 30% तक सूद वसूलती हैं. माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं के संचालन के नियम-कानून इतने उदार और लचीले हैं कि मुनाफे के लिए ये हर मनमानी करते हैं और इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है. यूं तो यह पूरे देश की परिघटना है लेकिन कोविड के बाद बिहार में इनका व्यवसाय बहुत तेजी से बढ़ा है. खासतौर पर बिहार के उन इलाकों में जहां ज्यादा गरीबी है, वहां ये संस्थाएं काफी फल-फूल रही हैं.

मार्च 2023 के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ये कंपनियां सबसे ज्यादा व्यवसाय बिहार में कर रही हैं. बिहार में इन्होंने लगभग 49000 करोड़ रुपए उधारी दिया है. ये आधुनिक जमाने की महाजनी व्यवस्था है. ये संस्थाएं गरीबों के घर जाकर कर्ज देती हैं और वसूली के लिए लठैत की जगह मामूली वेतन पर एजेंट बहाल करती हैं. ये कर्ज देने और सूद वसूलने का टारगेट पूरा करने के लिए एक से बढ़कर एक जाल-फरेब करती हैं, क्रूरता करती हैं और कर्जदारों पर दबाव बनाए रखती हैं. इन संस्थानों में आपसी प्रतिस्पर्धा भी है. इसलिए एक ही समय में कई कंपनियां जरूरतमंदों को कर्ज लेने के लिए दबाव बनाती हैं.

एमएफआई एजेंट कर्ज देते समय जितना उदार होता है, वसूली के समय उतना ही क्रूर. महिलाओं को धमकी देना और उनके साथ गाली-गलौज और मारपीट करना तो इनका सामान्य व्यवहार है. इनसे कर्ज लेने वाली महिलाएं हर दिन न जाने कितनी हिंसा और अपमान झेल रही हैं. यह राष्ट्रव्यापी समस्या है लेकिन यहां हम बिहार के संदर्भ में चर्चा कर रहे हैं जो भुखली देवी और उसके पति शिवनाथ दास की मौत के बाद सामने आई है.

मुजफ्फरपुर के सकरा वाजिद गांव की भुखली देवी और उसके पति शिवनाथ दास की कहानी इस क्रूरता और जाल फरेब का उदाहरण है जहां उन्हें कर्ज के फंदे से निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला और अंतत दोनों ने गांव के ब्रह्मस्थान (पूजा स्थल) के पीपल के पेड़ में फांसी लगाकर 4 मार्च 2024 को आत्महत्या कर ली.

भुखली देवी के परिवार वालों ने जो कागजात दिखाए  उसके मुताबिक भुखली ने 30, 000 रूपये का पहला कर्ज 4 जनवरी 23 को 25% ब्याज पर लिया और उस कर्ज को भरने के लिए इन्हें एक के बाद एक अलग-अलग कंपनियों से चार और कर्ज दिया गया. चूंकि 60 वर्ष की उम्र के बाद कर्ज नहीं देने का प्रावधान है इसलिए उम्र कम दिखने के लिए भुखली और उसके पति के कई जाली आधार कार्ड भी इन कंपनियों ने बनवाये.

शिवनाथ दास को 400 रूपया वृद्धावस्था पेंशन मिलता था. वह भगत का काम करते थे और आजीविका के लिए कुछ घरों में गाय-भैंस का दूध निकालने का भी काम करते थे जिसके लिए उन्हें प्रत्येक घर से 200 रूपये मिलते थे. कायदे से इनकी स्थाई आमदनी महीने में 2000 रुपए भी नहीं थी. इसलिए, एक बार कर्ज लेने के बाद कर्ज चुकाने के दबाव से ये उबर नहीं पाए. कंपनियां उन पर दबाव बनाए हुए थीं और एजेंट उनके घर जाकर गाली-गलौज कर चुके थे और डनहोंने उनसे साफ कह दिया था कि मरने पर ही छुटकारा मिलेगा नहीं तो कर्ज की रकम तो चाहे जैसे भी हो हम वसूल ही लेंगे. भुखली देवी की बकरी वे पहले ही ले जा चुके थे.

भुखली देवी और शिवनाथ दास के दो लड़के हैं. बड़ा बेटा रामबाबू दास राज मिस्त्रा का काम करता है जबकि छोटा बेटा श्याम कुमार दास अपनी पत्नी सुनीता के साथ सिलीगुड़ी में मजदूरी करता है. रामबाबू दास के तीन बच्चे हैं. 13 और 11 साल के दो बेटे हैं और सबसे बड़ी बेटी 14 साल की है जो ब्रेन ट्यूमर की मरीज है. रामबाबू ने बताया कि उसके इलाज के लिए भी उन्होंने एक लाख का कर्ज लिया है. वे उसे लखनऊ और चंडीगढ़ भी दिखाने ले गए लेकिन डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है. जब हमारी टीम भुखली देवी के दो कमरों वाले घर पहुंची, वह लड़की बरामदे में बिछावन पर पड़ी हुई थी. ब्रेन ट्यूमर के कारण उसकी दोनों आंखों की रोशनी जा चुकी है. वह किसी को देख नहीं सकती और मुश्किल से चल-फिर पाती है.

