वर्ष - 29
अंक - 5
25-01-2020

20 जनवरी 2020 को 100 से अधिक छात्र संगठनों ने ‘यंग इंडिया अगेंस्ट सीएए-एनआरसी’ के बैनर तले मंडी हाउस से जंतर मंतर तक डिक्लेयरेशन मार्च निकाला. ये मार्च जंतर मंतर पर पहुंचकर विरोध सभा में तब्दील हो गया.

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सभा को संबोधित करते हुए भाकपा(माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि एनआरसी का मतलब लोगों को नागरिकता से वंचित करने की साजिश है. यदि एनआरसी से अकेले असम में 19 लाख लोगों की नागरिकता जाती है तो पूरे भारत में एनआरसी लागू होने से कितने करोड़ लोग बाहर हो जाएंगे, ये बात हमें समझ में आती है. अब वो एनपीआर ला रहे हैं; लेकिन एनपीआर में जो सबसे खतरनाक पहलू है वो ये कि सरकार और प्रशासन के पास ये अधिकार हो जाएगा कि वो किसी के भी नाम के आगे ‘डाउटपफुल सिटीजन’ लिख देंगे. आपको हमें डाउटफुल (संदिग्ध) घोषित करके मतदान करने का जो अधिकार है हमें उसे छीनकर हमें मतदान से वंचित कर देंगे. और फिर हमें डिटेंशन कैम्प में भेजेंगे. और इसीलिए हमने कह दिया कि तुम सीएए के नाम से आओ, तुम एनआरसी के नाम से आओ, तुम एनपीआर के नाम से आओ कोई भी नारा लगाओ, हम तुम्हारी साजिश को पहचानते हैं. और संविधान के खिलाफ तुम्हारी कोई भी साजिश को हम चलने नहीं देंगे. 26 तारीख को हमारे गणतंत्र के 70 साल पूरे हो जाएंगे. 70 साल में हमें कहां पहुंचना था, लेकिन 70 साल में हम सबसे बड़े संकट का सामना कर रहे हैं. इस देश पर सबसे बड़ा खतरा आ गया है, इसलिए हमें अब सबसे ज्यादा भरोसा अब आवाम पर है. संविधान को बचाने के लिए आवाम की इस संघर्ष और ताकत को हम सलाम करते हैं. तमाम यूनिवर्सिटी के छात्रों और शाहीन बाग की बहनों को सलाम करता हूं, जिन्होंने ये मिसाल कायम कर दी कि देश के हर कोने में शाहीन बाग बनने लगा है. हमारी एकता को और मजबूत कीजिए. घर घर समझाना बेहद जरूरी है. ‘घर घर समझाएंगे’ नारे को अब हकीकत में बदलने की जरूरत है. जिलों, कस्बों, गांवों के घर घर जाकर लोगों को समझाना है कि कागज नहीं दिखाना है. ये आंदोलन हमें सच्ची आजादी और लोकतंत्र की ओर ले जाएगा. अब इस मुल्क को आवाम ही बचा सकती है.

