सतारा: ब्राह्मण-विरोधी आन्दोलन से राष्ट्रवाद तक

- गेल ओम्बेट

समानांतर सरकार का गठन: अगस्त 1942 से लेकर जून 1943 तक

9 अगस्त: ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में प्रसिद्ध ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव ग्रहण किये जाने के चंद घंटों बाद ही औपनिवेशिक राज्य तंत्र राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेताओं पर टूट पड़ा. लेकिन शीर्षस्थ नेताओं की गिरफ्तारी से भारत में सबसे बड़ा जन विद्रोह उभर पड़ा.

मिर्जापुर में दलितों-आदिवासियों की बुलंद आवाज हैं जीरा भारती

- कुसुम वर्मा

(उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर जिले के मड़िहान विधानसभा  में पहाड़ी पर चढ़ते हुए पटेहरा गांव है जहां तमाम मिट्टी के कच्चे घरो में से एक घर जीरा भारती का है जो पिछले दो दशको से दलितों और आदिवासियों के हक में आवाज उठा रही हैं. इस संघर्ष में कई बार उन्हें गांव के दबंगो की मार झेलनी पड़ी है और प्रशासन द्वारा क़ई फर्जी मुकदमे भी उनके ऊपर लादे गए हैं. इस विधानसभा चुनाव में जीरा भारती अपने मड़िहान विधानसभा से भाकपा(माले) से उम्मीदवार हैं. उनके चुनावी प्रचार के दौरान उनके साथ बातचीत और अनुभव पर एक रिपोर्ट).

सावरकर-गोलवलकर-गोडसे की संतानों को सत्ता से निकाल बाहर करें

जन-संहार और लोकतंत्र की हत्या से भारत को बचाने के लिए
सावरकर-गोलवलकर-गोडसे की संतानों को सत्ता से निकाल बाहर करें

 – अरिंदम सेन

सतारा की ‘प्रति (समानांतर) सरकार’

- गेल ओम्बेट

समकालीन लोकयुद्ध आजादी के 75वें वर्षगांठ के मौके पर (स्व.) गेल ओम्बेट का यह लेख सिलसिलेवार ढंग से प्रकाशित कर रहा है. पहले हम गेल के जीवन साथी और कार्यकर्ता भरत पाटंकर द्वारा लिखित संक्षिप्त भूमिका पेश कर रहे हैं - सं

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष के अमर सेनानी शहीद जीतराम बेदिया

औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन के खिलाफ अनेक क्रांतिकारी देशभक्तों ने अपनी जान की कुर्बानी दी है. लेकिन उनमें से कई जिन्होंने अपने नेतृत्व में अत्याचारी अंग्रेजों, उनके मुखबिरों, जमींदारों, साहूकारों और सूदखोर-महाजनों के अंतहीन शोषण के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह किया था, बहुत दिनों तक गुमनाम रहे और कुछ तो आज भी गुमनाम हैं. जीतराम बेदिया उनमें से ही एक हैं.

जन्म, जन्मस्थान व परिवार

सदन में सड़क के आंदोलनों की आवाज बने भाकपा(माले) विधायक विनोद सिंह

झारखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र विगत मानसून सत्र से कई मामलों में भिन्न रहा है. इसके पहले बीते मानसून सत्र को भाजपा और सत्ता पक्ष ने सदन की कार्यवाही को भजन-कीर्तन और नमाज के मुद्दे में ही उलझाए रखा था! शोरगुल और हो-हंगामे की भेंट चढ़े पुरे सत्र में अपनी समस्याओं की चर्चा की उम्मीद लगाए बैठी जनता की आंखों में दोनों पक्षों ने धूल झोंका था. लेकिन, शीतकालीन सत्र काफी छोटा, मात्र छः दिनों का, होने के बावजूद काफी महत्वपूर्ण रहा है. इस बार जनता के जीवन से जुड़े कई मूलभूत मसलों पर शुरुआती दौर से ही क्रमवार सवालों ने पुरे सदन की कार्रवाई को पटरी पर ला दिया!

भारत की आजादी के 75 वर्ष : हिंदू वर्चस्ववादी बनाम भारत का स्वतंत्रता संग्राम: एक संक्षिप्त इतिहास


[आज हिंदू वर्चस्ववादियों के हाथ में भारत का शासन है, और वे भारत के स्वतंत्रता आन्दोनल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिशों में मशगूल हैं और साथ ही, वे इस आन्दोलन की मुख्य श्क्तियों की भूमिका को विकृत करने का भी प्रयास कर रहे हैं. इस आलेख में हम दो सर्वप्रमुख हिंदू वर्चस्ववादी संगठनों, हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जन्म से लेकर भारत की आजादी और इसके ठीक बाद तक उनके गतिपथ की जांच-पड़ताल करेंगे.

भारत की आजादी के 75 साल : स्वाधीनता संघर्ष और विभाजन


भारत को इन अनुभवों से क्या सीखना चाहिए

संघ-गिरोह और पूरा हिंदुत्ववादी राजनीतिक धड़ा न केवल भारत के स्वाधीनता संघर्ष से कटा रहा बल्कि इसने अंग्रेजों की ‘बांटो और राज करो’ की नीति का अनुसरण करते हुए हिन्दू-मुस्लिम आधार पर जनता की एकता को तोड़ने का काम किया.

‘बाँटो और राज करो’ की इस नीति की परिणति खूनी विभाजन तथा भारत और पाकिस्तान के निर्माण में हुई. बाद में पाकिस्तान से टूटकर बांग्लादेश बना.