वर्ष - 29
अंक - 5
25-01-2020

हम ज्योति के माता-पिता की पीड़ा और आक्रोश के प्रति अपनी संवेदना जाहिर करते हैं, जिन्हें कुछ तसल्ली मिल सकती है अगर अपराध्यिों को फांसी मिले. लेकिन हर तरह से और हर दिन महिलाओं के मामले में नाकाम सत्ता और समाज को इस बात की इजाजत नहीं देनी चाहिए कि वह चंद लोगों की जान लेकर अपने पापों को धो सके और उन मूलभूत बदलावों की ओर से हमारा ध्यान भटका सके जो महिलाओं की जिंदगी को और ज्यादा सुरक्षित तथा आजाद बनाने के लिये जरूरी हैं.

ज्योति के बर्बर बलात्कार और हत्या ने देश में मजबूत बलात्कार-विरोधी आन्दोलन को जन्म दिया था और जिसकी गूंज जस्टिस वर्मा आयोग की सिफारिशों में सुनाई पड़ी थी. उसके बाद बलात्कार-विरोधी कानून कुछ हद तक जरूर बदला है, लेकिन इसका क्रियान्वयन काफी ढीला है और अधिकांश सिफारिशों को अभी तक अमल में नहीं लाया जा सका है. सच तो यह है कि अधिकांश बलात्कार मामलों में अपराध्यिों को अभी तक दंडाभाव की सुविधा हासिल है, क्योंकि हर कदम पर – पुलिस की तरफ से, न्यायपालिका की तरफ से और पीड़िताओं पर ही दोष मढ़ने के सर्वव्याप्त पितृसत्तात्मक माहौल के चलते – बलात्कार की पीड़िताओं को न्याय नहीं मिल पा रहा है. अत्यंत अपवादस्वरूप मामले में बलात्कार के अपराधियों को दी गई यह बहु-प्रचारित सजा बलात्कार की घटनाओं को रोकने की बजाय दरअसल हमारे समाज और सरकार को बलात्कार की संस्कृति को समझने और इसकी जिम्मेवारी लेने से रोक रही है. यह सजा हमें झूठा आश्वासन देती है कि बलात्कार अपरिचितों, नर-पशुओं द्वारा की जाने वाली ‘अत्यंत असामान्य’ कार्रवाई है. तथ्य तो यह है कि आम तौर पर बलात्कार अपरिचितों के द्वारा नहीं, बल्कि उनलोगों के द्वारा किया जाता है जिन्हें हम जानते हैं और जिनका हम सम्मान करते हैं; और बलात्कार कोई अलग-थलग असामान्य घटना नहीं, बल्कि हमारे पितृसत्तात्मक समाज की ही पैदाइश है.

हम सरकार से इन चीजों की मांग करें: हर समय सार्वजनिक परिवहन की सुविधा मिले ताकि सड़कें महिलाओं से भरी रहें और फिर किसी ज्योति को खाली बस में सवार न होना पड़े; काफी संख्या में जजों की बहाली हो और न्यायालयों में ज्यादा महिलाओं की नियुक्ति हो ताकि सभी मामले तेजी से निपटाए जा सकें; ऐसा पुलिस व न्यायिक प्रणाली बने जिसमें जांच और सुनवाई की प्रक्रिया बलात्कार-पीड़िता के लिए सजा न बने. केंद्र और राज्य सरकारों को इस बात पर झगड़ने कि बलात्कारियों को फांसी देने कर श्रेय किसे मिले (या फांसी में विलंब के लिए आरोप मढ़ने) की इजाजत न देकर हम इन सरकारों को ही महिलाओं को सुरक्षित और आजाद बनाने के ये मामूली-से उपाय न कर पाने के लिए जवाबदेह बनाएं.

बलात्कारियों को मृत्यु-दंड में कोई मूल्य खोजने का कोई मतलब नहीं है. इसके बजाय हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम महिलाओं के जीवन और उनकी आजादी का और ज्यादा सम्मान करें.

बलात्कारियों को फांसी देने की सत्ता की ताकत का गुणगान करने के बजाय हमें ऐसे समाज के निर्माण के लिए काम करना चाहिए जहां बलात्कारी पैदा ही न हो सकें.
 – ऐपवा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रति राव, महासचिव मीना तिवारी और राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन द्वारा जारी