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मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जब भी इतिहास लिखा जाएगा हम आप सभी लोग गर्व से कह सकेंगे कि हम इस देश के संविधान और हिंदू-मुस्लिम एकता को बचाने के लिए सड़कों पर लाखों की संख्या में निकले थे. जब आप इतिहास देखिएगा कि इस देश में कब इतने लोग एक साथ सड़कों पर निकले थे हिंदू-मुस्लिम एकता की बात को लेकर. लोग पिछली बार सड़कों पर उतरे थे 73 वर्ष पहले. जब 18 जनवरी 1948 में गांधी ने हिंदू-मुस्लिम एकता और उनकी बराबरी के हक के लिए अपना आखिरी उपवास किया था; उस समय गांधी के उपवास के समर्थन में दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए ऐसे ही लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर निकले थे. लेकिन फिर वो जन सैलाब अब उमड़ा है. इस बात के लिए नहीं कि हम पीड़ित हैं, बल्कि इसलिए कि हमारे देश के भाई-बहनों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव न हो. आप सब मोहब्बत के सिपाही हैं, संविधान के सिपाही हैं, आप सबको सलाम. हम कामयाब हो गए हैं, क्योंकि हमने ये साबित किया है कि हमारी सरकार की जो साजिश थी कि हमें मजहब के आधार पर बांटेंगे, ऐसा कानून लाएंगे और सिर्फ इस देश के मुसलमान इसका विरोध करेंगे. ये जब नहीं हुआ है तो हम एक तरह से इस लड़ाई को जीत चुके हैं. और हमारी जीत, हमारे मनोबल से हम लड़ते रहेंगे. हमारी जो गैर-भाजपा राज्य सरकारें हैं वो हमारे स्त्रिायों-युवाओं का अनुसरण कर रहे हैं. वो कह रहे हैं कि हम अपने राज्यों में एनआरसी-एनपीआर लागू नहीं करेंगे. ये भी हमारी जीत है. इस लड़ाई का फैसला न संसद में होगा, न सुप्रीम कोर्ट में होगा. इस लड़ाई का फैसला दो जगह होगा. एक तो सड़कों पर होगा जहां हम सब उतरे हैं और दूसरा और सबसे ज्यादा बड़ा फैसला हमारे दिलों में होगा – कि हमारे दिलों में नफरत भरने की जो कोशिश थी उनकी, उसमें वो कामयाब हुए कि नहीं. लाखों लोगों ने सड़कों पर उतर कर ये साबित किया है कि हमारे दिलों में वो मोहब्बत आज भी है, जो 1947 में थी.

समाजसेवी सरफराज अहमद कहते हैं – इस सरकार को भारत के बारे में कुछ नहीं मालूम. इंडिया की मिट्टी अलग है. इस देश में कोई नहीं बोलता कि इस देश को मजहब के हिसाब से चलाओ. देश धोखा खा गया है. ये लोग धोखे से प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और मुख्यमंत्री बन गए हैं. लेकिन ये लोग ही इन्हें भगाएंगे. ये जिस झोले का जिक्र बार बार करते हैं उस झोले को तैयार रखें. सीएए-एनआरसी इस देश को तोड़ रहा है. अल्लाह न करे कि मेरा मुल्क फिर से टूटे. जब कोई सरकार हताश हो जाती है तब ऐसे ही ऊल-जुलूलू कानून थोपने लगती है.

जामिया के इंजमाम उल हसन चार्ली चैपलिन का कटआउट लेकर घूमते हैं – चार्ली चैप्लिन को कई देशों से निकाल दिया गया था तो वो खुद को विश्व का नागरिक बताते थे. वो सिर्फ एक बेहतरीन ऐक्टर ही नहीं, ऐक्टिविस्ट भी थे. मैं उनके जरिए ये संदेश देना चाहता हूं कि चार्ली चैप्लिन की तरह हम भी एक दूसरे का दिल जीतेंगे. मोदी-शाह हमें बांटने की चाहे जितनी कोशिश कर लें, हम एक दूसरे मजहब के लोगों के प्रति अपने दिलों में मोहब्बत भरकर उनके दिलों को जीतेंगे. और आपको ये एनआरसी-एनपीआर-सीएए वापिस लेना ही होगा.

