वर्ष - 28
अंक - 46
02-11-2019

नई दिल्ली के जंतर मंतर पर गत 29 अक्टूबर 2019 को ‘सिटीजन्स एंड पीपुल्स रिप्रजेन्टेटिव्स स्पीक’ के बैनर तले, कश्मीर में धारा 370 और 35-ए को खारिज किये जाने तथा कश्मीर की तालाबंदी के खिलाफ प्रतिरोध में एक जन सभा आयोजित की गई. इस सभा में 250 से अधिक कार्यकर्ताओं, नेताओं, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों, जाने-माने नागरिकों छात्रों, बड़ी संख्या में विभिन्न समूहों से आये नागरिकों ने हिस्सा लिया.

सभा में उपस्थित जनसमूह को विभिन्न राजनीतिक पार्टियों एवं संगठनों की ओर से 17 प्रतिनिधियों, राजनीतिक नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने सम्बोधित किया. सभा में बोलने वालों गुलाम नबी आजाद (कांग्रेस), नीलोत्पल बसु (सीपीएम), हन्नान मोल्ला (सीपीएम), डा. बालचन्द्रन कानगो (सीपीआई), दीपंकर भट्टाचार्य (भाकपा-माले), दानिश अली (बसपा), नवल किशोर (राजद), फिरदौस ताक (पीडीपी, कश्मीर), डा. हुसैन (जेकेपीएम, कश्मीर), गुलाम मिर्जा (सीपीआई, कश्मीर), मुजफ्फर अहमद खान (भूतपूर्व न्यायाधीश, कश्मीर), राहुल अत्रि (जेकेपीएम, जम्मू), सज्जाद हुसैन (स्वतंत्र, कारगिल), एनी राजा (एनएफआईडब्लू), शबनम हाशमी (अनहद), एमजे विजयन (पीआईपीएफपीडी) और मैमूना मोल्ला (ऐडवा) शामिल थे.

kashmir delhi

 

सभा ने अंत में अपनी मांगों से सम्बंधित एक वक्तव्य पारित किया, जिसमें कहा गया है कि जम्मू व कश्मीर की जनता दमनकारी हमले झेल रही है और उनकी जिंदगी व आजादी खतरे में है, इसे देखते हुए हम भारत के चिंतित नागरिक कश्मीर में धारा 370 और 35-ए को खारिज किये जाने तथा कश्मीर की तालाबंदी के 86वें दिन नई दिल्ली के जंतर मंतर पर जम्मू व कश्मीर की जनता के साथ प्रतिरोध और एकजुटता की कविताओं, गीतों के माध्यम से अपना प्रतिवाद दर्ज करा रहे हैं.

यह स्वीकार करते हुए कि खुद जम्मू व कश्मीर के लोग ही अपने जीवन और जमीन के सबसे महत्वपूर्ण हितधारक हैं, वक्तव्य में आठ मांगें पेश की गई हैं. ये मांगें धारा 370 और 35-ए को निरस्त करने तथा जम्मू व कश्मीर को दो हिस्सों में बांटकर केन्द्रशासित प्रदेश बनाने का आदेश वापस लेने, कश्मीर से सेना व अर्ध-सैनिक बलों को हटाने, पुलिस उत्पीड़न बंद करने, तमाम संचार साधनों को बहाल करने, आवागमन पर प्रतिबंध हटाने, अत्याचारी कानून वापस लेने, सर्वोच्च न्यायालय के समुचित हस्तक्षेप आदि से सम्बंधित हैं. वक्तव्य के अंत में समाज के सभी हिंस्सों, राजनीतिक पार्टियों, ट्रेड यूनियनों, छात्र संगठनों एवं व्यक्तियों से कश्मीरियों के पक्ष में उठ खड़ा होने की अपील की गई है. वक्तव्य में भारत और पाकिस्तान द्वारा युद्धोन्माद फैलाने की कोशिशों का विरोध किया गया है और स्थायी शांति कायम करने के लिये भारत, पाकिस्तान एवं कश्मीर की जनता के प्रतिनिधियों के बीच वार्ता का आग्रह किया गया है.

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ये जंग हमें जीतनी ही होगी!

