वर्ष - 28
अंक - 45
26-10-2019

19-20 अक्टूबर को इलाहाबाद में पार्टी का दो दिवसीय राज्य स्तरीय प्रशिक्षण शिविर सम्पन्न हुआ. इसमें राज्य कमेटी के सदस्यों सहित करीब 75 नेतृत्वकारी सदस्यों ने भाग लिया.

‘फासीवाद: कार्यपद्धति, चुनौती व प्रतिरोध’ विषय पर शिक्षक का. अरिंदम सेन (पोलित ब्यूरो सदस्य) ने अपना सारगर्भित पर्चा प्रस्तुत किया. विषय को समेटते हुए उन्होंने अपने वक्तव्य का सारांश इस तरह रखा – भारत में फासीवाद केवल नफरत के प्रचार, माॅब लींचिंग, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण व दलितों के ऊपर दमन तक सीमित नहीं है. यह कम महत्वपूर्ण नहीं कि फासीवाद जनता की गाढ़ी कमाई को लूटने, राष्ट्रीय सम्पदा को क्रोनी पूंजीपतियों को निर्बाध रूप से सौंपने, कारपोरेट द्वारा राज्य को अपने कब्जे में लेते जाने, राज्य के फासिस्ट चेहरे में ढलने तथा व्यापक जनता को दिगभ्रमित और धर्मांध करने की ओर भी लक्षित है.

हमारा देश आज बहुत तेजी से हिंदुत्व के राजनीतिक अभियान का गवाह है, जिसमें एक दमनकारी बहुसंख्यक राज्य वास्तव में हिंदू राज्य है. फासिस्ट अपने इस अभियान में जहां तक भी सफल हुए हैं, उसका श्रेय इस बात को जाता है कि उन्होंने समाज के एक बड़े हिस्से को अपने इस बहुसंख्यकवाद का हिस्सा बनाने के लिए आंशिक रूप से तैयार कर लिया है – जिसके अंदर अल्पसंख्यकों के प्रति अलगाव, दुश्मनी की हद तक पहुंचने वाला शक शामिल है. इसका परिणाम है कि बहुसंख्यक आबादी का ऐसा मिजाज बनाया जाये कि वह अपनों से ‘अलग’ ‘परायों’ पर हो रहे हमले को स्वीकृति दे, राज्य दमन और निगरानी को पाकिस्तान प्रायोजित आतंक से निपटने का जरिया समझे औऱ राष्ट्रवादी उन्माद की आड़ में अपने बुनियादी सवाल, बेरोजगारी, कृषि संकट, औद्योगिक मंदी को भूल जाये.

फासिस्टों की इस क्षमता का मुकाबला करना आज हमारे सामने एक चुनौतीपूर्ण कार्यभार है. कारपोरेट-साम्प्रदायिक फासीवाद के खि़लाफ प्रतिरोध दीर्घकालिक और बहुमुखी होगा, जिसमें हिंसा के खि़लाफ, सीधे तौर पर जन गोलबंदी करके चुनावी अखाड़े में संघर्ष के साथ-साथ, विचारधारा और गलत आख्यानों के विरूद्ध संघर्ष – यह सबकुछ समाहित रहेगा और भाकपा (माले) हमेशा ही संघर्षों के विभिन्न रूपों में अग्रिम भूमिका में रहेगी.

शिविर के अन्य विषय ‘सांस्कृतिक (साम्प्रदायिक) राष्ट्रवाद बनाम जन राष्ट्रवाद’ पर शिक्षक का. गोपाल प्रधान ने अपने वक्तव्य में मुख्य रूप से कहा कि राष्ट्रवाद एक बुर्जुआ परिघटना है, जिसका उदय पूंजीवाद के साथ हुआ. इसमें बुर्जुआ यानी पूंजीपति खुद को सम्पति का निर्माता और मालिक समझता है. इसके विपरीत, मार्क्स की समझ है कि मजदूरों का अपना कोई देश नहीं होता और संपत्ति के असली निर्माता मजदूर यानी श्रम है.

उन्होंने कहा कि पश्चिमी राष्ट्रवाद की विशेषता है कि वह राष्ट्र के अंदर एक समुदाय विशेष को दुश्मन चिन्हित कर शेष को गोलबंद करता है. जर्मनी में हिटलर ने भी यही किया. जहां तक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रश्न है, तो यह संघ (आरएसएस) की अवधारणा है, जिसमें मुख्य भूमिका धर्म की होगी और धर्म, संस्कृति का अनिवार्य अंग होगी. धर्म से यहां मतलब हिंदू धर्म है.

संक्षेप में कहा जाये, तो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का अर्थ हिन्दू राष्ट्रवाद यानी सवर्ण राष्ट्रवाद है, जिसमें मनुस्मृति पर आधारित कानून होंगे, क्योंकि हिंदू धर्म का आधार मनुस्मृति है. जबकि जन राष्ट्रवाद का उदय अपने देश में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुआ, जिसमें अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के संघर्ष के बीच सभी को मिलाकर चलने की भावना विकसित हुई. यानी, साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्ष से जन राष्ट्रवाद का जन्म हुआ जिसके मूल में हिंदू, मुस्लिम व अन्य सम्प्रदायों को मिलाकर चलने की भावना व बोध है. यह राष्ट्रवाद ही जनता का राष्ट्रवाद है, जिसमें देश को एक रखने और विविधता में एकता को संजोने की क्षमता है.

शिविर के तीसरे विषय ‘कश्मीर, एनआरसी, मंदी सहित मौजूदा राजनीतिक प्रश्न और हमारा नजरिया’ विषय पर पार्टी के प्रदेश प्रभारी का. रामजी राय ने अपना वक्तव्य रखा. साथ ही, उपरोक्त विषय पर केंद्रीय समिति द्वारा समय-समय पर स्पष्ट किये गए ‘स्टैंड’ का भी स्मरण कराया. प्रशिक्षण शिविर में भाग ले रहे कामरेडों के सवाल के जवाब भी, शिक्षकों की उपस्थिति में, कामरेडों के बीच से ही दिए गए. समापन से पहले, पार्टी कामकाज को लेकर एक संक्षिप्त सत्र चला, जिसमें राज्य कमेटी द्वारा तय किये गये आगामी कार्यभारों को निश्चित समय में पूरा करने पर बात हुई. राज्य सचिव सुधाकर यादव के संबोधन के साथ शिविर का समापन हुआ.