वर्ष - 29
अंक - 9
15-02-2020

दिल्ली को जीतने के लिये अत्यंत विद्वेषपूर्ण अंदाज में चलाये गये भाजपा के चुनाव प्रचार के बाद अब हमारे सामने 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गये हैं, और यह लगभग 2015 के चुनाव नतीजों को दुहराने जैसा ही है. आम आदमी पार्टी (आप) ने 2015 के चुनाव में हासिल 50 प्रतिशत से ज्यादा वोटों को कमोबेश इस बार भी बरकरार रखा है, हालांकि उसे प्राप्त सीटों की संख्या 67 से थोड़ा घटकर 62 हो गई है. जिन सीटों पर आप को पराजय देखनी पड़ी वे भाजपा की झोली में गई हैं, परिणामतः भाजपा को प्राप्त सीटों की संख्या 3 से बढ़कर 8 हो गई है. कांग्रेस एक बार फिर अपना खाता नहीं खोल सकी, और कांग्रेस की कीमत पर ही आप एक बार फिर अपने 2015 के वोटों के अनुपात को बरकरार रख सका. दलितों और मुस्लिमों के बीच कांग्रेस के परम्परागत मतदाताओं ने कमोबेश पूरी तरह से थोक भाव में आप के पक्ष में मतदान किया, जबकि लगभग उसी अनुपात में पहले आप के पक्ष में मतदान करने वाले लोग इस बार खिसक कर भाजपा के पक्ष में चले गये.

यह एक ऐसा चुनाव है जिसमें हम संभवतः स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि भाजपा का चुनाव प्रचार अभियान उल्टा नतीजा देने वाला साबित हुआ है. भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार की शुरूआत “देश बदला, दिल्ली बदलो” के नारे के साथ की थी. लेकिन जैसे-जैसे सीएए-एनआरसी-एनपीआर की साजिश के खिलाफ प्रतिवाद तीखे होने लगे, तो परेशान-बेचैन सरकार ने सोचा कि वह शाहीनबाग को पाकिस्तान, या मुगल शासन की पुनर्बहाली के बतौर पेश करके दिल्ली के मतदाताओं को भयभीत कर सकती है, और तब “गोली मारो गद्दारों को” चुनाव प्रचार अथियान की केन्द्रीय विषयवस्तु बन गई. और जैसे-जैसे यह रणहुंकार बढ़ती गई, तो यह सिर्फ जुमलेबाजी ही नहीं रह गई बल्कि कथनी से करनी में बदलने का आह्वान बन गया और हथियारबंद गुंडों ने जामिया और जेएनयू पर हमले चलाये तथा शाहीनबाग की महिला प्रतिवादकारियों पर गोली चली. भाजपा के प्रचार ने सस्ती बिजली और पानी तथा शिक्षा एवं स्वास्थ्य में सुधार के आप के दावों और वादों को “मुफ्रतखोरी” कहकर पूरी तरह खारिज कर दिया जबकि खुद भारी पैमाने पर फीस बढ़ाने के लिये जेएनयू के संघर्षरत छात्रों पर बर्बर हमला चलाया.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, जिसने अपने राज्य में पुलिस को सीएए-विरोधी प्रतिवादकारियों के खिलाफ बदला लेने के लिये ललकारा और मुस्लिम समुदाय तथा प्रतिवादकारी कार्यकर्ताओं के खिलाफ सचमुच में जंग छेड़ दी है, ने केजरीवाल पर यह आरोप लगाया कि वे शाहीनबाग की प्रतिवादकारियों को बिरियानी खिला रहे हैं, और मतदाताओं का आह्वान किया कि भाजपा को सत्ता में बैठाएं ताकि यह प्रतिवादकारियों के लिये गोली का काम करे. कुछेक अन्य चुनाव प्रचारकों ने केजरीवाल को आतंकवादी तक कह डाला. जब उन्हें  ऐसा लगा कि उनके प्रचार अथियान को अपेक्षित जनसमर्थन नहीं मिल रहा है, और एक्जिट पोल के नतीजों ने दिल्ली में फिर एक बार आप की सरकार बनने की भविष्यवाणी कर दी, तो कुछेक मोदी भक्त मीडिया वालों ने यहां तक कह डाला कि दिल्ली के मतदाताओं को राष्ट्रीय हित के मुद्दों से, जिनका प्रतिनिधित्व भाजपा करती है, कोई मतलब नहीं है, बस वे तो आप सरकार द्वारा प्रदान की गई “मुफ्तखोरी” के आदी हो चुके हैं. और इस तीखी जबान में अनवरत चलने वाले प्रचार अभियान के वातावरण में जहर घोलने की कमान सीधा सीधी भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह ने अपने हाथों संभाल रखी थी, जिन्होंने दिल्ली के मतदाताओं से आह्वान किया कि वे ईवीएम में कमल के बटन को इतने तीखेपन से दबायें कि उससे शाहीनबाग के प्रतिवादकारियों को बिजली का झटका महसूस हो.

