वर्ष - 28
अंक - 45
26-10-2019

पटना के आईएमए सभागार में पिछले 21 अक्टूबर 2019 को शायर रफीउद्दीन राज की गजलें व नज्में सुनी गयीं. यह कार्यक्रम जन संस्कृति मंच, पटना की ओर से आयोजित था. 21 अप्रैल 1938 को बिहार के बेगूसराय में जन्मे शायर रफीउद्दीन राज फिलहाल कनाडा और न्यूयार्क में रहते हैं. उनका पैतृक घर दरभंगा में है. उनाक परिवार और वे खुद भी विभाजन और युद्ध की त्रसदी से गुजरे. छोटी उम्र से ही बस कंडक्टरी और ड्राइवरी जैसे कई तरह के काम-धंधों से जुड़ते हुए वे अंततः सरकारी नौकरी में गए. उनकी गजलों का पहला संग्रह- दीदा-ए-खुश ख़्वाब 1988 में प्रकाशित हुआ और फिर बिनाई, पैराहने फिक्र, अभी दरिया में पानी है, रौशनी के ख़दोख़ाल, इतनी तमाज़त किस लिए, जो एक दिन आईना देखा, साजो-राज़ आदि कई किताबें सामने आईं.

उनके पुराने दोस्त, शायर व चिकित्सक डा. अरमान नज्मी ने उनका परिचय कराते हुए उनकी शायरी व शख्सियत को बिहार की विभिन्न भाषाओं की काव्य-परंपरा और सांस्कृतिक परिवेश से जोड़कर देखा और कहा कि वे हमारी बिरादरी के ही बिछड़े हुए हमसफर हैं. अपनी मिट्टी की गंध बार-बार उन्हें बिहार खींच लाती है.

मूलतः गजलों और नज्मों की रचना करने वाले रफीउद्दीन राज ने गजलों और नज्मों के अलावा आज कत्आ, रुबाई, दोहे और हाइकू भी सुनाए. उनकी गजलों में पुराने उस्तादों की शायरों की रवायत के साथ-साथ आज की हकीकत के अक्स मौजूद थे. उन्होंने खुद को अमन का सिपाही बताया और मुहब्बत को बढ़ावा देने पर जोर दिया. ऊंच-नीच के भेद को गलत बताते हुए कहा कि लोगों के दुख जब एक जैसे हैं, तो फिर  भेदभाव कैसा. उन्होंने उर्दू को भारतीय जबान बताते हुए कहा कि इस पर यहां की सारी जबानों का असर है. उनकी खुशनसीबी है कि आज उनको सुनने वालों में कई जबानों के लोग हैं.

कार्यक्रम का संचालन जसम के राज्य सचिव सुधीर सुमन और धन्यवाद ज्ञापन शायर संजय कुमार कुंदन ने किया. इस मौके पर कासिम खुर्शीद, अवधेश प्रीत, शिवदयाल, सद़फ इक़बाल, रंजीत वर्मा, प्रतिभा वर्मा, अनिल विभाकर, घनश्याम, डा. निखिलेश्वर प्रसाद वर्मा, मो. गालिब, कृष्ण समिद्ध, संतोष सहर, नीलांशु रंजन, राजेश कमल, संतोष झा, अनीश अंकुर, अंचित, सरवर हुसैन, ओसामा ख़ान, अनुराधा प्रसाद, कलीमुर्र रहमान, विभा रानी श्रीवास्तव, परवेज़ आलम पुष्पराज, प्रीति प्रभा, सुमन कुमार, राम कुमार, राजन कुमार आदि समेत पटना के हिन्दी, उर्दू दुनिया के कई कवि, शायर, लेखक, पत्रकार, रंगकर्मी और श्रोता मौजुूद थे.

ये रहे उनकी गजलों के कुछ चुनिंदा शेर -
रहगुजर का मंजर तो एक धोखा है
रास्ता तो कदमों के अंदर होता है
वो जा रहा है जहां आग की तरफ लेकर
गुमां ये है वहां बर्फ जम चुकी होगी
बशारत है तो हर अनदेखा मंजर देख सकते हो
जो पत्थर में है पोशीदा वो ठोकर देख सकते हो
नजर में कोई मंजिल है तो मौजे-वक्त को देखो
वगर्ना तुम भी साहिल से समंदर देख सकते हो

- राजेश कमल