4 मार्च के उस दुखद दिन से लगभग सप्ताह दिन पहले ही पति-पत्नी दोनों ने घर छोड़ दिया था. उन्होंने बड़े बेटे से 200 रूपये उधार लिये और ‘रिश्तेदारों के घर जा रहे हैं’ – यह कहकर घर से निकल गए. मोबाइल फोन भी घर पर ही छोड़ गए. इस बीच 1 मार्च को एजेंट फिर आया. उसने यह कहते हुए कि इसे नीलाम कर पैसा चुकाएंगे, भुखली देवी की छोटी बहू के कमरे से पलंग और अन्य सामान निकाल कर बाहर फेंक दिये. बड़ी बहू किरण को दो एजेंटों ने बाल पकड़ कर खींचते हुए घर से बाहर निकालते हुए कहा कि वह तुम्हारी सास थी, इसलिए तुम पैसा भरो. किरण की दो बकरियां भी वे खोल कर ले गए. किरण का कहना था कि सास-ससुर अलग रहते हैं. खाना सबका अलग बनता है फिर भी एजेंटों के दबाव से वह इतनी विचलित हुई कि दूसरे दिन बैंक से उसने पैसा निकाल कर एजेंट के कुछ किस्तों की भरपाई की. 4 मार्च को एजेंट फिर आने वाला था. वह आता इससे पहले ही सुबह-सुबह भुखली और उसके पति को लोगों ने गांव से (घर से लगभग 1 किलोमीटर दूर) बाहर ब्रह्मस्थान के पीपल के पेड़ से लटके पाया. लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाने के लिए पुलिस ने वाहन उपलब्ध नहीं करवाया और उनके बेटों को फिर 4500 रुपया कर्ज लेना पड़ा. कंपनियां अपने कर्जदारों का इंश्योरेंस करवाती है इसलिए भुखली की मौत से कंपनी को कोई घाटा नहीं हुआ है. नामजद रिपोर्ट होने के बावजूद अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है न ही परिजनों से मिलने कोई सरकारी अधिकारी पहुंचा है. उनका मुआवजा देने की बात तो बहुत दूर की है.

समूह की महिलाओं से जब बात करने की कोशिश की गई तब वे सहमी हुई चुपचाप खड़ी रहीं. बहुत कुदेरने पर वे कुछ-कुछ बोल रही थीं. इस घटना ने उन्हें सदमे में डाल दिया है. साथ ही, उन्हें भय है कि अगर कुछ बोलेंगी तो एजेंट आगे कर्ज नहीं देगा और कर्ज के बिना काम कैसे चलेगा?

कर्ज : यह कर्ज ही बिहार में गरीबों की आय का जरिया है. जीविका के जरिए लखपतिया दीदी बनाने के दावों के बीच हकीकत बहुत कड़वी है. पूरे देश में कर्ज देने में बैंकों से ज्यादा हिस्सेदारी इन माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं का है. इसके डिफाल्टर कम होते हैं. मार्च 23 में 1.01% लोग थे जो समय पर भुगतान नहीं करते थे. बहुत सारे अध्ययनों के निष्कर्षों से पूंजीपतियों ने यह समझ लिया है कि महिलाएं बिना देर किए कर्ज लौटाती हैं. वे पुरुषों से नीचे स्तर की प्राणी हैं इसलिए उनको अपमानित कर दबाव भी बनाया जा सकता है. इसीलिए वे महिलाओं को ही कर्ज देते हैं. यह कर्ज किसी को आत्मनिर्भर बनाने में कम, कर्ज के बोझ में दबाए रखने में ज्यादा काम आता है.

गरीबों द्वारा कर्ज लेने की वजहों के अध्ययन की जरूरत है. लेकिन अनुमान से कहा जा सकता है कि यह कर्ज घर में किसी के बीमार पड़ने पर ज्यादा लिया जाता है. दूसरे नंबर पर बेटियों की शादी के लिए या फिर किसी रोजगार के लिए घूस देने आदि के काम के लिए लिया जाता है. इसके बाद बकरी खरीदने या अन्य व्यवसाय के लिए लिया जाता है. अगर व्यवसाय में घाटा हुआ तो कर्ज लौटाने की स्थिति नहीं होती और एक कर्ज चुकाने के लिए दूसरे कर्ज का मकड़जाल शुरू हो जाता है. गरीबों की कमाई का एक-एक पैसा वसूल लेने की फिराक में लगी यह कहानी व्यवस्था है.

माइक्रोफाइनेंस संस्थानों से कर्ज लेने वाले ये समाज के सबसे गरीब लोग हैं जिन्हें रोज का भोजन जुटाने के अतिरिक्त अगर कुछ भी खर्च करना पड़े तो कर्ज के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है. यह हिस्सा इतना दमित है कि अपने ऊपर होने वाले जुल्मों को भी अपनी ही गलती मानकर सहमा रहता है और मुखर होकर विरोध नहीं कर पाता. हमेशा इस भय में जीता है कि अगर कुछ कहा तो कर्ज नहीं मिलेगा और फिर गांव के महाजनों के पास जाना होगा जो और ज्यादा वसूली करेंगे.

कैसे होगी कर्ज से मुक्ति ?

1. गरीबों का खाता खुलवाने को मोदी अपनी उपलब्धि के रूप में गिनवाते हैं लेकिन अभी भी बैंक गरीबों की पहुंच से दूर हैं इसलिए हर पंचायत में सरकारी बैंक की शाखाएं खोली जाएं.

2. वर्तमान समय में कार्यरत हर सरकारी बैंक जरूरतमंदों को लोन क्यों नहीं देता? उन्हें निर्देशित किया जाए कि 50,000 रूपये तक लोन लेने वाली महिलाओं को सहज तरीके से और अनिवार्य रूप से कर्ज प्रदान करें.

3. सरकारी बैंकों, माइक्रोफाइनेंस कंपनियों, प्राइवेट बैंकों या छोटे कर्ज देने वाली संस्थाओं को 1,00,000 रूपये तक के कर्ज पर 1% से ज्यादा सूद किसी भी सूरत में नही वसूलने दिया जाए (जीविका के समूहों के तर्ज पर).

भुखली देवियों की गिनती ना बढ़े इसलिए हमें इन मुद्दों को उठाने और इस पर आंदोलन खड़ा करने की जरूरत है.

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