दिल्ली में भाजपा की जोरदार शिकस्त मोदी-शाह-योगी की त्रिमूर्ति और उनके चेले-चपाटों के प्रत्यक्ष नेतृत्व में चलाये गए विद्वेषपूर्ण और तीखी नफरत भरे प्रचार अभियान को भी करारी शिकस्त है. भाजपा के कटुतापूर्ण अहंकारी प्रलाप को मुंहतोड़ जवाब देते हुए शाहीनबाग मुहल्ले से आप के उम्मीदवार को पूरे चुनाव में दूसरे सबसे बड़े अंतर से जीत मिली. नीतीश कुमार के जद-यू को सबसे बड़ी पराजय का अपमान झेलना पड़ा और उन्होंने जो दावा किया था कि उनकी सरकार ने विकास में दिल्ली को पीछे छोड़ दिया है, चुनाव नतीजे में यह दावा औंधे मुंह गिर पड़ा. यह सच है कि मध्य-दक्षिणपंथी पार्टी आप आर्थिक मामलों में भाजपा से कापफी हद तक समान आधार पर खड़ी है. आप की राष्ट्रवाद की धारणा भी भाजपा के अति उग्र राष्ट्रवाद के माॅडल के साथ कापफी हद तक मेल खाती है, जैसा कि उसके द्वारा मोदी-शाह की कश्मीर नीति तथा ऐसे कुछेक अन्य प्रश्नों पर पूर्ण समर्थन में प्रतिबिम्बित हुआ है. राज्य दमन और साम्प्रदायिक हिंसा तथा मजदूरों, महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों तथा अन्य हाशिये पर पड़े समुदायों के अधिकारों की रक्षा के मामलों में निहित लोकतंत्र के सवालों पर आप की प्रतिक्रिया बहुत दबी और समस्याग्रस्त है. यह भी सच है कि दिल्ली में आप की विजय का अपना विशिष्ट स्थानीय संदर्भ है और लोकसभा चुनावों एवं अखिल भारतीय राजनीति के वृहत्तर परिप्रेक्ष्य में संभवतः इसे नहीं दुहराया जा सकता. मगर इन तमाम विशिष्टताओं एवं सीमाओं के बावजूद, मोदी के लगातार दूसरी बार जीतकर सत्ता में आने के बाद से जो बेलगाम फासिस्ट हमला शुरू हुआ है, उसके सामने भारतीय राजनीति के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर आये दिल्ली के जनादेश के विराट महत्व को कत्तई कम करके नहीं देखा जा सकता.

दिल्ली एवं उसके परे अन्य राज्यों में क्रियाशील प्रगतिशील जनवादी शक्तियों का यह कार्यभार है कि वे दिल्ली के जनादेश की विराट संभावना का लाभ उठाकर अपनी संगठित शक्ति को बढ़ाएं. इन चुनाव नतीजों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी जैसे बुनियादी मुद्दों की केन्द्रीयता को रेखांकित किया है – जिन मुद्दों को आप पूरे जोरशोर से सामने लाया – कि ये मुद्दे आम आदमी के लिये सर्वप्रथम और सबसे बड़ी चिंता के विषय हैं. इस एजेंडा का विस्तार करना होगा और जोशीले ढंग से उस पर अमल करना होगा, ताकि जनता को उनके मूलभूत अधिकारों की प्राप्ति तथा उनकी बुनियादी आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति के जरिये उनकी वास्तविक उपलब्धियों को सुनिश्चित किया जा सके. महज चंद हफ्ते पहले झारखंड के चुनाव में भाजपा की निर्णायक पराजय के बाद आने वाले दिल्ली चुनाव के जनादेश ने जनता के बढ़ते हुए आक्रोश को, और मोदी शासन की तथाकथित चुनावी अपराजेयता की सारी बातों तथा संघ परिवार के विभाजनकारी एजेंडा के विनाशकारी प्रभाव एवं निहितार्थों को धता बताते हुए मोदी-शाह सरकार की कमजोरी को भी दर्शा दिया है. कश्मीर और अयोध्या से लेकर सीएए-एनआरसी-एनपीआर के गोरखधंधे तक, भाजपा ने झारखंड और दिल्ली में अपने सारे तुरुप के पत्तों का इस्तेमाल कर लिया, फिर भी उनको निर्णायक रूप से करारी शिकस्त झेलनी पड़ी. यह निश्चय ही फासीवाद-विरोधी प्रतिरोध की शक्तियों के लिये शुभ संकेत है. दिल्ली की जनता ने जो हमें दम लेने का मौका मुहैया किया है, उसका पूरा इस्तेमाल सीएए-एनआरसी-एनपीआर की साजिश के खिलाफ अनवरत चल रहे प्रतिवादों को तीव्र करने तथा इसी साल चंद महीनों बाद होने वाले बिहार चुनाव में और अगले साल की शुरूआत में होने वाले चुनावों के अगले राउंड में भाजपा एवं उसके गठजोड़ की पार्टियों को इतनी ही निर्णायक शिकस्त देने के लिये करना होगा.