– दीपंकर भट्टाचार्य

जब कश्मीर के अंदर 370 को खत्म किया गया और कश्मीर के पूरे राज्य के दर्जा को खत्म किया गया, उस दिन हम दिल्ली की सड़को पर थे. और आज 29 अक्टूबर को, 12 हफ्रते बाद, जब कश्मीर के लोग लगातार दमन झेल रहे हैं, आज भी हम दिल्ली की सड़कों पर हैं. हम ये कहने के लिए आए हैं कि कश्मीर के अंदर जेा जम्हूरियत की लड़ाई चल रही है, उसमें पूरे हिन्दुस्तान में जम्हूरियत की लड़ाई लड़नेवाले लोग तब तक कश्मीर के लोगों का साथ देते रहेंगे, जब तक कश्मीर में जम्हूरियत की वापसी नहीं होती है. जब तक कश्मीर के लोगों को अपना पूरा इंसानी हक नहीं मिलता है.

साथियो, आज जो यूरोपियन यूनियन का डेलीगेशन यहां आया है, ये कोई यूरोपियन यूनियन का डेलीगेशन नहीं हैं. ये कोई यूरोप के पार्लामेंट नहीं भेजा. ये कुछ लोगों को जुटाया गया है – 27 एमपी को, जो निजी हैसियत से आए हैं यहां, और जैसा कि अभी हमारे दानिश भाई बता रहे थे कि इन 27 में कैसे-कैसे लोगों को यहां लाया गया है.

इन 27 लोगों में से 22 ऐसे लोग हैं, (दो लिबरल डेमोक्रेट्स को छोड़ दीजिए तो) जो धुर दक्षिणपंथी हैं, और 22 तो ऐसे लोग हैं जो अपने-अपने देश में फासीवाद के पैरोकार हैं. चाहे वो पोलैंड से आए हों, चाहे वो फ्रांस से आए हों, चाहे वो ब्रिटेन से पहुंचे हुए हों. ये ऐसे 22 लोग हैं, ऐसे चेहरे हैं यूरोप के अंदर, जो पूरी तरह से इस्लाम के खिलाफ, जम्हूरियत के खिलाफ, इंसानियत के खिलाफ आवाज उठानेवाले, उसके खिलाफ जंग लड़नेवाले लोग हैं. आज उनको हिन्दुस्तान में बुलाया गया है. मोदी सरकार को लग रहा है कि शायद, इनसे अगर हमको रिपोर्ट मिल जाए, ये जाते-जाते हमें सर्टिफिकेट दे जाएं – जैसे कि मोदी जी खुद कहते हैं ‘आॅल इज वेल’ – यह भी कह के चले जाएं तो शायद, इससे कोई बात बनेगी.

इससे कोई बात नहीं बननेवाली है – जो हमने अभी यूएन में देखा, जो अमरीकी कांग्रेस में हमने देखा और जो जनता की अदालतो में देखा. हिन्दुस्तान की अदालत में, जनता की अदालत में अभी जो बहसें चल रही हैं उसमें यह बात साफ है कि शायद यह पहली बार है कि कश्मीर के अंदर जो इंसानियत के खिलाफ, जम्हूरियत के खिलाफ, कश्मीरीयत के खिलाफ भारत सरकार की ओर से जंग लड़ी जा रही है, दुनिया के लोगों को आज उसके बारे में बहुत साफ अंदाजा लग गया है.

हमारे साथी बता रहे थे कि कश्मीर के लिए शायद बहुत फर्क नहीं पड़ा 370 के जाने से और जो दमन अभी कश्मीर में चल रहा है, वह कोई नया नहीं है. बहुत दिनों से लोग ये झेल रहे हैं वहां. लेकिन, फर्क पड़ रहा है हिन्दुस्तान के अंदर. 370 को खत्म किया गया था महाराष्ट्र का चुनाव जीतने के लिए, हरियाणा के चुनाव को आसान बनाने के लिए. लेकिन, हरियाणा का चुनाव आसान नहीं बना, महाराष्ट्र का चुनाव आसान नहीं बना. अब लातरू में जब आपको पता चलता है, पहली बार हिन्दुस्तान के किसी चुनाव में ये नजारा आपको देखने को मिलता है कि वहां भाजपा-शिवसेना के जो नुमाईंदा थे वे तीसरे नंबर पर रहे 13 हजार वोट के साथ. और जो नोटावाली जगह है, (नोटा है दूसरे नंबर पर) वहां 26 हजार वोट मिला और एक लाख 30 हजार वोट वहां कांगेस और एनसीपी का जो जो एलायंस था, उस पूरे एलायंस को मिला. जिस लातूर में भाजपा के नेता जाकर कह रहे थे कि हमने तो कश्मीर को फतह कर लिया, कश्मीर पर हमने कब्जा कब्जा जमा लिया और यह कह करके लातूर के चुनाव को जीतना चाह रहे थे, लोगों ने उनको तमाचा मारा है. और नोटा को लोगों ने वहां दूसरे नंबर पर ला दिया है. हरियाणा के अंदर भी यही बात है. हमने देखा कि वहां भाजपा के नेता के पक्ष में मोदीजी और अमित शाह भाषण करने गए और 370 की चर्चा करके लौट आए और 60 हजार वोट से वहां भारतीय जनता पार्टी की हार हो गई. हमारे लिए नई बात तो ये बात है कि हिंदुस्तान के अंदर शायद ये पहली बार है (इससे पहले हिंदुस्तान के लोग समझते नहीं थे) लेकिन, पहली बार आज हिंदुस्तान के आम लोगों को, यहां के नौजवानों को, मजदूरों को, किसानों को ये पता चल रहा है कि कश्मीर के हालात क्या हैं?

