वर्ष - 33
अंक - 4
24-01-2024
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25 जनवरी 2024 को भारत का निर्वाचन आयोग अपनी स्थापना की 74वीं सालगिरह मनाएगा. निर्वाचन आयोग का स्थापना दिवस ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में चुनाव करवाने की जिम्मेदारी निभानेवाली स्थायी संवैधानिक संस्था के बतौर ईसीआई का सांस्थानिक महत्व सचमुच बहुत ज्यादा है. निर्वाचन क्रियाकलाप की विश्वसनीयता काफी हद तक निर्वाचन आयोग की साख पर निर्भर करती है, किंतु इस मामले में आज ईसीआई बड़ा संकट झेल रहा है. ‘वीवीपैट’ पर्चियों की शत प्रतिशत गिनती की मांग पर ‘इंडिया’ गठबंधन के प्रतिनिधिमंडल से मिलने से ईसीआई के इन्कार ने निर्वाचन प्रक्रिया की निष्पक्षता के मामले में मतदाताओं के विश्वास को और भी हिला दिया है.

भारत दुनिया के उन चंद देशों में एक है जहां मतदान लगभग पूरी तरह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के जरिये कराया जाता है. मतदाताओं की एक छोटी संख्या जो अपने निर्धारित मतदान केंद्रों तक पहुंचने की स्थिति में नहीं होते हैं - मतदान कार्य में संलग्न कर्मचारियों समेत अधिकांश सरकारी कर्मी और स्वास्थ्य समस्या से जूझते बुजुर्ग वोटरों - को ही पोस्टल बैलेट का इस्तेमाल करने की इजाजत मिलती है. एक दशक पूर्व खुद निर्वाचन आयोग ने यह तथ्य स्वीकारा था कि ये मशीनें मतदाताओं को उनका यह बुनियादी अधिकार सुनिश्चित नहीं कर पाती हैं कि उनके वोट उन्हीं उम्मीदवारों को मिले हैं जिन्हें उन्होंने दिया है. मतदाताओं के बीच विश्वास जगाने के लिए आयोग पूरक के बतौर हर ईवीएम के साथ वीवीपैट देने पर सहमत हुआ था. लेकिन वीवीपैट मशीनों का क्या फायदा अगर वोटरों को वीवीपैट से निकली पर्चियों की वास्तविक जांच करने का मौका ही न मिले और इस प्रकार जांचे गए वोटों की गिनती ही न की जाए.

पिछले कुछ समय से इस किस्म की शिकायतें और संदेह बढ़ते जा रहे हैं कि वोटों को मनपसंद चुनाव-चिन्हों पर ‘हस्तांतरित’ कर दिया जाता है और इस तरह नतीजों में तकनीकी तौर पर हेराफेरी की जाती है. यह याद रखा जाना चाहिए कि वीवीपैट लागू किए जाने के पूर्व भाजपा ईवीएम की विश्वसनीयता के अभाव को लेकर सबसे ज्यादा मुखर रही थी. आडवाणी से लेकर मोदी तक, वरिष्ठ भाजपा नेतागण उस समय बोला करते थे कि ईवीएम के जरिये लोकतंत्र पर खतरा पैदा किया जा रहा है. आज भाजपा ईवीएम की सबसे बड़ी पैरोकार बन गई है और इस विचार को ही खारिज कर दे रही है कि मतदाताओं द्वारा उठाए जा रहे संदेहों व शिकायतों को दूर करने के लिए वीवीपैट का इस्तेमाल किया जाए. ‘इंडिया’ गठबंधन ने इतनी ही सलाह दी है कि मतदाताओं को अपने वोटों की जांच करने का मौका मिले और जांची गई पर्चियों को बैलेटों का एवजी समझा जाए और उसे मतगणना के आधार के बतौर लिया जाए.

हमें कहा जाता है कि ऐसी गिनती में बहुत ज्यादा समय लग जाएगा. दो दशक पूर्व तक हमलोग बैलेट पेपर की गिनती का इंजतार करते रहते थे. जैसा कि पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी ने तर्क दिया है, पहले के चुनावों में बहु-उम्मीदवार बैलेट पेपर की गिनती में जितना वक्त लगता था, वीवीपैट पर्चियों की गिनती में उससे काफी कम समय लगेगा. अंततोगत्वा, किसी भी चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता की सबसे बड़ी परख मतदाताओं के विश्वास में होती है. मतदाताओं के मन में विश्वास जगाने के लिए ही तो वीवीपैट को लागू किया गया था. मतदाताओं का बड़ा हिस्सा और ‘इंडिया’ गठबंधन की पर्टियां, जिन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में कुल वोटों का आधा से ज्यादा अंश प्राप्त किया था, अब वीवीपैट पर्चियों की पूरी गिनती की मांग कर रही हैं तो कोई वजह नहीं कि ईसीआई इस लोकप्रिय मांग से सहमत न हो सके.

अगर भारत आज भी दुनिया में एक क्रियाशील लोकतंत्र के बतौर माना जाता है, चाहे वह जितना भी त्रुटिपूर्ण और सीमित क्यों न हो, तो इसकी मूल वजह है भारत के चुनावी सफर की समग्र विश्वसनीयता. लेकिन अब लोकतंत्र की संवैधानिक बुनियाद और संस्थागत ढांचे के साथ-साथ खुद यह निर्वाचन प्रणाली तेजी से अपनी साख खोती जा रही है. चुनावों से संबंधित हर चीज को बिल्कुल अपारदर्शी और मनमाना बनाया जा रहा है. इलेक्‍टोरल बॉंड (चुनावी बौंड) की रहस्यपूर्ण प्रणाली के जरिये चुनावों में कॉरपोरेट फंडिंग को पूर्ण गोपनीयता दे दी गई है, और सरकार सर्वोच्च न्यायालय को कह रही है कि चुनावी बॉंड के स्रोत और उसकी पहचान से लोगों का कोई लेनादेना नहीं है. आज की सरकार को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति पर पूर्ण नियंत्रण हासिल हो गया है और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति सभी चुनावों को ‘एक देश, एक चुनाव’ के संदेहास्पद नारे की आड़ में एक साथ जोड़ देने का मन बना चुकी है.

आज जब भारतीय गणतंत्र अपने 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, तब निर्वाचन प्रणाली को उसके चौतरफा बढ़ते संकट से निजात दिलाने की जरूरत है, क्योंकि यह संकट आम जनता को व्यवहारतः मताधिकार-विहीन बना देने की ओर ले जा रहा है. यह देखना उत्साहवर्धक है कि भारत का वकील समुदाय चुनावी प्रणाली को बचाने में सक्रिय रुचि दिखा रहा है, और कम से कम एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जो ईवीएम प्रणाली के विख्यात हिमायती रहे हैं, चुनावी हेराफेरी की बढ़ती आशंका को दूर करने के लिए वीवीपैट पर्चियों की संपूर्ण गिनती की मांग का समर्थन कर रहे हैं. हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकीलों ने मौजूदा ईवीएम-वीवीपैट प्रणाली की कमजोरी को उजागर करते हुए दिल्ली में एक जोशीला प्रदर्शन आयोजित किया. समूची चुनावी प्रक्रिया की निगरानी के कार्यभार से युक्त संवैधानिक निकाय के बतौर भारत के निर्वाचन आयोग पर ही यह जिम्मेदारी है कि वह भारतीय मतदाताओं के मन में चुनावी प्रणाली की साख व पारदर्शिता का विश्वास फिर से जगाए और ‘स्‍वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव’ के दावे को अमली रूप प्रदान करे.