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शायर गौहर रजा कहते हैं – मैं उम्र के जिस लपेटे में हूं, उसमें मैं लगातार यही सुनता रहा कि पिछले दस-पंद्रह वर्षों में कि इस मुल्क की नई पीढ़ी बहुत बिगड़ी हुई है. उसे अपने फ्री पैकेज के अलावा, उसे अपनी सहूलियतों के अलावा, उसे अपने वाट्सएप के अलावा, सेलफोन और म्यूजिक सिस्टम के अलावा कोई मतलब नहीं है इस देश से. आपको सलाम कि आपने उन सबको गलत साबित किया यहां खड़े होकर. आज हालत ये है कि पोलिटिकल पार्टियां और हमारी उम्र के लोग उन्हीं नौजवानों के पीछे पीछे चल रहे हैं. इस देश के इतिहास में जेपी मूवमेंट में भी ऐसा नहीं हुआ. जेपी आंदोलन हिंसा से शुरू हुआ था और हिंसा पर ही खत्म हुआ. यूनिवर्सिटी के अंदर और बसों में आग लगाई जा रही थी. लेकिन आज के युवा ने गांधी के रास्ते पर चलते हुए अपने आंदोलन को आगे बढ़ाया है. हिंसा सिर्फ वहीं हो रही है जहां बीजेपी की सरकारें हैं. उनके गुंडे और पुलिस हिंसा कर रही है. यंग इंडिया बता रहा है कि हम अपनी मांग पर डटे रहेंगे और न तो हिंसा करेंगे, न तुम्हें हिंसा करने देंगे. बहुत कुछ पहली बार हो रहा है. इस आंदोलन में यंग इंडिया पहले उठा, बाकी सब उसके पीछे आए. देश के पिछले साढ़े चार साल के इतिहास में देश की मां, बहनें, बेटियां इतनी बड़ी तादाद में सड़कों पर कभी नहीं आईं, आजादी आंदोलन के दौरान भी नहीं. मोदी-शाह जान लें कि ये बदला हुआ हिंदोस्तान उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे रहा है और ये पीछे हर्गिज पीछे नहीं हटेगा. बल्कि तुम्हें पीछे धकेल देगा.

आंदोलन में भी अपना चरखा साथ लेकर चलने वाले और बैठे-सुनते बोलते हुए भी सूत काटते रहने वाले गांधीवादी मुसद्दी लाल कहते हैं – यदि इस देश में आजादी के बाद ग्राम स्वराज आया होता तो आज ये सब न होता. अगर ग्राम स्वावलंबन होगा तो दिल्ली और पटना की नहीं, ग्राम की सुनवाई होगी. आज के समय में बिहारी मजदूर देश के कोने कोने में हैं. लेकिन उन्हें घुसपैठिया बताकर, बाहरी बताकर गुजरात, महाराष्ट्र से मारकर भगाया जा रहा है. क्यों भाई? आखिर जब वो मजदूर बनकर आया, तो हमें अच्छा लगा; लेकिन जब वो वहीं बसने लगा तो आपको बुरा क्यों लगा? आज देश में तीन समस्या है. पूंजीवादी, राज्यवाद और पुलिस प्रशासन की हिंसा. पूंजीवाद को खादी ग्रामोद्योग से, राज्यवाद को ग्रामदान से और पुलिस फोर्स को शांति सेना से स्थानांतरित करके हल किया जा सकता है. पुलिस और सेना में तो सीना नापकर भर्ती होती है, लेकिन शांति सेना में सीना नहीं मानवीय करुणा, क्षमा और दया के भाव देखकर भर्ती किया जाएगा. विनोबा जी ने भी ग्राम स्वराज के तंत्र, जय जगत के सूत्र और विश्व शांति का लक्ष्य दिया था. लेकिन हम अपने लक्ष्य से भटककर आज इस मुसीबत में घिरे हैं.

युवा सैय्यद जव्वाद ने कहा, “हम गांधी के मानने वाले लोग हैं. कोई एक गाल पर एक थप्पड़ मारेगा, तो हम उसके सामने अपना दूसरा गाल भी पेश कर देंगे. हम मोदी-शाह को भी गले से लगाकर उनके दिलों की नफरत को मोहब्बत में बदल देंगे. समस्या ये है कि ये लोग झूठ बहुत बोलते हैं. जिस चीज पर बल देते हैं, खुद भी उसे नहीं मानते. ये कृष्ण को ग्वाला और कमतर भी साबित करेंगे और गीता पर जोर देंगे, लेकिन खुद गीता नहीं पढ़ेंगे उसमें कही बातों का अनुसरण नहीं करेंगे.”

– सुशील मानव