और जब वे अपने गांव के हालात देखते हें, अपने देश का हालात देखते हैं, अपने प्रदेश का हालात देखते हैं तो लगता है कि ये जम्हूरियत के खिलाफ जंग, ये हमला, ये फासीवाद का हमला – शायद, आज इसने ही तो पूरे हिन्दुस्तान को एक करके रखा है. और कोई इस समय हमारे अंदर जो एक लोकतंत्र की सोच है, जो उम्मीद है, ख्वाहिश है. लेकिन इस देश के अंदर जो हमला है सरकार की ओर से उसके खिलाफ हम सब लोग एक साथ लड़ रहे हैं और इसीलिए मुझे बहुत अच्छा लगा कि कश्मीर के हमारे साथी आज यहां पहुंचे, कश्मीर की अलग-अलग पार्टियों के लोग यहां पहुंचे, हिन्दुस्तान के अंदर अलग-अलग पार्टियों के लोग भी यहां हैं और सिर्फ पार्टियों की बात नहीं है. इस दौर में जनता की मुहिम की बात है और जो मुहिम हम लोग चला रहे हैं – पिछले करीब तीन महीने से जो कश्मीर के अंदर भी चल रही है और देश के दूसरे हिस्सों में भी चल रही है – मैं समझता हूं कि बहुत जरूरी है.

और बस इतना कहते हुए मैं अपनी बात खत्म करूंगा कि ये जो जम्हूरियत की लड़ाई है, जम्हूरियत की जो जंग है, इस जंग को हमें जीतना ही है. क्योंकि, इस जंग को अगर हम हार जाते हेैं तो इस हिन्दुस्तान को हम खो देंगे. इस देश में जो भी हमारे पास उपलब्धियां थीं, जो भी हमारे देश में संविधान है, जो भी हमारे जम्हूरी हक हैं. वो सब हम खो देंगे, अगर इस जंग को हम हार जाएंगे. इसीलिए ये जंग कश्मीर के अंदर जो लोग लड़ रहे हें, ये जंग इस देश के कोने-कोन में जो लोग लड़ रहे हैं, हम सब लोग मिल कर के लड़ेंगे और इस जंग को जीतेंगे. इस उम्मीद और भरोसे के साथ, कश्मीर के उन तमाम बहनों को, उन तमाम नौजवानों को, उन तमाम बच्चों को जो पूरी बहादुरी के साथ ‘पैलेट और बुलेट’ का मुकाबला कर रहे हें, जो लगातार झेलते हुए अपनी पीड़ा से, जो अपनी जिंदगी की तमाम दिक्कतों से, लगातार हमे बता रहे हें कि जम्हूरियत कोई तोहफे में नहीं मिलती. जम्हूरियत ऐसी चीज है जिसको बचाए रखने के लिए, जिसे हासिल करने के लिए, कुर्बानी देने की जरूरत होती है, उसके लिए लड़ने की जरूरत होती है.

कश्मीर के लोगों की हिम्मत को, कश्मीर के लोगों के संघर्ष को, कश्मीर के लोगों की कुर्बानी को, मैं सबसे पहले सलाम करता हूं. और साथ ही साथ, इस देश के अंदर भी जम्हूरियत के लिए लड़नेवाले तमाम लोगों को सलाम करता हूं. बहुत-बहुत शुक्रिया! इंक्लाब जिंदाबाद!